कोविड-19 (Covid-19) महामारी दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य संकट है। यह काल्पनिक रूप से हो या अस्तित्वगत रूप से, शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र या व्यक्ति हो जो महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन (Lockdown) से अप्रभावित रहा हो। हालाँकि महामारी में बुरी ख़बरों का एक सिलसिला देखने को मिला, लेकिन इस दौरान केवल हताश करने वाली खबरें ही हमें देखने को नहीं मिली हैं, बल्कि कई अच्छी खबरें भी सुनने में आई हैं, जैसे लॉकडाउन के चलते दुनिया भर के लोगों की पोषण संबंधी आदतों में एक सकारात्मक बदलाव जैसे कि खासतौर पर शहरी आबादी (जो आम तौर पर (पूर्व-कोविड) अधिक प्रसंस्कृत फास्ट फूड का सेवन करते हैं और अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में अधिक बाहर खाते हैं, जैसा कि सामाजिक मीडिया (Media) पर दिखाई देता है) के बीच खाने की आदतों में बदलाव देखने को मिला है।
एक प्रवृत्ति रिपोर्ट (Report), में बेहतर, साफ सुथरा और हर भरा खाने के इस त्वरित बदलाव को उजागर करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, "इन प्रवृत्तियों में से प्रत्येक व्यवहार और सामाजिक परिवर्तनों से प्रभावित है, जो महामारी की शुरुआत के बाद से उभरे हैं, जिनमें चिंता और तनाव की बढ़ रही भावनाएं, प्राथमिकताओं को स्थानांतरित करना, सामाजिक संपर्क में बदलाव और स्वस्थ्य के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण को अपनाना शामिल है।” रिपोर्ट में पाया गया कि उनके उपभोक्ताओं में से 31% स्वास्थ्य लाभ से भरपूर अधिक समग्रियों को खरीद रहे हैं, और 50% ने पौष्टिक तत्व और प्रतिरक्षा और ऊर्जा में सुधार करने वाले खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों को प्राथमिकता दी है।
महामारी और संबंधित लॉकडाउन के चलते लोगों में देखे गए खाने की आदतों और भोजन विकल्पों पर प्रत्याशित प्रभाव के विभिन्न रूपों के बारे में निम्न बताया गया है:
घर के बने भोजन को प्राथमिकता देनी :
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के शुरुआती चरण में रेस्तरां और अन्य खाद्य प्रतिष्ठान बंद रहे, जिस वजह से लोगों को मजबूरन या खुशी से घर के बने भोजन को प्राथमिकता देनी पड़ी। विभिन्न कारणों से, दुनिया भर में लगभग 60% उपभोक्ताओं द्वारा घर पर ही खाना पकाया गया। कोविड से पहले विश्व भर के लोगों द्वारा समय की कमी के कारण और सुविधा कारक के कारण बना हुआ प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को खाना या सेवन करना एक सामान्य बात थी। लॉकडाउन के कारण लोगों के इस मानस में बदलाव आया, जिसमें युवा जनसांख्यिकीय समूह शामिल थे, जिन्होंने खाना पकाने और पाक कौशल और अपने स्वयं के भोजन की जिम्मेदारी उठाई। सामाजिक मीडिया ने भी घर के खाना पकाने और स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूट्यूब (YouTube) जैसे मंच पर पहले से मौजूद ट्यूटोरियल (Tutorial) ने उन लोगों के अंदर के शेफ और बेकर तक को जगाया जिनके पास खाना पकाने का कौशल नहीं था।
स्वस्थ भोजन और खाद्य सुरक्षा के प्रति रुझान का बढ़ना :
आंतरिक कारकों के साथ अच्छा स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा, एक व्यक्ति द्वारा खाए जाने वाले भोजन और उसके बाद की जीवनशैली पर निर्भर करता है, यह तथ्य महामारी के दौरान काफी प्रमुखता में आया। आम जनता को यह विचार दिया गया था कि असंतुलित आहार से व्यक्तियों में वायरस की संभावना बढ़ जाती है, जिससे लोग स्वस्थ भोजन के विकल्प का चयन करने लगे। परिणामस्वरूप, प्रतिरक्षा में सुधार के लिए घरेलू उपचार के साथ, नागरिकों ने अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन पर ध्यान देना शुरू कर दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह स्वास्थ्यवर्धक था। हर जगह, जिनके पास साधन थे, उन्होंने अधिक फल और सब्जियों का सेवन शुरू कर दिया और तले हुए खाद्य पदार्थों, चीनी और नमक की खपत को कम कर दिया। खाद्य सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया गया। घरेलू बाजार में इन उत्पादों की बढ़ती बिक्री ने भारत में जैविक उत्पादों और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों की मांग को बढ़ा दिया था। महामारी ने उपभोक्ताओं को अपने आहार में सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करने के महत्व का एहसास कराया।
आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पर निर्भरता का बढ़ना :
बीमारी की नवीनता और एक इलाज या टीकाकरण की पूर्ण कमी ने लोगों को कोरोनवायरस (Coronavirus) से लड़ने के लिए पारंपरिक उपचार की ओर मुख करने के लिए मजबूर कर दिया। प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों और मसालों का उपयोग करते हुए युगों-पुराने पाक विधि का उपयोग लोगों द्वारा अधिक से अधिक किया जाने लगा ताकि प्रतिरक्षा को मजबूत किया जा सके, क्योंकि कोरोनोवायरस से लड़ने के लिए मजबूत प्रतिरक्षा आवश्यक साबित हुई है। पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के प्रचार के लिए जिम्मेदार आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक सिद्धांतों के माध्यम से प्रतिरक्षा और अन्य स्व-देखभाल के उपायों को बढ़ावा देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। योग के साथ-साथ, मंत्रालय ने कोरोनोवायरस से लड़ने के सुझावों के साथ नागरिकों की मदद करने के लिए जारी किए गए आधिकारिक दिशानिर्देशों में कई आयुर्वेदिक व्यंजनों जैसे काड़ा यानी तुलसी से बनी हर्बल (Herbal) चाय, दालचीनी, काली मिर्च, सूखी अदरक और हल्दी वाला दूध का सुझाव दिया।
हालांकि घर पर विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन पकाने से महामारी के संकट की चिंताओं से दूर रहकर और इसने अवसाद को रोकने में काफी मदद करी, साथ ही जहां लॉकडाउन के शुरुआती चरणों में फास्ट फूड की खपत में गिरावट आई थी। वहीं लोगों द्वारा घर पर ही फास्ट फूड बनाने का विकल्प चुना गया, भले ही यह आमतौर पर कम पौष्टिक होता है, लेकिन उच्च संसाधित तैयार भोजन की तुलना में बहुत बेहतर होता है। हालांकि, लॉकडाउन प्रतिबंधों को उठाने से कई फास्ट-फूड श्रृंखला और ऑनलाइन डिलीवरी (Online delivery) शुरू हो गई हैं। पके हुए भोजन की घर पर डिलीवरी में भी लोगों की बढ़ोतरी देखी गई, चूंकि जीवन धीरे-धीरे सामान्यता की ओर लौटता है, अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों में पुनरुत्थान की संभावना है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। यह महत्वपूर्ण है कि अपनाई गई स्वस्थ आदतों को आगे बढ़ाया जाए; एक व्यक्ति जिसने घर में खाना पकाने का अभ्यास शुरू कर दिया है, उसे नियमित रूप से ऐसा करने के बजाय कभी-कभार बाहर खाना जारी रखना चाहिए।
संदर्भ :-
https://bit.ly/2Z1gmxn
https://mck.co/36Xs8Nx
https://bit.ly/2N9mK2Y
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर स्वस्थ सब्जियों को दर्शाती है। (unsplash)
दूसरी तस्वीर में स्वस्थ फलों को दिखाया गया है। (unsplash)
तीसरी तस्वीर में स्वस्थ भोजन को दिखाया गया है। (unsplash)