City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2104 | 90 | 0 | 0 | 2194 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
प्रकाश प्रदूषण अधिक रोशनी और अव्यवस्था के अलावा चकाचौंध, अत्यधिक प्रकाश और आकाश चमक जैसे रूपों में हो सकता है। मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर प्रकाश प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति संपूर्ण विश्व चिंतित है। दिन-रात के चक्र के साथ तालबद्ध हमारी नींद की लय अत्यधिक कृत्रिम रोशनी खराब नींद, मोटापा, मधुमेह, कुछ कैंसर और मनोदशा संबंधी विकार हमारे स्वास्थ्य को बाधित कर सकती है। शहरी जलवायु पत्रिका में जनवरी 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 20 वर्ष की अवधि में भारत के विभिन्न हिस्सों में बाहरी रोशनी से चमक लगातार बढ़ रही है। निष्कर्षों में कहा गया है कि 1993 से 2013 तक तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने "बहुत उच्च प्रकाश प्रदूषण तीव्रता" में वृद्धि का अनुभव किया है। अध्ययन के अनुसार, 20 वर्षों में कम से उच्च तक पश्चिम बंगाल, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में, कृत्रिम रोशनी के कारण बाहरी चमक में काफी परिवर्तन देखा गया है। अध्ययन में, शहरी विस्तार, नए उपनगरीय आवासीय क्षेत्रों और औद्योगिक और कृषि विकास में वृद्धि को उल्लिखित चमक को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
जैसा कि कई घर के मालिक घर पर अपने कार्बन (Carbon) पदचिह्न को कम करने के लिए विभिन्न कदम उठा रहे हैं। वे प्रत्येक सप्ताह कांच, धातु, कागज और प्लास्टिक के कचरे का पुन: उपयोग करते हैं। वे अपने घर में सभी तापदीप्त प्रकाश बल्बों (Bulb) को ऊर्जा-कुशल कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (Compact fluorescent lamps - CFL) या एलईडी (LED) प्रकाश बल्बों से बदल देते हैं। लेकिन वे ये नहीं जानते हैं कि वे अनजाने में कार्बन उत्सर्जन में योगदान दे रहे हैं और हल्के प्रदूषण के माध्यम से नाजुक पारिस्थितिक तंत्र में हस्तक्षेप कर सकते हैं। प्रदूषण और कचरे के अन्य रूपों के विपरीत, प्रकाश प्रदूषण को कई देशों में बड़े पैमाने पर अनदेखा और अनियमित किया हुआ है। कृत्रिम प्रकाश का मानवों द्वारा अत्यधिक व अंधाधुंध प्रयोग अथवा प्रकाश की ऐसी चरम व्यवस्था जो रात के समय में आसमान के वास्तविक स्वरूप को पूर्णता से बदलने का दम रखती हो, जिस कारण पर्यावरण, वन्य जीवन और खगोल विज्ञान प्रभावित होता हो को प्रकाश प्रदूषण (इसे फोटोपोल्यूशन (Photopollution) या प्रकाशयुक्त प्रदूषण के रूप में भी जाना जाता है) कहा जाता है। कृत्रिम प्रकाश की बढ़ती मांग के चलते प्रकाश प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
फोटोपोल्यूशन एक नई घटना नहीं है। पिछले 50 वर्षों में, जैसे-जैसे देश समृद्ध और शहरी होते गए, बाहरी प्रकाश व्यवस्था की मांग बढ़ती जा रही है, जिससे शहर की सीमाओं और उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाश प्रदूषण फैल गया। प्रकाश प्रदूषण अब एशिया (Asia), यूरोप (Europe) और उत्तरी अमेरिका (North America) में प्रचलित है, विशेष रूप से लॉस एंजिल्स (Los Angeles), न्यूयॉर्क (New York) और वाशिंगटन डी.सी. (Washington D.C.) जैसे शहरों में। 2008 में नेशनल जियोग्राफिक (National Geographic) पत्रिका ने शिकागो (Chicago) को संयुक्त राज्य अमेरिका (United States Of America) में सबसे अधिक प्रदूषित शहर का नाम दिया है। हालांकि, विश्व में सबसे अधिक प्रकाश प्रदूषित स्थान हांगकांग, चीन (Hong Kong, China) है। मार्च 2013 में, हांगकांग विश्वविद्यालय ने शहर को दुनिया में सबसे अधिक प्रकाश प्रदूषित शहर का नाम दिया।
अन्य प्रकार के संदूषण और अपशिष्ट के विपरीत प्रकाश प्रदूषण को बाह्य प्रकाश पद्धति में सुधार करके निहित या कम किया जा सकता है। याद रखें कि बाह्य प्रकाश व्यवस्था रात में दृश्यता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक उद्देश्य प्रदान करती है, लेकिन प्रकाश व्यवस्था जो इसके उद्देश्य से अधिक है, जल्दी दूसरों के लिए आक्रामक हो सकती है। खराब रूप से रचित किए गए आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक बाह्य प्रकाश भी प्रकाश प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। अनारक्षित प्रकाश 50% से अधिक का उत्सर्जन करते हैं। कई उदाहरणों में, उत्सर्जित प्रकाश का केवल 40% वास्तव में जमीन को रोशन करता है। वहीं प्रकाश प्रदूषण के कुछ ज्ञात दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं:
वातावरण - अंतर्राष्ट्रीय डार्क-स्काई एसोसिएशन (International Dark-Sky Association - जो एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो प्रकाश प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाता है), के अनुमान के अनुसार, एक साल में रात के समय प्रकाश के अत्यधिक कृत्रिम प्रयोग से 12 मिलियन टन से भी ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड (Carbon Dioxide) नामक गैस का उत्सर्जन होता है जिसे सोखने के लिये लगभग 702 मिलियन पेड़ों की आवश्यकता पड़ेगी। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये अत्यधिक प्रयोग वायु गुणवत्ता को लेकर कितने खतरनाक होते जा रहे हैं।
ऊर्जा का क्षय - एक 2007 आई.डी.ए. (IDA) के अनुसार, सार्वजनिक रूप से प्रयोग हो रहे प्रकाश का 30 % व्यर्थ जाता है। एक साल में कुल व्यर्थ जा रही ऊर्जा का अनुमान 36 लाख टन कोयले के बराबर है।
वन्यजीव - ये प्रकाश वन्यजीवों के नींद, भोजन, प्रवास, संभोग आदि में खलल डालने का कार्य कर रहा है। चमगादड़, हिरण, चूहे, उल्लू जैसे जीवों को रात के समय में अत्यंत प्रकाश की वजह से अपने भोजन और विचरण को लेकर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि ये जीव रात के समय ही बाहर निकलते हैं, अधिक प्रकाश में आने से इनकी ओर खतरा बढ़ जाता है। वहीं कीट जैसे पतंगे प्राकृतिक रूप से प्रकाश के प्रति आकर्षित होते हैं और प्रकाश के स्रोत के पास रहने के लिए अपनी सारी ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। यह संभोग और प्रवास के उनके चक्र में हस्तक्षेप करता है और साथ ही उन्हें प्राकृतिक शिकारियों के लिए अधिक स्पष्ट करता है, जिससे उनकी आबादी कम हो जाती है। यह उन सभी प्रजातियों को भी प्रभावित करता है जो भोजन या परागण के लिए कीड़ों पर निर्भर हैं।
खगोल - प्रकाश प्रदूषण रात के समय आसमानों में फैल कर उनके वास्तविक रंग या प्रकाश को बदल देता है जिस कारण अक्सर दूरबीन की सहायता से भी आकाशीय पिंडों को देखना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि प्रकाश प्रदूषण रात के समय में वस्तुओं का मूल स्वरूप बदल के रख देता है और हम वास्तविक चित्रों से अनजान रह जाते हैं।
मनुष्य - इन सबके साथ-साथ मनुष्य स्वयं भी प्रकाश के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है। वह स्वयं कई समस्याओं का शिकार हो रहा है जिनमें नींद की बीमारी, चिंता, अवसाद, हृदय रोग, मोटापा आदि शामिल हैं। वहीं मेलाटोनिन (Melatonin - स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाला हार्मोन (Hormone) है जो नींद और जागने के चक्र को नियंत्रित करता है), प्रकाश प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित होता है। यह हार्मोन अंधेरे में सक्रिय होता है और प्रकाश द्वारा दमित होता है। और इसकी कमी से चिंता और मनोदशा संबंधी विकार, अनिद्रा और एस्ट्रोजेन / प्रोजेस्टेरोन (Estrogen/Progesterone) अनुपात बढ़ सकता है।
वहीं इस युग में स्मार्टफ़ोन (Smartphone) के बढ़ते प्रयोग ने मनुष्य के जीवन को काफी सुविधाजनक बना दिया है। स्मार्टफ़ोन के साथ अब हम अपने कैमरे (Camera) को मैन्युअल मोड (Manual mode) में उपयोग करके तस्वीरों को कुछ इस तरह से खींच सकते हैं, जैसा पहले कभी संभव नहीं था। स्मार्टफोन कैमरों के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि उनका विस्तृत एपर्चर है। अधिकांश स्मार्टफोन कैमरों में F/1.8 का छिद्र होता है जिसका मूल रूप से मतलब है कि यह बहुत अधिक प्रकाश को अंदर आने दे सकता है। वहीं यह एस्ट्रोफोटोग्राफी (Astrophotography) के लिए एकदम सही है, क्योंकि हमें एक निश्चित समय के भीतर (सितारों को चलना शुरू होने से पहले) उपयुक्त मात्रा में रोशनी की आवश्यकता होती है। साथ ही निम्नलिखित तरीके से आप एक प्लास्टिक कप (Plastic Cup) का प्रयोग कर के मिल्की वे (Milky Way) की तस्वीर ले सकते हैं:
सबसे पहले फोन में इनमें से कोई एक एप्प डाउनलोड (App Download) कर लें - कैमरा प्रो (Camera Pro); VSCO कैम (VSCO Cam); मैनुअल कैमरा (Manual Camera) या प्रो शॉट (Pro Shot)। इसके बाद कैमरे को 30 सेकंड (Second) स्थिर रखने के लिये एक ट्राइपॉड (Tripod) की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए आप एक साधारण से प्लास्टिक कप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। कैमरे की सेटिंग (Setting) के लिए आप कुछ इस प्रकार करें:
• ISO (2000-6400) - ISO को उच्च स्तर पर रखना होगा। ऐसा इसलिए ताकि कैमरा सेंसर (Sensor) प्रकाश के प्रति ज्यादा आकर्षित रहे।
• शटर स्पीड (Shutter Speed) - इसे 30 सेकंड पे स्थित करें।
• फ़ोकस (Focus) – हमें उन वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना है जो हमसे दूर हैं, इसलिए इसे इनफिनिटी (Infinity) पर रखें।
• अपर्चर (Aperture) - एकमात्र फोन जो अपर्चर को समायोजित कर सकता है वह सैमसंग गैलेक्सी एस 9 है। इस स्थिति में, आप F/1.5 का उपयोग करें न कि F/2.4 का। यह इसलिए ‘F’ की संख्य जितनी कम होगी, उतने बेहतरीन अपर्चर ब्लेड (Blades) बनेंगे।
दुर्भाग्य से हर कोई अपने घर से बाहर निकलकर मिल्की वे की तस्वीर नहीं खींच सकता है, इसके लिए आपको एक ऐसे स्थान का पता लगाना होगा जहां प्रकाश प्रदूषण न हो। इसके लिए आप इस “https://bit.ly/3axKvK9” लिंक में जाकर अपने आस पास के स्थानों के प्रकाश प्रदूषण की स्थिति को जान सकते हैं।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.