City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
343 | 1254 | 0 | 0 | 1597 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
विश्व युद्ध, आधुनिक विश्व इतिहास की सबसे प्रलयकारी घटनाओं में से एक हैं, जिसमें जन धन की अत्यधिक क्षति हुई। इसने पूरे विश्व के सामाजिक और राजनैतिक ढांचे को इस प्रकार बदलकर रख दिया कि इसके प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पतन के लिए सबसे प्रसिद्ध स्मारकों में से एक स्मारक कोहिमा और नागालैंड में ग्रे हेडस्टोन (Grey headstone) पर एक साधारण सफेद क्रॉस (Cross) है, जहां का दौरा सबसे कम किया जाता है। स्मृतिलेख पर लिखा गया चार पंक्तियों का एक छंद बहुत ही दुखदायी है।
जब तुम घर जाओगे,
उन्हें हमारे बारे में बताना और कहना,
तुम्हारे कल के लिए
हमने अपना आज दिया।
लेकिन वास्तव में घर कहाँ है? वे (उन्हें) कौन हैं? तथा उन्हें किसके बारे में बताना है? उन सभी लोगों के लिए जिन्होंने पूर्वी भारत की शांत, नम पहाड़ियों में यात्रा की है, के लिए उत्तर सरल हैं। यह घर इंग्लैंड है, वे लोग अंग्रेजी हैं। वह व्यक्ति जिसे इस मामले में यह सब कहा जा रहा है, वे 4 वीं बटालियन (Battalion) के गायब होने वाले दल, रॉयल वेस्ट केंट रेजिमेंट (Royal West Kent Regiment) के हैं, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक अहम भूमिका निभायी। कोहिमा में, यह ब्रिटेन की भारतीय सेना के सैनिक थे जिन्होंने अनेकों लड़ाईयां लडीं और मृत्यु को प्राप्त हुए। इनमें पंजाब समेत अन्य क्षेत्रों के वे लोग थे जिन्हें उनकी भूरी-चमड़ी द्वारा पहचाना जाता था तथा उन्होंने हजारों मील दूर लंदन और बर्लिन, टोक्यो और मॉस्को, रोम और वाशिंगटन जैसे देशों और क्षेत्रों में जीवन के अंतिम समय तक अपनी सेवा दी। इस समय उन्हें किसी धर्म विशेष से सम्बंधित होने के रूप में नहीं बल्कि ब्रिटिश भारतीय सैन्य ईकाई के रूप में पहचाना गया। द्वितीय विश्व युद्ध में, लगभग 25 लाख एशियाई लोगों ने फास्जिम (Fascism) के खिलाफ तीनों स्थलों भूमि, समुद्र और हवा में लडाई लडी। भारतीय सेना ने कई पुरस्कार जीते, जिसमें 31 विक्टोरिया (Victoria) क्रॉस शामिल थे। एशियाई लोग वायु सेना में पायलट और ग्राउंड क्रू (Ground crew) के रूप में शामिल हुए। नाविकों ने संचार की लाइनें खुली रखीं। कई लोगों ने कारखानों में काम किया और अनेकों ने महत्वपूर्ण हथियारों और उपकरणों के उत्पादन में विशेष भूमिका निभाई। भारत की ओर से लड़ने गए अधिकतर सैनिक इसे अपनी स्वामी भक्ति का ही हिस्सा मानते थे। वे जिस भी मोर्चे पर गये वहां जी-जान से लड़े। युद्ध में भर्ती के लिए गांव से लेकर शहर तक अभियान चलाए गये। भारी मात्रा में युद्ध के लिये चन्दा भी जुटाया गया। अधिकतर जवान खुशी-खुशी सेना में शामिल हुए और जिन्होंने आनाकानी की उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरदस्ती भर्ती किया गया। सेना के अन्दर भी उनके साथ भेदभाव किया जाता था। राशन से लेकर वेतन भत्ते और दूसरी सुविधाओं के मामले में उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से नीचे रखा जाता था। लेकिन फिर भी भारतीय सैनिकों ने लड़ना जारी रखा और इस भेदभाव का असर कभी अपनी सेवाओं पर नहीं पड़ने दिया। किंतु शायद जिस रूप में इन वीर सैनिकों को पहचान मिलनी चाहिए थी वो कभी विश्व युद्ध के इतिहासकारों और भारतीय इतिहासकारों द्वारा नहीं दी गयी। दूसरे शब्दों में विश्व युद्ध में शामिल हुए भारतीय सैनिकों की भूमिका और योगदान की उपेक्षा की गई। इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि इतिहासकारों ने युद्ध को वास्तव में वैश्विक संघर्ष के रूप में देखा है।
भारतीय सेना को इतिहासकारों ने कई कारणों से उपेक्षित किया है। एक स्तर पर, 'सैन्य इतिहास' को गलत तरीके से पेशे से रूढ़िवादी उद्यम माना जाता है। इतिहासकारों ने सेना को एक असंगठित विषय पाया है क्योंकि यह एक ऐसी संस्था थी जिसने राज को दबा दिया था। भारतीय इतिहासकारों की भी ब्रिटिश भारतीय सेना में बड़े पैमाने पर रूचि नहीं रही है, अधिक सामान्य तौर पर, ऐतिहासिक परिवर्तन के चालक के रूप में युद्ध के अध्ययन करने पर भी नहीं। फिर, इसके लिए कुछ उत्कृष्ट अपवाद हैं, लेकिन समग्र प्रवृत्ति अचूक है।
विश्व युद्धों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव भारत पर देखे गये जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक आदि रूपों में थे। स्वतंत्र भारत द्वारा अपनाए गए योजनाबद्ध आर्थिक विकास के मॉडल (model) की उत्पत्ति युद्ध का सीधा परिणाम था। युद्ध ने गतिशीलता के लिए भारतीय समाज के हाशिये पर मौजूद समूहों को नए रास्ते खोजने के लिए एक अवसर प्रदान किया। युद्ध के कारण भारत भी एक प्रमुख एशियाई शक्ति के रूप में उभरा और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक भूमिका निभाने के लिए मंच तैयार किया। राजनीतिक रूप से यदि देखा जाए युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में पंजाबी सैनिकों की वापसी ने उस प्रांत में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियों को भी उत्तेजित किया जिसने आगे चलकर व्यापक विरोध प्रदर्शनों का रूप ले लिया। युद्ध हेतु सैनिकों की जबरन भर्ती से उत्पन्न आक्रोश ने राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की पृष्ठभूमि तैयार की। सामाजिक प्रभाव की दृष्टि से देखें तो युद्ध के तमाम नकारात्मक प्रभावों के बावजूद भर्ती हुए सैनिक समुदायों की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। सैनिकों ने अपने विदेशी अभियानों हेतु पढ़ना-लिखना सीखा। युद्ध में भाग लेने वाले विशेष समुदायों का सम्मान समाज में बढ़ गया। इसके अतिरिक्त गैर-लड़ाकों की भी बड़ी संख्या में भारत से भर्ती की गई- जैसे कि नर्स (Nurse), डॉक्टर इत्यादि। अतः इस युद्ध के दौरान महिलाओं के कार्य-क्षेत्र का भी विस्तार हुआ और उन्हें सामाजिक महत्त्व भी प्राप्त हुआ। आर्थिक तौर पर ब्रिटेन में भारतीय सामानों की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई। युद्ध का एक और परिणाम मुद्रास्फीति के रूप में सामने आया। औद्योगिक कीमतें बढने लगी और बढ़ती कीमतों में तेज़ी ने भारतीय उद्योगों को लाभ पहुँचाया। कृषि की कीमतें भी धीमी गति से बढीं। खाद्य आपूर्ति, विशेष रूप से अनाज की मांग में वृद्धि से खाद्य मुद्रास्फीति में भी भारी वृद्धि हुई। ब्रिटेन में ब्रिटिश निवेश को पुनः शुरू किया गया, जिससे भारतीय पूंजी के लिये अवसर सृजित हुए।
द्वितीय विश्व युद्ध में रामपुर के नवाब रज़ा अली खान बहादुर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रज़ा अली खान 1930 से लेकर 1966 तक रामपुर रियासत के नवाब रहे। वे एक सहिष्णु और प्रगतिशील शासक थे जिन्होंने अपनी सरकार में हिंदुओं की संख्या का विस्तार किया था। रियासत में उन्होंने सिंचाई प्रणाली का विस्तार, विद्युतीकरण आदि परियोजनाओं को पूरा करने के साथ-साथ स्कूलों, सड़कों और निकासी प्रणाली का निर्माण भी किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देशभक्त नवाब ने अपने सैनिकों को विश्व युद्ध में भाग लेने के लिये भेजा जहां इनके सैनिकों ने बहुत बहादुरी के साथ अपना शक्ति प्रदर्शन किया। अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, नवाब रज़ा अली खान बहादुर ने भारत के डोमिनियन (Dominion) के लिए सहमति व्यक्त की और रामपुर को आधिकारिक रूप से वर्ष 1949 में भारत में विलय कर दिया गया। यह क्षेत्र वर्ष 1950 में उत्तर प्रदेश के नवगठित राज्य का हिस्सा बना। बाद में नवाब रज़ा अली खान ने विभिन्न धर्मार्थ परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.