क्या होगा यदि किसान कुछ ही दिनों में गन्ना उगा सके तो? लगभग एक हफ्ते में उनकी फसल तैयार हो जाये तो? सुनने में ये बातें थोड़ी अजीब लग सकती है परंतु हमारे वैज्ञानिक ऐसा कर रहे हैं। बेशक, ये फसलें मिट्टी में नहीं उगाई जा रही हैं, बल्कि कंप्यूटर की स्क्रीन (Computer Screen) में फल-फूल रही हैं। ऐसे डिजिटल प्लांट (Digital Plants) कृषि विज्ञान (Agricultural Science) में एक नए विचार का हिस्सा हैं जिसे "इन सिलिको" (In Silico) कहा जाता है, जहां शोधकर्ता चयनात्मक प्रजनन (Selective Breeding) को गति देने के लिए अत्यधिक सटीक, कंप्यूटर-सिम्युलेटेड फसलों (Computer-Simulated Crops) को डिजाइन (Design) करते हैं, जिसमें पौधों को चुना और दुबारा लगाया जाता है ताकि उनके वांछनीय लक्षणों को प्रवर्धित किया जा सके। वैज्ञानिकों का मानना है कि खेती का भविष्य सिर्फ खेतों में नहीं है, बल्कि ग्राफिक्स (Graphics) में भी है। फसल विज्ञान का यह नया क्षेत्र वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए आने वाले समय में एक वरदान साबित हो सकता है। क्योंकि दुनिया की वर्तमान आबादी लगभग 7.5 बिलियन (billion) हैं, और प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के अनुसार, 2050 तक दुनिया की आबादी लगभग 9.6 बिलियन तक हो जाएगी। ऐसे में दुनिया भर में मिट्टी के पोषक तत्वों और पानी की उपलब्धता में गंभीर गिरावट आना लाज़मी है। ऐसे में कम से कम समय में अधिक अनाज पैदा करने की आवश्यकता होगी, जिसमें इन सिलिको तकनीक किसी वरदान से कम नहीं होगी।
जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Georgia Institute of Technology) के एक जीवविज्ञानी एबरहार्ड वॉयट (Eberhard Voit) का कहना हैं कि सहस्राब्दी पुरानी रणनीति में फसलों की किस्मों का विकास बहुत धीमा होता है। हमें एक नये लक्षित दृष्टिकोण की आवश्यकता। कंप्यूटर सिमुलेशन के उपयोग से पौधे की वृद्धि का अध्ययन करके, शोधकर्ता यह पता लगा सकते हैं कि कौन से गुण किस मौसम में कम समय में सबसे अच्छे तरीके से बढ़ सकते है। इन सिलिको या इन सिलिकॉन (In Silicon) शब्द सिलिकॉन कंप्यूटर चिप्स (Computer Chip) से लिया गया है। इस तकनीक की शुरुआत वैज्ञानिकों द्वारा माइक्रोस्कोप (Microscopes) के तहत खेतों में पौधों के व्यवहार के बारे में डेटा एकत्र करने से होती है। इसके बाद वे एक सांख्यिकीय मॉडल (Statistical Model) बनाते हैं जो डेटा में गणितीय संबंधों की पहचान करते हैं। शोधकर्ता फिर उन समीकरणों के आधार पर सिमुलेशन बनाते हैं, जो उन्हें उन विशेषताओं को देखने की अनुमति देते हैं जिन्हें उन्होंने स्क्रीन पर देखने के लिए तय किया था। एक बार जब वे फसलों का एक दृश्य बना लेते हैं, तो वैज्ञानिक यह देखने के लिए डेटा में हेरफेर कर सकते हैं कि कौन से कारक किस मौसम में सबसे तेजी से विकसित हो रहे हैं। ये वर्चुअल (Virtual) या आभासी प्लांट मॉडल (Plant Models) वैज्ञानिकों और कृषिविदों के लिए शक्तिशाली और आकर्षक उपकरण हो सकते हैं लेकिन भारत में इस उपयोगिता को प्रदर्शित करने वाले वास्तविक उदाहरण अभी भी दुर्लभ हैं।
इन सिलिकॉन तकनीक पौधों की आबादी के विकास का अनुकरण करने की अनुमति देती है, जिसमें एक पौधे की वृद्धि और विकास तापमान तथा प्रकाश की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। ये वर्चुअल प्लांट मॉडल पारिस्थितिक जीववैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर पौधों की कार्यप्रणाली और पर्यावरण से संबंध की हमारी समझ को बेहतर बनाने और बेहतर ढंग से समझने के लिए उपयोगी उपकरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आभासी पौधे परिकल्पनाओं को व्यक्त करने और कई सारे परीक्षण करने को संभव बनाते हैं। इस दृष्टिकोण से हमारी कृषि की समझ में सुधार होता है और पौधों की जटिलता को स्थानीय प्रक्रियाओं की तुलना में सरल विवरण द्वारा समझाया जा सकता है। अर्बाना-शैंपेन (Urbana–Champaign) में इलिनोइस विश्वविद्यालय (University of Illinois) के शोधकर्ताओं द्वारा डिजिटल गन्ना (digital sugarcane) की सहायता से दिखाया गया कि किस तरह से डिजिटल फसलें किसानों को ज्यादा पैदावार उगाने में मदद कर सकती हैं। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चार अलग-अलग रोपण पैटर्न का परीक्षण करने के लिए सिमुलेशन (Simulation) का उपयोग किया। उन्होंने पहले बीजों को सममित ग्रिड (Symmetrical Grid) में लगाया इसके साथ एक अन्य क्षेत्र में उन्होंने बीजों को असीमित तरीके से लगाया। दूसरा उन्होंने बीजों को उत्तर-से-दक्षिण की ओर उन्मुखीकरण कर लगाया और इसके साथ एक अन्य क्षेत्र में बीजों को पूर्व-पश्चिम दिशा दक्षिण की ओर उन्मुखीकरण कर लगाया। उनके इस मॉडल से पता चला कि असममितिक और उत्तर-से-दक्षिण संरेखण में सबसे अधिक उपज होती है। जो कि वर्तमान में उगने वाली गन्ने की फसल की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक थी। शोधकर्ताओं के मॉडल से पता चलता है कि सूरज की रोशनी और छायांकन जैसी परिस्थितियां फसल की वृद्धि को कैसे प्रभावित करती हैं। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि पानी की उपलब्धता और माइक्रोबियल इंटरैक्शन (Microbial Interactions) जैसे कई अन्य कारक भी है जो पौधों लंबाई और चौड़ाई निर्धारित करते हैं, इन कारकों को कैसे व्यक्त किया जायेगा। दुनिया भर के प्लांट फिजियोलॉजिस्ट (Plant Physiologists) और जीवविज्ञानी अब इन महत्वपूर्ण सवालों के जबाव फील्ड (Field) और लैब (Lab) दोनों में ढुढंने का प्रयास कर रहे हैं। ये सभी प्रयोगशालाओं में अध्ययन में लगे हुए हैं। वे प्रयोगशालाओं में फसलों पर किये गये अपने अध्ययन के विवरणों को सिलिकोसिमुलेशन (Silicosimulations) में शामिल करेंगे। इसके अलावा नेशनल सेंटर फॉर सुपरकंप्यूटिंग एप्लिकेशन (National Center for Supercomputing Applications (NCSA)) के प्रोग्रामर (Programmer) एक सॉफ्टवेयर फ्रेमवर्क (Software Framework) का निर्माण कर रहे हैं, जो कई प्रोग्राम की सुविधाओं को प्रदर्शित करते हुए सभी एकल फसल मॉडल को एक पौधे में संयोजित कर सकता है। इन सिलिकॉन फसलों पर काम करने वाले वैज्ञानिक इस नये क्षेत्र की बढ़ती क्षमता का अनुमान लगा सकते हैं, वे जानते है कि आने वाले समय में मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में यह तकनीक महत्वपूर्ण साबित होगी।
कोरोना के इस दौर में भारत के किसान भी ऑनलाइन समाधानों के लिये ई-प्लांट क्लीनिकों (e-plant clinics) से जुड़ रहे है। जब तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई (Pudukkottai) जिले के मरमाडक्की (Maramadakki) गाँव की एक 49 वर्षीय किसान पाथी ने देखा की उनके मकई के पौधों पर आर्मीवर्म (ArmyWorm) कीट का हमला हुआ है, तब उन्होंने कीटनाशक लेने की वजह अपना सेल फोन निकाला और कृमि से संक्रमित पौधों की कुछ तस्वीरें खींचीं। इसके बाद, उन्होंने पुदुक्कोट्टई शहर में तैनात एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (M S Swaminathan Research Foundation (MSSRF) ) के प्लांट डॉक्टर डॉ. पी सेंथिल कुमार (Senthil Kumar) को ये तस्वीरें भेज दी। फिर उन्होंने डॉ. सेंथिल कुमार द्वारा बताए गए उपाय को आजमाया और आखिरकार, पाथी ने अपनी मकई की 80 फीसदी फसल बचाने में कामयाबी हासिल की। प्लांट क्लीनिक 2012 में ऑफ़लाइन रूप से शुरू हुये थे, जोकि एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की एक पहल थे। एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन यूके (UK) आधारित गैर-लाभकारी, सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल (Centre for Agriculture and Bioscience International (CABI)) के साथ साझेदारी में है। इस फाउंडेशन का उद्देश्य पौधों और मिट्टी के विकारों को विवेकपूर्ण तरीके से हल करना, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना, खेती की लागतों को कम करना, किसानों को बाजार दरों के बारे में सूचित करना और तमिलनाडु, असम, ओडिशा और पुदुचेरी के गांवों में फसलों की योजना बनाने में मदद करना है। लॉकडाउन के बाद ये क्लीनिक वर्चुअल में बदल गए है, आज गोटूमीटिंग (GoToMeeting) ऐप (app) के उपयोग से लगभग 160 किसान वर्चुअल मीटिंग में लॉग इन कर सकते हैं।
यदि आप अपने डेटा का विश्लेषण करने के लिए वर्चुअलप्लांट (VirtualPlant) का उपयोग करना चाहते है तो आपको अपने कंप्यूटर में जावा (Java) इंस्टॉल (install) करने की आवश्यकता है। जावा के अलावा आप J2SE SDK या J2SE JRE भी डाउनलोड (Download) कर सकते हैं। वर्चुअलप्लांट जीनोमिक डेटा (Genomic Data) को एकीकृत करता है और कुशल अन्वेषण के लिए दृश्य तथा विश्लेषण उपकरण प्रदान करता है। इस वर्चुअलप्लांट में आप जीन कार्ट (Gene Cart), जीन नेटवर्क (Gene networks), ब्राउजिंग ट्री (Browsing Tree), सहायक डेटा (Supporting data) आदि सुविधाओं का आनंद ले सकते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3aXHwdW
https://bit.ly/3a926ZP
https://bit.ly/3jP5rR7
http://virtualplant.bio.nyu.edu/cgi-bin/vpweb/
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र पौधों के बारे में जानकारी देते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में किसानों को वर्चुअल मीटिंग करते दिखाया गया है। (फ़िबेटेरिंडिया)
तीसरी तस्वीर ज़ूम (zoom) के माध्यम से ई-प्लांट क्लिनिक दिखाती है। (प्रारंग)