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प्रदूषण की समस्या पर आज संपूर्ण विश्व जूझ रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। दुनिया के सबसे अधिक विकसित देशों में भी प्रदूषण विकराल रूप धारण कर चुका है। पर्यावरण-विद् पर्यावरण प्रदूषण को मानव जन्म मानते हैं। हमने ही विकास की अंधी दौड़ में प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है। प्रकृति में मौजूद हर वस्तु की एक निश्चित सीमा है। जैविक क्रियाओं से पर्यावरण में आया बदलाव भी संतुलित होता है। परंतु जब यह संतुलित स्थिति किन्हीं कारकों से प्रभावित होकर असंतुलित हो जाती है, तो उसे पर्यावरण प्रदूषण (environmental pollution), और उन कारकों को प्रदूषक पदार्थ (pollutants) कहा जाता है। पर्यावरण प्रदूषण जल, वायु, मृदा एवं ध्वनि प्रदूषण के रूप में आज हर जगह विद्यमान है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) एक ऐतिहासिक शहर है। 18 वीं सदी से चली आ रही है अपनी नवाबी संस्कृति और कला के कारण यह शहर बेहद प्रसिद्ध है। यहां के पाक-कला, चिकनकारी कढ़ाई, संगीत, कला और शिक्षण संस्थान विश्व प्रसिद्ध हैं। इतने खूबसूरत शहर पर भी वायु-प्रदूषण की कड़ी मार पड़ रही है।
लखनऊ की हवा को प्रदूषित करने वाले कुछ कारक या प्रदूषक पदार्थ हैं- सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur dioxide), नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxide), कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon monoxide), नॉन मीथेन वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (Non Methane Volatile Organic Compunds), कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) और करण प्रदूषक या पार्टिकुलेट मैटर (Particulate matter)। पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन सबसे अधिक (लगभग 20%) घरों में खाना पकाने, गर्म करने एवं रोशनी में प्रयुक्त ईंधन से होता है। उसके बाद यातायात से एवं ईंट भट्टों से लगभग 17% पार्टिकुलेट मैटर के कण उत्सर्जित होते हैं। उद्योग पार्टिकुलेट मैटर के 13% भाग का उत्सर्जन करते हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड का अधिकतर उत्सर्जन उद्योगों और यातायात से होता है। कार्बन मोनोऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन यातायात एवं घरेलू उद्योगों से होता है। सल्फर डाइऑक्साइड का उद्योग एक बड़े पैमाने पर उत्सर्जन करते हैं। वहीं वॉलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स का सर्वाधिक उत्सर्जन यातायात से होता है।
प्रदूषण के खतरनाक स्तर से लड़ने के लिए केंद्रीय बजट में उत्तर प्रदेश के 15 सर्वाधिक प्रदूषित जिलों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है। इन शहरों में कानपुर, गाज़ियाबाद, बनारस, मेरठ और बरेली के अलावा लखनऊ का भी नाम शामिल है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) के चेयरमैन जे. पी. एस. राठौर के अनुसार प्रदूषण के कारण हैं- टूटी-फूटी सड़कों पर उड़ती धूल, निर्माण कार्य, वाहनों से उत्सर्जित धुआं एवं उद्योग। उनके अनुसार इस वित्तीय मदद को प्रदूषण को नियंत्रित करने के तरीकों पर खर्च किया जा सकेगा, जैसे- सर्दियों में परेशानी देने वाले स्मोग (smog) को स्मोग गन (Smog gun) से नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसे ही वायु में उपस्थित धूल को पानी के छिड़काव से कम कर सकते हैं। हवा की गुणवत्ता की जांच करने के लिए और अधिक वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों को राज्य के विभिन्न स्थानों पर लगाने के लिए भी इस वित्तीय सहायता का उपयोग होगा। श्री राठौर के अनुसार ऐसे 16 स्टेशन तो हाल ही में कई जिलों में बनवाए गए हैं। इस वित्तीय मदद से कई तकनीकी संस्थानों में चल रहे शोधों को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
प्रदूषण का रूप आज इतना भयावह हो चुका है कि सिर्फ बचाव करने से इसे रोका नहीं जा सकता। अब अधिक क्रियाशील होकर कड़े कदम उठाने होंगे। यह जिम्मेदारी सरकार को ही उठानी पड़ेगी और जिस विकास के कारण प्रदूषण पनपा है उसी की मदद से तकनीकी समावेश कर इस प्रदूषण को खत्म करना होगा।