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भारत भर में प्रचलित पत्थर का सिलबट्टा कुछ साल पहले तक भारतीय रसोई का अपरिहार्य हिस्सा होता था लेकिन स्वचालित मिक्सर ग्राइंडर (Mixer grinders) के आते ही सिलबट्टे की लोकप्रियता घटने लगी। सिलबट्टा भी कमाल की चीज़ है, ना मिक्सी की तरह कोई तामझाम, बिजली की बचत, ना कोई रंगीन बनावट की आवश्यकता, आसानी से काम आने वाला, हर वक्त प्रयोग के लिए तैयार होता है हमारा देसी सिलबट्टा। वहीं नेपाल में, इसे सिलौतो-लोहरो के रूप में जाना जाता है। जबकि मराठी में इसे पाटा-वर्वन्ता के रूप में जाना जाता है। इसे तमिल और मलयालम में अम्मी के नाम से जाना जाता है। ओडिशा में इसे सिला पुआ कहा जाता है जहां पारंपरिक ओडिया शादियों और राजा त्योहार के दौरान इसे भु देवी या धरती माता के रूप में भी पूजा जाता है।
हालांकि संपूर्ण भारत में सिलबट्टे के इतिहास और इसकी बनावट में खासी विविधता दिखाई देती है। कई मान्यता यह है कि हमारे पूर्वजों द्वारा एक पत्थर को उठाकर दूसरे पत्थर पर किसी चीज को पीसने के लिए उपयोग करते हुए सिलबट्टे का आविष्कार किया गया होगा। इसका आकर और बनावट इतनी बेहतरीन होती है कि यह हाथ में बड़ी सुगमता से बैठ जाता है, वहीं सिल की सतह पर जो छोटे-छोटे छेद खुदे होते हैं, वह महज इत्तेफाक नहीं बल्कि घर्षण की मदद से बारीक पीसने के लिए बनाए जाते हैं। लगातार इस्तेमाल होने पर यह छेद घिस जाते हैं, तब इन्हें कारीगर द्वारा खुदवाना होता है। सिल पर ये छोटे छोटे छेद करने की प्रक्रिया को सिल खुटाई कहते हैं।
भारत के अलग-अलग प्रांतों में सिलबट्टा अलग-अलग बनावट का होता है, इसकी वजह लोगों की व्यक्तिगत पसंद या क्षेत्रीय आवश्यकता भी है। जैसे कि बंगाल में यह बट्टा अंडाकार आकृति का होता है और उत्तर भारत में आते-आते यह हल्का तिकोना हो जाता है। लेकिन हर बनावट अपने में अनोखी है और उसकी अपनी खास पहचान है। वहीं मिक्सी के मुकाबले यदि सिलबट्टे को रखा जाएं तो सिलबट्टा ज्यादा प्रगतिशील, आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल होता है। साथ ही इसको बनाने का ज्यादातर काम हाथ से होता है और प्रशिक्षित पत्थर के कारीगर इसे बनाते हैं और इसमें किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता। मिक्सी भले सूखे मसालों को जल्दी पीस देती है, लेकिन ज्यादा ऊर्जा के कारण चीजों के स्वाद और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। वहीं सिलबट्टे का उपयोग करने से घर के मासिक बजट (Budget) में भी कई प्रकार की बचत की जा सकती है, जैसे की बिजली की बचत और इसमें थोड़े और ताजे मसाले दैनिक रूप से पिसे जा सकते हैं जो स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव नहीं डालते हैं।
सिलबट्टे को उपयोग करना काफी सरल है, बस मसालों को पीस लें और इसका सही पेस्ट बनाएं। लेकिन साधारण दिखने वाला सामान हमेशा सरल नहीं होता है। जिस तरह से इसमें मसाले कूटने के लिए इसे घिसना होता है, उसी तरह से इसमें अनुभव की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि जितना अनुभवी हाथ होता है उतने स्वादिष्ट और अच्छे मसाले मिलते हैं। इसके लिए पहले बट्टे के ऊपर मसाले (जैसे मिर्च, लहसुन, काली मिर्च) डालें, और थोड़ा सा पानी डालें ताकि परिणाम पेस्ट के रूप में हो। एक बार जब आप तैयार हो जाते हैं, तो इसको सिल की मदद से प्रत्येक मसाले पर दबाव बनाते हुए घिसना शुरू करें। बीच में, फैले हुए मसालों को इकट्ठा करें और उन्हें फिर से केंद्र में रख कर एक बार फिर से घिसने की प्रक्रिया शुरू करें। याद रखें की मसालें बट्टे से बाहर न गिरें। मसालों को पीसकर पेस्ट बनाने के बाद, इस सिल बट्टे को धोकर सुरक्षित स्थान पर रखें। ये पत्थर का होने की वजह से काफी भारी होता है इसलिए इसको इस्तेमाल करते वक्त संपूर्ण सावधानी रखें।
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