कढ़ाई (embroidery) एक हस्तशिल्प है जिसमें सुई और रंग बिरंगे धागों की मदद से सुंदर डिजाइन बनाये जाते हैं। कढ़ाई एक साधारण से कपड़े को भी खूबसूरत बना देती है। कढ़ाई का मतलब ही होता है की रंग-बिरंगे धागों और सुई से कुछ ऐसा काढ़ना, जो कपड़े की सुन्दरता को बढ़ा दे। महीन कपड़े पर सुई-धागे से विभिन्न टांकों द्वारा की गई हाथ की कारीगरी लखनऊ की चिकन कला कहलाती है। अपनी विशिष्टता के कारण ही यह कला सैंकड़ों वर्षों से अपनी लोकप्रियता बनाए हुए है। इसके अलावा सोने चांदी से की गई कढ़ाई भी लखनऊ की एक खासा पहचान रही है। मुगल साम्राज्य के दौरान सोने चांदी से की गई कढ़ाई ने ऊँचाइयों को छुआ। उस समय खास कर जूतों पर की गई सोने चांदी से की कढ़ाई काफी प्रसिद्ध थी।
16 वीं, 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में कपड़ों के क्षेत्र में मुगलों का विशेष प्रभाव पड़ा। मुगल भारत की कपड़ा संस्कृति में विलासिता की कमी नहीं थी। मुगल अपने कपड़ों के लिये विशेष रूप से सूती, मलमल (muslin), रेशम (silk), मखमल (velvet) और ब्रोकेड (brocade) का उपयोग करते थे, जिनमें शानदार कढ़ाई की शैलियों और डॉट्स (dots), चेक (checks), तथा तरंगों (waves) सहित कई तरह के टाई-डाई (tie-dyed) से बने विस्तृत पैटर्नों (patterns) का उपयोग किया जाता था। पुरुषों ने परंपरागत रूप से लंबे ओवर-लैपिंग कोट (over-lapping coat) पहने थे, जिन्हें जामा (Jama) के रूप में जाना जाता था, इसके साथ पायजामा (Paijama) पहना जाता था। इसके अलावा सिर पर पगड़ी (pagri) होती थी जिस पर सोने और कीमती रत्नों जैसे कि माणिक (rubies), हीरे (diamonds), पन्ना (emeralds) और नीलम (sapphire) आदि लगे रहते थे। इस युग के दौरान लखनऊ अपने जूतों के लिए जाना जाता था क्योंकि इस दौरान इन पर सोने और चांदी की कढ़ाई की जाती थी। यहां की महिलाएं शलवार, चूड़ीदार, गरारा और फरशी (farshi) पहनती थी तथा झुमके, नाक के गहने, हार, चूड़ियाँ, कमरबंध और पायल सहित कई गहनों को भी धारण करती थी। रेशम-कपड़ा अलग-अलग रंगों में रंगा हुआ था और बादशाहों के कपड़े उसी के बने थे। मुगल काल में भारत ने विशेष रूप से चीन से अच्छी गुणवत्ता के रेशम का आयात किया, जिसका मतलब था कि रेशम उद्योग एक अच्छी तरह से विकसित चरण में नहीं था। लेकिन, भारत ने बड़ी मात्रा में कपास, और ऊनी कपड़े का उत्पादन किया। भारत में अच्छी गुणवत्ता के कालीन और शॉल का उत्पादन भी किया गया। ये सूती और ऊनी कपड़े, टाई-डाई और कढ़ाई वाले वस्त्र आगे चलकर स्थानीय सौंदर्य, प्रतीकात्मक, राजनीतिक और नैतिक धार्मिकता का प्रतीक बने तथा एकजुटता का परिचय दिया।
मुगल काल आभूषण बनाने के सबसे भव्य युगों में से एक था, जिसे इतिवृत्त (chronicles) और चित्रों के माध्यम से अच्छी तरह से प्रलेखित किया जा सकता है। पहले के मुगल चित्रों से संकेत मिलता है कि अकबर के शासनकाल के दौरान, विदेशी डिज़ाइनों (Designs) की एक श्रृंखला को आभूषण कला में एक नया जीवन मिला था। मुगलों ने गहनों के विकास के लगभग सभी क्षेत्रों में योगदान दिया। गहनों का उपयोग जीवन शैली का एक अभिन्न अंग था, चाहे वह राजा हो, पुरुष या महिला या फिर राजा का घोड़ा ही क्यों ना हो। उस समय महिलाओं द्वारा गहने के 8 जोड़े पहने जाते थे। लोकप्रिय आभूषणों में कलाई के कंगन, बाजूबंद, हार, अंगूठियां, कमरबंद, पायल आदि शामिल थे। पगड़ी के गहनों पर सम्राट का विशेषाधिकार माना जाता था। उस समय यूरोप के प्रभावों से उत्पन्न आभूषणों में लगातार परिवर्तन को पगड़ी के गहनों के डिज़ाइन में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अकबर (Akbar) ने पगड़ी के सामने एक पंख को लगाने की ईरानी प्रवृत्तियों पर रोक लगा दी। वहीं जहाँगीर (Jahangir) ने बड़े मोती के साथ पगड़ी पहनने की अपनी खुद एक शैली शुरू की जोकि औरंगजेब (Aurangzeb) के समय तक सर्वव्यापी हो गई। मुगलकाल में कान के गहने भी काफी लोकप्रिय थे। मुगल चित्रों ने अक्सर कानों में झुमके देखे जाते है और ये कान के गहने पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहने जाते थे। इसके अलावा पुरुषों और महिलाओं के गले के आभूषणों में भी कई विशेषताएं शामिल थी। नाक के गहने केवल महिलाओं द्वारा पहने जाते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में 16 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में नाक के गहनों का प्रचलन मुगलों द्वारा शुरू किया गया था। मुगल काल के दौरान महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले विभिन्न प्रकार के नाक के आभूषणों में फूल (phul), बेसार (besar), लौंग (laung), बालू (balu), नथ (nath) और फूली (Phuli) का गठन किया गया था।
भारतीय आभूषणों की बात करे तो, इन गहनों ने अलंकृत किस्मों, अलंकरणों, और विविध डिजाइन द्वारा विश्व स्तर पर लोगों को मंत्रमुग्ध किया हैं। भारत में सोने और चांदी को न केवल एक कीमती धातु के रूप में देखा जाता है, बल्कि इसे पवित्र भी माना जाता है। यही कारण है कि अक्षय तृतीया और धनतेरस जैसे शुभ दिन पर भारतीय परिवारों द्वारा सोने या चांदी के आभूषण खरीदे जाते हैं क्योंकि इसे भाग्यशाली माना जाता है। वैदिक हिंदू परंपरा भी सोने को अमरता का प्रतीक मानती है। भारतीय उपमहाद्वीप में आभूषणों के उपयोग एक लंबा इतिहास रहा है और समय के साथ आभूषण के उपयोग, इसके निर्माण और निर्माण के तरीके आदि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित हुए हैं। इसलिए, यह बिल्कुल आश्चर्य की बात नहीं है कि भारतीय आभूषणों की वर्तमान किस्मों और इसकी विरासत में पश्चिमी और भारतीय रुझानों के बीच रचनात्मक मिश्रण देखने को मिलता है।
भारतीय आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास
भारत में आभूषणों का उपयोग 5000 साल से भी अधिक समय से होता आ रहा है, जब महाभारत और रामायण के महाकाव्यों का आयोजन हुआ था। कुछ प्राचीन भारतीय आभूषणों के साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता से भी मिले हैं। ये प्रारंभिक आभूषण सरल थे और मोतियों, तार तथा पत्थरों से बनाये गये थे। बाद में, सिंधु घाटी क्षेत्र के लोगों ने धातुओं से गहने और आभूषण बनाना सीखा। 16 वीं शताब्दी में मुगलों के आगमन से आभूषणों के उपयोग और डिजाइन में नवाचार आया। वे भारत में रत्न और धातुओं के उपयोग से बने आभूषणों की कला और ज्ञान लाए। उस समय ये कीमती रत्न राजसी और प्रधानता की पहचान बन गये। इसके बाद भारत में हीरे के गहनों का उपयोग शुरू हुआ। भारत पहला देश है जहां हीरों की खुदाई शुरू हुई। हीरों की पहली खदानें हैदराबाद के पास गोदावरी नदी के पास मिलीं। भारतीय आभूषणों में कई सांस्कृतिक प्रेरणाओं का और विचारों का आदान-प्रदान शामिल हैं, जोकि रूस, यूरोप और भारतीय शिल्पकारों के बीच हुआ। भारत में औपनिवेशिक शासन के बाद यूरोपीय प्रभाव अधिक देखा गया। इस काल में कार्टियर (Cartier), लैक्लोहे फ्रेरेस (Lacloche Frères), चौमेट (Chaumet), वान क्लीफ एंड आर्ल्स (Van Cleef & Arples), मेलारियो (Mellerio), और मौबसिन (Mauboussin) जैसे आभूषण घरों के प्रसिद्ध नाम भारतीय परंपरा का हिस्सा बन गए। इस प्रकार इतिहास और परंपराओं का समापन भारतीय आभूषणों के विभिन्न रूपों से हुआ है, जिन्हें हम आज देखते हैं।
भारत में आभूषणों का न केवल पारंपरिक और सौंदर्य मूल्य है, बल्कि वित्तीय संकट के समय में सुरक्षा के स्रोत के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। शुरुआती दौर में आभूषणों का विकास कला के रूप में हुआ था। भारतीय गहनों की सुंदरता और उनके जटिल डिज़ाइन का श्रेय कई प्रयासों में निहित है। भारतीय आभूषणों ने कुचिपुड़ी (kuchipudi), कथक (kathak) या भरतनाट्यम (bharatnatyam) जैसे भारत के विभिन्न लोकप्रिय नृत्य रूपों की सुंदरता को उजागर करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विभिन्न नृत्य रूपों का प्रदर्शन करने वाले शास्त्रीय नर्तकों को शानदार भारतीय आभूषणों से अलंकृत करके एक उत्कृष्ट रूप दिया जाता है। बालों से लेकर पैर तक भारतीय महिलाओं की सुंदरता को उजागर करने में आभूषणों का एक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में बनाए गए गहनों की विविधता न केवल सौंदर्य बोध को पर्याप्त करने के लिए है, बल्कि धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी है। यहां न केवल मनुष्यों को गहने पहनाए जाते हैं, बल्कि यह विशेष रूप से देवी-देवताओं और यहां तक कि हाथियों, गायों और घोड़ों जैसे घरेलू पशुओं के लिए भी तैयार किए जाते हैं।
भारतीय गहनों में व्यापक विविधता, मुख्य रूप से क्षेत्रीय जरूरतों के आधार पर डिजाइनों में अंतर के कारण है। जिसमें विभिन्न संस्कृतियों और उनकी जीवन शैली के अलग-अलग अंदाज शामिल हैं। प्राचीन काल से ही भारत के शाही वर्ग द्वारा गहनों की कला को संरक्षण दिया गया है। भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रसिद्ध आभूषणों के डिज़ाइन पारंपरिक और समकालीन दोनों शैलियों में भारतीय आभूषणों को एक विशाल विविधता प्रदान करते हैं। तमिलनाडु और केरल के सोने के आभूषणों के डिज़ाइन प्रकृति से प्रेरित हैं और कुंदन और मीनाकारी शैली के आभूषण मुगल राजवंश के डिज़ाइन से प्रेरित हैं। केवल सोना ही नहीं, पूरे भारत में चांदी के गहनों की भी एक विशाल विविधता देखने को मिलती है। चांदी के मनके से बने आभूषण विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में लोकप्रिय हैं। विभिन्न कीमती और अर्ध कीमती पत्थरों में उपलब्ध भारतीय गहने भी दुनिया भर में व्यापक रूप से लोकप्रिय हैं।
निस्संदेह, भारतीय गहनों की यात्रा बहुत लंबी रही है, आज भारत में गहनों के लिए प्यार का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि भारत के हर शहर में ज्वेलरी की दुकानें हर जगह मौजुद हैं जहां ढेरों डिजाइनों के आभूषण उपलब्ध हैं। दुकानें विभिन्न अवसरों के लिए पारंपरिक और आधुनिक दोनों गहने को लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराती हैं। गहनों का उपयोग अब केवल अत्यधिक संपन्न वर्गों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह निम्न आय वाले वर्ग के लोगों के लिए भी आसानी से उपलब्ध है। आज ये अति सुंदर और जटिल पारंपरिक डिजाइन के आभूषण सभी वर्गों की शोभा बढ़ा रहे है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.