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लखनऊ अपनी संस्कृति, समृद्ध इतिहास, स्मारकों, अद्भूत ऐतिहासिक आकर्षण आदि के लिए जाना जाता है। यदि शहर में मौजूद अद्भुत चीजों को सूचीबद्ध किया जाए तो लखनऊ विश्वविद्यालय शीर्ष पर आएगा। 1919 में स्थापित हुए लखनऊ विश्वविद्यालय को आज 100 वर्ष से भी ऊपर हो गए हैं. लगभग 225 एकड़ की भूमि में फैले इस विश्व विद्यालय की शुरूआत मात्र दो कमरों से हुयी थी जो आज भारत के सबसे पुराने आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है. हुसैनाबाद कोठी में अस्थायी स्कूल के रूप में शुरू होकर यह अमीनाबाद के अमीनुद्दौला पार्क, कैसरबाग में परीखाना (वर्तमान भातखंडे संगीत सम संस्थान), लाल बारादरी होते हुए आखिर में बादशाहबाग स्थित वर्तमान परिसर तक पहुंचा। खान बहादुर शेख सिद्दीकी अहमद साहब द्वारा उर्दू में लिखी गई मशहूर पुस्तक अंजुमन-ए-हिंद (Anjuman-e-Hind) में कैनिंग कॉलेज (Canning College) की स्थापना का विस्तृत विवरण दिया गया है। ब्रिटिश भारत (British India) के पहले वायसराय चार्ल्स जॉन कैनिंग (Charles John Canning ) ने 1862 में लंदन (London) में अंतिम सांस ली। इन्हें 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अपनी वफादारी के लिए एक तालुक (एक जिले के उपखंड) से पुरस्कृत किया गया था। लंदन से लगभग 4,500 मील दूरी पर अवध में इनके वफादार तालुकेदारों के एक समूह ने इनकी स्मृति में एक शैक्षणिक संस्थान शुरू करने का निर्णय लिया.
तालुकेदारों द्वारा 18 अगस्त 1862 में अवध में इससे संबंधित पहली बैठक की गयी। 22 नवंबर को ताल्लुकेदारों की दूसरी बैठक हुयी जिसमें इन्होंने अपनी योजना की सूचना सरकार को देने का निर्णय लिया। तीसरी बैठक 7 दिसंबर 1862 को हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि हर ताल्लुकेदार अपने यहां की मालगुजारी (कर के रूप में प्राप्त रकम) का आधा फीसदी इस शैक्षणिक संस्था के लिए देगा। बैठक में यह भी तय हुआ कि इसी रकम के बराबर की राशि सरकार से देने का अनुरोध किया जाएगा। सरकार ने ताल्लुकेदारों के इस प्रस्ताव को मान लिया तथा एक मई 1864 में हुसैनाबाद में कैनिंग कॉलेज की शुरुआत हुयी। ख्यालीगंज, अमीनाबाद की तंग गलियों में स्थित एक हवेली के दो कमरों में 200 छात्रों के साथ इस विद्यालय की शुरूआत की गयी.
मालगुजारी से दिए गए पैसों का आधा हिस्सा कैनिंग कॉलेज और आधा हिस्सा उस संस्थान जिसमें सिर्फ ताल्लुकेदारों के बच्चे पढ़ाई करेंगे, के लिए गया। ताल्लुकेदारों के बच्चों के लिए यह विशिष्ट संस्थान 1889 में कॉल्विन ताल्लुकेदार्स (Colvin Talukedars) के रूप में सामने आयी। उससे पहले आम और खास सभी के बच्चे कैनिंग कॉलेज में ही पढ़ते थे। वर्ष 1864 में अपनी स्थापना के बाद अगले दो साल तक यहां पर सिर्फ हाईस्कूल (high school) तक की पढ़ाई हुआ करती थी। आगरा कॉलेज के प्रिंसिपल टॉमस साहब (Principal Tomas Saheb) की निगरानी में यह विद्यालय कलकत्ता विश्व विद्यालय से संबद्ध था। वर्ष 1887 में इलाहाबाद विवि बनने के बाद यह कलकत्ता की बजाय इलाहाबाद विश्व विद्यालय से संबद्ध हो गया। कैनिंग कॉलेज में वर्ष 1864 से डिग्री कक्षाओं (Degree classes) की शुरुआत की गई। शुरुआत में डिग्री स्तर पर सिर्फ आठ विद्यार्थी ही थे। हालांकि कुल विद्यार्थियों की बात करें तो 1865 में 377 थी जो 1869 तक 666 हो गयी। अवध के कमिश्नर को इस विद्यालय समिति का अध्यक्ष तथा अंजुमन-ए-हिंद के सचिव को इसका सचिव बनाया गया। इन्हीं की निगरानी में यह विद्यालय संचालित होता रहा। कैनिंग कॉलेज में वर्ष 1884 तक सभी कक्षाएं एक साथ चलती रहीं। इसके बाद प्राइमरी कक्षाओं (Primary classes) को अलग कर दिया गया। 1887 में मिडिल की कक्षाएं (Middle classes) भी अलग कर दी गईं।
1919 के एक विधेयक के माध्यम से इस कॉलेज को एक विश्वविद्यालय में बदलने का प्रस्ताव रखा गया जो एक शताब्दी बाद आज लखनऊ के गौरव के रूप में खड़ा है। लखनऊ में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार राजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान, खान बहादुर, के.सी.आई.ई. महमूदाबाद द्वारा दिया गया था। उन्होंने तत्कालीन लोकप्रिय अखबार द पायनियर (The Pioneer) में लखनऊ में एक विश्वविद्यालय की नींव रखने का आग्रह करते हुए एक लेख में योगदान दिया था। सर हरकोर्ट बटलर (Sir harcourt butler), संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट-गवर्नर, को विशेष रूप से सभी मामलों में मोहम्मद खान का निजी सलाहकार नियुक्त किया गया। विश्वविद्यालय को अस्तित्व में लाने के लिए पहला कदम तब उठाया गया, जब शिक्षाविदों की एक सामान्य समिति ने 10 नवंबर 1919 को गवर्नमेंट हाउस (Government House), लखनऊ में एक सम्मेलन में मुलाकात की और जो व्यक्ति रूचि रखते थे उनकी नियुक्ति की गयी। इस बैठक में सर हरकोर्ट बटलर (Harcourt Butler), समिति के अध्यक्ष, ने नए विश्वविद्यालय के लिए प्रस्तावित योजना की रूपरेखा तैयार की।
13 अगस्त 1920 को इलाहाबाद विवि में ले. गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर (L. Governor Sir Harcourt Butler) की अध्यक्षता में विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय स्थापित करने की जानकारी दी। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी (University) और स्कूल टीचिंग (School teaching) के बीच की लाइन इंटरमीडिएट (Line intermediate) करने की बात भी तय हुई। इसी कैनिंग कॉलेज को 25 नवंबर 1920 को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया और 1921 में यहां पढ़ाई की शुरुआत हो गई। लखनऊ विश्वविद्यालय में 1921 में शुरू हुए पहले शैक्षिक सत्र में डिग्री के साथ ही 12वीं के विद्यार्थी भी शामिल थे। इंटरमीडिएट का बैच पास होने के बाद अगले साल यानी 1922 में यहां इंटर (Inter) की पढ़ाई बंद हो गई। सर स्विंटन जैकब (Sir Swinton Jacob,) द्वारा इस विश्वविद्यालय को इंडो सारसैनिक (Indo-Saracenic) शैली में तैयार करवाया गया, यह जयपुर शहर के डिजाइन (Design) के मुख्य अभियंता भी थे। इस विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय (जो कि टैगोर पुस्तकालय के रूप मे जाना जाता है) की रूप रेखा सर वाल्टर ग्रिफ़िन (Sir Walter Griffin) ने तैयार की थी. ग्रिफ़िन ने औस्ट्रेलिया (Australia) के कैनबरा (Canberra) शहर का डिजाइन भी तैयार किया था। इस विश्वविद्यालय के निर्माण मे दिल्ली के निर्माणकर्ता लुटियन्स (Edwin Lutyens) और हरबर्ट बेकर (Herbert Baker) ने भी सहायता की थी।
पाठ्यक्रमों की भिन्नता के साथ इस छात्रावास में पुस्तकालय और अन्य कई सुविधाएं मौजूद हैं, यह विश्वविद्यालय किसी अमूल्य ऐतिहासिक अवशेषों से कम नहीं है. लखनऊ को लंबे समय से ललित कला, संस्कृति और उच्च शिक्षा के अधिवक्ता के रूप में जाना जाता है और जिसे इस विश्वविद्यालय जीवित रखा गया है। यह विश्वविद्यालय अपनी आश्चर्यजनक वास्तुकला, विशाल मैदान और प्रतिष्ठित प्राचीन इमारत के लिए भी प्रसिद्ध है।