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वर्तमान समय में एलर्जीक (Allergic) श्वसन संबंधी विकारों की उपस्थिति लोगों में अत्यधिक बढ़ रही है, और यह केवल कुछ क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मौजूद है। बच्चों में इस समस्या या रोग के बढ़ने का मुख्य कारण भले ही आनुवांशिक प्रवृत्ति है, लेकिन शहरीकरण, वायु प्रदूषण और पर्यावरण में मौजूद तंबाकू का धुआं ऐसे अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं, जो श्वसन संबंधी विकारों को बढ़ाने में अत्यधिक योगदान देते हैं। भारत के 131 करोड़ लोगों में से लगभग 6% बच्चों और 2% वयस्कों को अस्थमा है। इनमें से अधिकांश लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है और अमीर और गरीब लोगों को प्राप्त होने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में व्यापक अंतर है। फार्मेसियों (Pharmacies) के पास लगभग सभी प्रकार के इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (Inhaled corticosteroids), β2- एगोनिस्ट (β2-agonist) और इनहेलर्स (Inhalers) के संयोजन मौजूद हैं, लेकिन ये मौखिक नियमनों (Oral formulations) की तुलना में महंगे हैं।
विभिन्न प्रकार के शोध और अध्ययन यह दर्शाते हैं, कि शहरीकरण और श्वास सम्बंधी विकारों के बीच मजबूत सम्बंध है, क्यों कि, शहरीकरण खराब पोषण, कम गतिविधि, और यातायात या उद्योग से संबंधित वायु प्रदूषण जैसे कारकों का नेतृत्व करता है और ये कारक लोगों में श्वसन संबंधी विकारों की तीव्रता को बढ़ाने में मदद करते हैं। अस्थमा की व्यापकता निम्न-और मध्यम-आय वाले देशों में अधिक देखी जा रही है, जबकि, उच्च-आय वाले देशों में इसमें गिरावट दर्ज की गयी है। यद्यपि विकसित देशों में इसकी व्यापकता देखी जाती है, लेकिन यह विकासशील देशों में अधिक घातक है। यह एक ऐसी जटिल बीमारी है, जो प्रभावितों के सामाजिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण को प्रभावित करती है। इसके अलावा अस्थमा सहित राइनाइटिस (Rhinitis) और एक्जिमा (Eczema) जैसे एलर्जी संबंधी विकार रोगों की संख्या, मृत्यु दर और आर्थिक बोझ में भी योगदान देते हैं। अधिकांश देशों के लिए अस्थमा उनकी आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां उत्पन्न करता है। भारत में, अस्थमा के मामले में आर्थिक बोझ के आंकड़े बहुत कम हैं, किंतु फिर भी कुछ अध्ययन इस पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं। अस्थमा, श्वसन लक्षण और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस (Chronic Bronchitis) महामारी विज्ञान के भारतीय अध्ययन के अनुसार, 2011 में लगभग 1.723 करोड़ के अनुमानित बोझ के साथ 2007 और 2009 के बीच अस्थमा की व्यापकता दर 2.05% थी। दुनिया के कुल अस्थमा रोगियों का 1/10 वाँ भाग भारत में रहता है तथा रोग से संबंधित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत अस्थमा के रोगियों पर एक महत्वपूर्ण बोझ डालती है। 4-वर्ष की अवधि (2012-2016) में इसके इलाज की कीमतों में 43% की वृद्धि हुई है तथा गंभीर अस्थमा के लिए रखरखाव उपचार और भी अधिक महंगा होने की संभावना है। लंग इंडिया (Lung India), द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, दक्षिण भारत के एक निजी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र में अस्थमा के इलाज की लागत लगभग 18,737 रुपये है। गरीब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा अस्थमा रोगियों के लिए सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.2% खर्च करती है तथा इसका एक बड़ा हिस्सा भारतीय अस्थमा रोगियों की पहुंच से बाहर है। गरीब सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी अस्थमा के इलाज में बाधा बनकर इसे बढ़ाने में योगदान देती है और बदले में, इसके उपचार की लागत में और अधिक वृद्धि करती है।
गरीबी, खराब शिक्षा और जागरूकता, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे की कमी, स्वास्थ्य देखभाल पर कम खर्च, सुविधाओं में असमानता और कुछ पर्यावरणीय बाधाएँ आदि उन कारकों में शामिल हैं, जो भारत में अस्थमा के इलाज में बाधा बनते हैं। निवारक देखभाल और प्रारंभिक उपचार तक उचित पहुँच के साथ अस्थमा के आर्थिक बोझ को कम किया जा सकता है। इसके अलावा आपातकालीन विभागों के बजाय प्राथमिक देखभाल स्वास्थ्य प्रदाताओं का उपयोग भी अस्थमा के आर्थिक बोझ को कम करने में मदद कर सकता है।