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सुबह-सुबह उठते ही या फिर दिन भर की थकावट दूर करने के लिए सभी चाय पीते हैं, फिर वो कोई कामगार हो या कोई साहिब। दिन में कभी भी चाय पीने के लिए हर कोई तैयार होता है, चाय को कभी कोई ना नहीं करता। चाय उत्पादन और प्रसंस्करण अत्यधिक गरीबी को कम करने, भूख के खिलाफ लड़ाई, महिलाओं के सशक्तीकरण और स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्थायी उपयोग में योगदान देता है। हमारे द्वारा पसंद की जाने वाली यह सुगंधित चाय दरसल एक आकस्मिक घटना की वजह से बनने वाला एक उत्पाद है। एक लोकप्रिय मिथक के अनुसार, प्रसिद्ध चीनी (China) सम्राट शेंनॉन्ग (Shennong) उबला हुआ पानी पी रहे थे, जब कुछ पत्ते उड़कर कटोरे में गिर गए, जिससे उसका रंग और स्वाद बदल गया। सम्राट इसके स्वाद और उपचार गुणों से बहुत प्रभावित हुए और इस तरह चाय को पसंद करने लगे।
किंवदंती के अनुसार, भारत में चाय पीने का इतिहास 2000 वर्ष पहले एक बौद्ध भिक्षु के साथ शुरू हुआ था; इन बौद्ध भिक्षु ने सात वर्षों की तपस्या करने का निश्चय किया था, लेकिन पाँचवें वर्ष में वह लगभग सो गए। व्याकुलता में उन्होंने पास की झाड़ी से कुछ पत्तियाँ चबानी शुरू कर दी और जागते रहने में सक्षम हो गए। ये जंगली चाय के पौधे की पत्तियाँ थीं। 16 वीं शताब्दी के भारत में, स्थानीय लोग जंगली देशी चाय के पौधों की पत्तियों का सेवन पेय के रूप में या सब्जी के रूप में तैयार करते थे। वास्तव में, यह प्राचीन भारत में आयुर्वेद का एक अभिन्न अंग भी था, जिसका गंभीर विकृतियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता था।
भारत में वाणिज्यिक चाय बागानों को पहली बार ब्रिटिश (British) नियम के तहत स्थापित किया गया था जब 1823 में असम (Assam) में स्कॉट (Scott) निवासी रॉबर्ट ब्रूस (Robert Bruce) ने अपनी असम यात्रा के दौरान देशी किस्म के कैमेलिया साइनेंसिस (Camellia sinensis) पौधों की खोज की गई थी। इसके अलावा, स्कॉट निवासी वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट फॉर्च्यून (Robert Fortune) को चीनी साम्राज्य से पौधे चोरी करके भारत में चीनी चाय के पौधों को पेश करने का श्रेय दिया जाता है। वास्तव में ब्रिटिश चीन का चाय पर से एकाधिकार को हटाना चाहते थें। पहली बार अंग्रेजी चाय बाग़ का निर्माण ऊपरी असम (Assam) क्षेत्र के चबुआ (Chabua) में वर्ष 1837 में किया गया था जबकि 1840 में उस वर्ष को चिन्हित किया गया था जिसमें असम चाय कंपनी (Company) ने पहली बार इस क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से चाय का उत्पादन शुरू किया था। असम, जो कि भारत का प्रमुख चाय उत्पादक राज्य है, अंग्रेजों के समय से बगंटाइम (Bagantime) नामक एक विशेष समय क्षेत्र का अनुसरण करता है, जो भारतीय मानक समय से एक घंटे पहले है।
भारतीय चिकित्सा सेवा के एक नागरिक शल्य-चिकित्सक आर्थर कैंपबेल (Arthur Campbell) द्वारा 1841 में दार्जिलिंग (Darjeeling) के भारतीय जिले में चाय रोपण शुरू किया गया था। कैंपबेल को 1839 में काठमांडू (Kathmandu), नेपाल (Nepal) से दार्जिलिंग स्थानांतरित किया गया था। 1841 में, उन्होंने कुमाऊं से चीनी चाय के पौधे (कैमेलिया साइनेंसिस) के बीज लाए और दार्जिलिंग में चाय के पौधे के साथ प्रयोग करना शुरू किया। दार्जिलिंग चाय का व्यावसायिक विकास 1850 के दशक के दौरान शुरू हुआ। प्रारंभ में, भारतीयों द्वारा चाय को ज्यादा पसंद नहीं किया गया था। ब्रिटिशों को भारतीयों के समक्ष चाय को लोकप्रिय बनाने में वर्षों का समय लगा। अंग्रेजों द्वारा स्थापित टी एसोसिएशन (Tea Association) द्वारा एक सफल विज्ञापन अभियान के बाद, 1920 के दशक में एक आनंदप्रद पेय के रूप में चाय की व्यापक लोकप्रियता शुरू हुई। भारतीयों ने अपनी चाय को पर्याप्त दूध और चीनी, गुड़ और मसालों जैसे अदरक, दालचीनी या इलायची के साथ बनाना शुरू किया गया। चांदी के बक्से में प्रस्तुत चाय भी अमीरों के बीच एक लोकप्रिय उपहार बन गई थी। आज, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक होने पर गर्व करता है, जिसके पास सबसे अधिक तकनीकी रूप से सुसज्जित चाय उद्योग है और वैश्विक चाय उत्पादन का लगभग 31% हिस्सा है। असम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और केरल चाय उत्पादन के लिए अग्रणी राज्य हैं, दार्जिलिंग चाय दुनिया की सबसे विशिष्ट चाय में से एक है।
वहीं चाय केवल एक पेय नहीं है, यह अपने आप में एक संस्कृति है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि कॉफी (Coffee) कितनी लोकप्रिय है, चाय हमेशा चाय प्रेमियों और पारखी लोगों के दिल में एक विशेष स्थान रखती है।