भारतीय खाद्य में चावल का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है जो यहाँ की पारंपरिक खाद्य प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है। संपूर्ण भारत में चावल के अनेकों पकवान पकाए जाते हैं जिनमें से एक है पुलाव। पुलाव को विभिन्न राज्यों में अलग अलग तरीके से पकाया जाता है, इसका स्वाद अलग-अलग होता है और इनमें डाली जाने वाली सामग्री भी भिन्न होती है। वहीं भारतीय पारंपरिक मुस्लिम घरों में मासाहारी पुलाव एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है चाहे कोई दावत हो, या अंतिम संस्कार का समय या फिर प्रार्थना सभा आदि का आयोजन, इन सभी समहरों पर पुलाव का एक अहम् स्थान है। इस चीज से तो रामपुरवासी भी अवगत है क्योंकि रामपुर का लजीज यखनी पुलाव को सांस्कृतिक मान्यता के चलते किसी के गुजर जाने के बाद भोजन में परोसा जाता है, यह लखनऊ और हैदराबाद की बिरियानी से भिन्न होता है।
यखनी पुलाव को बनाने के लिए पहले मीट (meat) को मसाले के साथ तैयार किया जाता है, फिर उसमें चावल को डाला जाता है। जबकि बिरियानी में चावल को अलग से मसालेदार पानी में पकाया जाता है और फिर उसमें मीट को डाला जाता है और धीमी आंच में पकाया जाता है। यखनी पुलाव काफी हद तक फारसी (Persian) तरीके से बनाए जाने वाले पुलाव की तरह लगता है। खाने के इतिहासकार लिजी कोलिंघम (Lizzie Collingham) द्वारा अपनी पुस्तक करी: अ टेल ऑफ़ कुक्स एंड कानकॉरर्स (Curry: A Tale of Cooks and Conquerors) में बताया गया है कि हुमायूँ और अकबर के समय में फारसी पिलाफ़ (Pilaf) जब मुगल के मसालेदार व्यंजनों से मिला तब बिरियानी का उद्भव हुआ।
रामपुर के रजा पुस्तकालय में रखी हुई पुरानी फ़ारसी पाण्डुलिपियों में विभिन्न व्यंजनों का जिक्र देखने को मिलता है, ये पांडुलिपियां नवाब कल्ब अली ख़ान (Kalb Ali Khan) के शासन के दौरान लिखी गयी थी। रामपुर में स्थित ख़ासबाग़ महल में चावल के पकवान बनाने की एक अलग रसोईं हुआ करती थी जिसमें सबसे उत्तम और नए चावल के पकवान बनाने वाले रसोइयाँ नियुक्त थे और यहाँ पर करीब 200 तरह के व्यंजन पकाए जाते थे। नवाब होश यार जंग बिलग्रामी (Nawab Hosh Yaar Jung Bilgrami), जो 1918 से 1928 तक नवाब हामिद अली खान (Nawab Hamid Ali Khan) के दरबार से जुड़े रहे थे, अपने वृतांत ‘मसाहिदात’ में लिखते हैं कि रसोई में 150 रसोइया थे, प्रत्येक रसोइया किसी एक व्यंजन में विशेषज्ञता प्राप्त किये हुए थे। यदि बात की जाएं व्यंजनों की पाक विधि कि तो वे काफी संक्षिप्त रूप से लिखी गई थी, ताकि व्यंजन को आसानी से पकाया जा सके।
1857 की क्रान्ति के बाद लखनऊ और दिल्ली से कई रसोइयें बेरोजगार हो गए थे उन्होंने रोजगार की तलाश में रामपुर की और रुख किया जिसके कारण यहाँ के भोज में कई प्रकार देखने को मिले। हांलाकि आज वर्तमान समय में रामपुर में मूल रूप से यखनी पुलाव बनाया जाता है परंतु पुस्तकालय की पांडुलिपियों की माने तो यहाँ पर करीब 50 शैलियों का प्रयोग करके पुलाव बनाया जाता था। इन पुलावों में शाहजहानी पुलाव, मीठा पुलाव, पुलाव शीर शक्कर, अन्नानास पुलाव, इमली पुलाव आदि शामिल थे, वहीं ऐसा माना जाता है कि शाहजहानी पुलाव को संभवतः दिल्ली से रामपुर में लाया गया होगा।
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