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कुछ-कुछ समय के अंतराल में अंतरिक्ष से चट्टानें वायुमंडल में प्रवेश करती रहती हैं, जिन्हें सामान्यत: उल्का कहा जाता है। अभी कुछ समय पहले दिल्ली से आसमान में एक उल्का को फटते हुए देखा गया था, यह धमाका 37.1 किलोमीटर प्रति सेकंड - या 133,560 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से वायुमंडल से टकराने वाले उल्का पिंड का था जो भूमि से सिर्फ 0।7 मीटर की दूरी पर था। हालांकि इस धमाके से किसी को चोट नहीं आई थी, लेकिन धमाके से कई लोग हैरान जरूर हो गए थे। क्षुद्रग्रह और उल्का जब वायुमंडल से टकराते हैं तो विस्फोटित हो जाते हैं, ऐसा इसिलिए होता है क्योंकि यह अंतरिक्ष में अपनी संपूर्ण यात्रा के दौरान पहली बार वायुमण्डल में प्रतिरोध का सामना करते हैं। हवा इन चट्टान के छिद्रों और दरारों में प्रवेश कर इन्हें अलग करती है, जिससे विस्फोट होता है।
आग के गोले उल्का होते हैं जो सामान्य से अधिक चमकीले दिखाई देते हैं। जिस वेग से वे पृथ्वी के वायुमंडल पर प्रवेश करते हैं, उसके कारण एक मिलीमीटर से बड़े टुकड़े में एक उज्ज्वल प्रकाश उत्पन्न करने की क्षमता होती है, क्योंकि वे ऊपरी आकाश से टकराते हैं। ये चमकीले उल्का वे हैं जिन्हें हम आग का गोला कहते हैं। नासा (NASA) के अनुसार हर साल 300,000 अंतरिक्ष चट्टानों में से मात्र एक अंतरिक्ष चट्टान पृथ्वी पर क्षति का कारण बन सकती है। अत: यह कहा जा सकता है कि इनके माध्यम से विनाशकारी घटना होना असंभव नहीं है। नासा वर्तमान में क्षुद्रग्रह बेन्नू (Bennu) का अध्ययन कर रहा है, जहां 2018 में इसका ओएसआईआरआईएस-रेक्स (OSIRIS-Rex) अंतरिक्ष यान भेजा था। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष चट्टान जो 500 मीटर लंबी हैं, के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करना है। नासा को डर है कि क्षुद्रग्रह, जिसमें पृथ्वी पर किसी देश का सफाया करने की क्षमता है, अगले 120 वर्षों के भीतर पृथ्वी पर एक बड़ा विस्फोट कर सकता है।
नासा के प्रबंधक जिम ब्रिडेनस्टाइन (Jim Bridenstine) ने पृथ्वी पर क्षुद्रग्रह के भावी खतरे को लेकर चेतावनी दी है। ब्रिडेनस्टाइन ने कहा अंतरिक्ष एजेंसी (Space agency) और अन्य क्षुद्रग्रह वैज्ञानिकों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लोग यह समझें कि यह खतरा वास्तविक है, न कि केवल बड़े बजट (big budget) की ब्लॉकबस्टर (blockbuster ) फिल्म निर्देशकों की कल्पना। हम जानते हैं कि डायनासोर के पास एक अंतरिक्ष प्रोग्राम (space program) नहीं थे। लेकिन हमारे पास हैं, और हमें इसका उपयोग करने की आवश्यकता है, ब्रिडेनस्टाइन ने कहा, जिस प्रकार चन्द्रमा में जाने के प्रयास किए जा रहें हैं उसी प्रकार ग्रहों की रक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। फरवरी 2013 में जब चेल्याबिंस्क (Chelyabinsk ) उल्का पिण्ड की घटना हुयी थी इससे 1,600 से अधिक लोगों को घायल हो गए थे। नासा के अनुसार, इसने लगभग 440,000 टन टीएनटी (TNT) के बराबर ऊर्जा निष्कासित की थी। उस घटना के दौरान ब्रिडेनस्टाइन एक महीने के लिए ओकलाहोमा (Oklahoma) में कांग्रेस के सदस्य थे।
इन्होंने कहा पिछले सौ वर्षों में इस प्रकार की घटना तीन बार हो चुकि है। वर्तमान में, दुनिया भर में दो क्षुद्रग्रह-केंद्रित मिशन (Mission) चल रहे हैं पहला है नासा का ओएसआईआरआईएस-आरईएक्स जो बेन्नू क्षुद्रग्रह की जांच कर रहा है और दूसरा है जापान का हायाबुसा 2 अंतरिक्षयान जिसने हाल ही में रायुगु (Ryugu) क्षुद्रग्रह के विषय में जानने के लिए इस पर बमबारी की।
गॉर्डन एल। डिलो (Gordon L. Dillow) के द्वारा लिखी गई पुस्तक (Book) फायर इन द स्काई (Fire in the Sky) में पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों से होने वाले संभावित जोखिमों और उनसे बचने के सुझावों के बारे में बताया गया है। इस पुस्तक में बताए गए खतरों में एक बड़ा ख़तरा (threat) क्षुद्रग्रह का हमारे ग्रह से टकराव (collision) है। किसी क्षुद्रग्रह या किसी अन्य आकाशीय पिंड के बारे में जानने के पश्चात हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न उठता है कि एक क्षुद्रग्रह, धूमकेतु या किसी अन्य आकाशीय पिंड के पृथ्वी से टकराने से अधिकतम कितना नुकसान हो सकता है? इस प्रश्न का उत्तर हमें विशेषज्ञों द्वारा की गई शोध से यह मिलता है हमें खतरे का अनुमान इसी बात से लगा लेना चाहिए कि 65 मिलियन साल पहले डायनासोर की बहुत बड़ी प्रजाती का अन्त भी एक आकाशीय पिंड के पृथ्वी से टकराने से ही हुआ था। हालाँकि छोटे क्षुद्रग्रह इतने हानिकारक नहीं होते हैं और इन क्षुद्रग्रहों से निकलने वाले पदार्थ हमारे लिए कई प्रकार से लाभकारी हो सकते हैं।
वर्ष 2019 में, क्षुद्रग्रह से पृथ्वी की रक्षा-कार्यों ( Planetary-Defense Programs) पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (American Space Agency NASA) द्वारा 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर (US Doller $) का बजट घोषित किया गया। हालाँकि यह नासा के कुल बजट जोकि 21।5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट का एक प्रतिशत (1 Percent) भी नहीं है। इन क्षुद्रग्रहों को रोकने के तरीकों में पहला परमाणु हथियारों (Nuclear Weapons) का प्रयोग है परंतु इसके नकारात्मक प्रभाव भी हैं। अत: दूसरा और प्रभावशाली तरीका काइनेटिक प्रभावकारक (Kinetic Impactors) है। इसमें तोप जैसी तकनीक के माध्यम से धातु के भारी टुकड़े (Heavy Chunk Of Metal) को एक मानवरहित अंतरिक्ष यान (Unmanned Spacecraft) पर लोड (Load) किया जाता है। इससे क्षुद्रग्रह नष्ट नहीं होता, बल्कि इसे छोटे-छोटे टुकड़ों (Tiny Pieces) में खंडित (Destroy) कर देता है जिससे इसकी गति (Speed) धीमी हो जाती है और यह पृथ्वी को नुकसान नहीं पहुँचता है। नासा ही नहीं विश्व के कई सार्वजनिक एवं निजी अंतरिक्ष संगठन इस प्रकार के भावी खतरे से निपटने के लिए अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। हालांकि यह प्रयास कहां तक सफल होंगे यह कहना थोड़ा कठिन होगा।