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औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश शासन प्रणाली

लखनऊ

 28-01-2021 11:11 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
भारत के इतिहास में लगभग 200 साल का अध्‍याय ब्रिटिशों (British) द्वारा लिखा गया था। हालाँकि, आज हम भारत में ब्रिटिश राज शासन प्रणाली को भूल चूके हैं, विशेष रूप से "रियासतों" (कुछ गन सेल्यूट (Gun salute) के साथ और कुछ इसके बिना), जागीर और ज़मींदार के बीच के अंतर को। ब्रिटिशों ने दो प्रशासनिक प्रणालियों के माध्‍यम से भारत पर शासन किया: ब्रिटिश प्रांत और भारतीय "रियासत"; भारतीय उप-महाद्वीप के क्षेत्र का लगभग 60% प्रांत और 40% रियासतें थीं। प्रांत वे ब्रिटिश क्षेत्र थे जिन पर ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे प्रशासन किया जाता था। ब्रिटिश भारत में रियासतें (Princely states) ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे। परन्तु उन भारतीय शासकों पर अप्रत्‍यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। अवध भी एक स्‍वतंत्र रियासत के रूप में प्रसिद्ध था जिस पर बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India company) ने आधिपत्‍य कर लिया था। रियासतें: भारतीय उपमहाद्वीप में रियासतें लोहयूग से अस्तित्‍व में आ गयीं थीं, गुप्‍त साम्राज्‍य के पतन के बाद लगभग 13 वीं -14 वीं शताब्दी में इनका विकास हुआ कई राजपूत वंशों ने उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व में अर्ध-स्वतंत्र रियासतों को मजबूती से स्थापित किया। इसी दौरान इस्लामी सल्‍तनतों का विकास हुआ मुगल द्वारा कई रियासतों से साथ पारिवारिक संबंध स्‍थापित किए। मुगल तथा मराठा साम्राज्यों के पतन के परिणामस्वरूप भारत बहुत से छोटे बड़े राज्यों में विभक्त हो गया। इनमें से सिन्ध, भावलपुर, दिल्ली, अवध, रुहेलखण्ड, बंगाल, कर्नाटक मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत में मुस्लिम शासक थे। पंजाब तथा सरहिन्द में अधिकांश सिक्खों के राज्य थे। इसी दौरान भारत में आगमन हुआ ब्रिटिशों का, जो व्‍यापार के उद्देश्‍य से भारत आए। इस बीच इन्‍होंने देशी रियासतों के बीच चल रहे आपसी कलह का फायदा उठाया और भारत में ब्रिटिश साम्राज्‍य की स्‍थापना की तथा भारत के अनेक राज्‍यों को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। अन्य सभी उसका संरक्षण प्राप्त करके कम्पनी (company) के अधीन बन गये। यह अधीन राज्य 'रियासत' कहे जाने लगे। इनकी स्थिति उत्तरोत्तर असन्तोषजनक तथा दुर्बल होती चली गयी। रियासतों की शक्ति क्षीण होती गयी, उनकी सीमाएँ घटती गयीं और स्वतन्त्रता कम होती चली गयी।
ब्रिटिशों की भारत से वापसी के समय यहां पर हजारों रियासतें और जागीरें मौजूद थीं जिनमें से 565 रियासतों को आधिकारिक तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में मान्यता दी गई थी। 1947 में, रियासतों ने स्वतंत्रता-पूर्व भारत के 40% क्षेत्र को कवर किया और 23% आबादी इनके अंतर्गत थी। 19 वीं शताब्दी में कुछ राज्‍य/रियासतें (जैसे कि अर्कट, असम, अवध, कोडागु, महराट्टा राज्य, पंजाब, उत्कल) समाप्‍त हो चूके थे, इन्‍हें छोड़कर अन्‍य सभी रियासतें 15 अगस्‍त 1947 के बाद भारत में शामिल हो गयीं। सबसे महत्वपूर्ण राज्यों की अपनी ब्रिटिश राजनीतिक रेजीडेंसी (Residency) थी: दक्षिण में निजामों का हैदराबाद, मैसूर और त्रावणकोर और हिमालय में जम्मू-कश्मीर और सिक्किम और मध्य भारत में इंदौर। उनमें से कुल मिलाकर लगभग एक चौथाई को सलामी राज्य का दर्जा प्राप्त था, जिसके शासक औपचारिक अवसरों पर बंदूक की सलामी के लिए निर्धारित संख्या के अधिकारी थे। जिसमें लगभग 210 सूचीबद्ध राज्‍य थे। 118 राज्यों के शासक (113 आधुनिक भारत के , 4 पाकिस्तान के, 1 सिक्किम) बंदूक की सलामी (बंदूकों की संख्या राज्य के नामों को दर्शाती है) के स्वत्वाधिकारी थे। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष दिया गया। जनवरी 1948 से जनवरी 1950 तक (1952 में जम्मू और कश्मीर) भारतीय गणराज्‍य में विभिन्‍न राज्‍यों एवं प्रांतों के विलय होने तक इन राज्यों का उपयोग जारी रहा। हालाँकि, इसमें केवल "राज्यों" को भारतीय गणराज्‍य में शामिल किया गया; इसके अतिरिक्‍त "जागीर", "संपत्ति राजस्व अनुदान" (थिकाना), और "भूमि अनुदान" (ज़मींदारी) को बाहर रखा गया। भारत की रियासतों ने 19 वीं सदी के अंत तक ब्रिटेन के साथ रक्षा / सहायक संधियां की थी जिनकी सटीक तिथियों का पता चलता है। ब्रिटिश इंडिया (British India) शब्द का प्रयोग यूके (UK) औपनिवेशिक संपत्ति के लिए किया जाता है। जागीर: जागीर भारतीय उपमहाद्वीप में एक प्रकार की सामंती भूमि है जिसकी शुरूआत 13वी शताब्‍दी में इस्‍लामिक शासकों द्वारा की गयी थी, जिसमें सामंती भूमि पर शासन करने और कर एकत्र करने की शक्तियाँ राज्य के एक अधिकारी को प्रदान की गईं थी। जागीर के दो रूप थे, एक सशर्त और दूसरा बिना शर्त का। सशर्त जागीर शासक परिवार की सेना को बनाए रखने और राज्य के लिए अपनी सेवा प्रदान करने के लिए आबद्ध थे। इसे दिल्‍ली सल्‍तनत द्वारा शुरू किया गया तथा कुछ परिवर्तनों के साथ मुगल शासकों द्वारा आगे बढ़ाई गयी। मुगलकाल के दौरान जागीरदार को कर एकत्रित करने के लिए नियुक्‍त किया जाता था जिसमें से उनके वेतन को निकालर बाकि सरकारी खजाने में जाता था। जबकि प्रशासन और सैन्य प्राधिकरण को अलग से नियुक्त किया जाता था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, राजपूत, जाट, सैनी और सिख जाट राज्यों द्वारा, और बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जागीर की व्यवस्था को बनाए रखा गया था। 1951 में भारत सरकार द्वारा जागीरदार प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। जमीदार:
भारतीय उपमहाद्वीप में ज़मींदार एक राज्य का एक स्वायत्त या अर्ध-शासित शासक था, जिसने हिंदुस्तान के सम्राट के अधिपत्‍य को स्वीकार किया था। जमींदार फारसी शब्‍द है जिसका अर्थ है जमीन का मालिक है। सामान्‍यत: वंशानुगत, ज़मींदारों ने अधिकांश ज़मीन और अपने किसानों पर नियंत्रण कर रखा था, जिनसे ये शाही दरबारों की ओर से या सैन्य उद्देश्यों के लिए कर एकत्रित करते थे। मुगल साम्राज्य के दौरान, जमींदार कुलीन वर्ग के थे तथा शासक वर्ग का गठन करते थे। बादशाह अकबर ने उन्हें मंसूबे दिए और उनके पैतृक क्षेत्र को जागीर के रूप में माना गया। 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में, ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद कई अमीर और प्रभावशाली ज़मींदारों को राजा, महाराजा और नवाब जैसी शाही उपाधियों से सम्मानित किया गया। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत, स्थायी बंदोबस्त व्‍यवस्‍था को लागू किया गया जिसे जमींदारी प्रणाली के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजों ने समर्थक जमींदारों को राजकुमारों के रूप में मान्यता देकर पुरस्कृत किया। 1951 में भारत सरकार द्वारा ज़मींदार प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Princely_state
https://en.wikipedia.org/wiki/Jagir
https://en.wikipedia.org/wiki/Zamindar
https://www.worldstatesmen.org/India_princes_A-J.html
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में दिल्ली के संसद भवन, ब्रिटिश भारत (1926) को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर में लंदन के ईस्ट इंडिया हाउस को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में कुछ प्रसिद्ध जमींदारों को दिखाया गया है। (प्ररंग)


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