रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक दर्पण है, यह शब्द वीर क्षत्रिय राजवंशों व उनके इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है। ये भारत के वो वीर हैं जिन्होंने कलकत्ता की ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company - EIC) और अवध नवाबों के साथ 1850 से पहले रोहिलखंड राज्य को बचाने के लिये युद्ध लड़े। इन्होंने स्वंय के टुकड़े-टुकड़े होने तक और अंतिम श्वांस लेने तक, धूल के कण के बराबर भी दुश्मनों को रोहिलखंड की भूमि पर कदम नहीं रखने दिया। इनकी बहादुरी और साहस के कारण इंग्लैंड (England) में रोहिल्ला नाम बहुत प्रसिद्ध हुआ। अधिकांश इन्हें भारत के शक्तिशाली सेनानियों के रूप में याद करते हैं, जो कि मूल रूप से अफगानिस्तान के थे। रोहिल्लाओं के साहस से प्रभावित होकर ब्रिटिशों ने 1904 में, इंग्लैंड ने लंदन (London) और कलकत्ता के बीच लोगों को स्थानांतरित करने के लिए बनाए गये एक नए जहाज़ का नाम ही रोहिल्ला रख दिया, इस जहाज के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन हमने पहले भी किया जिसे आप हमारे इन लेखों (रोहिल्ला के सम्मान में रखा गया था एस.एस. रोहिल्ला जहाज़ का नाम- https://rampur.prarang.in/posts/4199/The-S-S-Rohilla-ship-was-named-in-honor-of-Rohilla, रोहिल्ला के नाम का जहाज़ मिला टाइटैनिक से भी बड़े हादसे से- https://rampur.prarang.in/posts/2377/ss-rohilla-ship-sunk-worse-than-titanic) में देख सकते हैं। परंतु इस रोहिल्ला जहाज़ का एक दुखद अंत हुआ।
ब्रिटिश भारत के इतिहास में शायद ये सबसे भयानक घटनाओं में से एक है जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रोहिल्ला जहाज को एक नौसैनिक अस्पताल के जहाज़ में बदल दिया गया था।
यह जहाज 29 अक्टूबर, 1914 को 229 व्यक्तियों के साथ क्वींसफेरी (Queensferry) से निकला परंतु बिगड़ते मौसम के कारण सुबह 4 बजे समुद्र में जबर्दस्त तुफान ने दस्तक दी। 30 अक्टूबर 1914 को जब जहाज व्हिटबी (Whitby) बंदरगाह के प्रवेश द्वार के दक्षिण में सिर्फ एक मील की दूरी पर था तो यह सॉल्ट्विक नैब (Saltwick Nab) चट्टान से जा टकराया और डुब गया, इस हादसे में 84 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस भयावी दृश्य को चट्टानों के ऊपर इकट्ठी हुई भीड़ द्वारा भी देखा गया था। उस समय युद्ध प्रतिबंधों के कारण तट पर अंधेरा था जिससे जहाज़ का कप्तान यह अंदाजा नहीं लगा पाया कि वे तट से सिर्फ एक मील की दूरी पर हैं, उसे लगा कि वे तट से मीलों की दूरी पर है। यह प्राणघातक घटना व्हिटबी की सबसे बड़ी समुद्री आपदा साबित हुई, को आज भी आरएनएलआई (RNLI) के इतिहास में सबसे भयानक मानी जाती है। इस दुर्घटना के बाद बचाव कार्य एक लंबे समय तक चला। यह रॉयल नेशनल लाइफबोट इंस्टीट्यूशन (Royal National Lifeboat Institution (RNLI)) के महान बचाव कार्यों में से एक था।
इस बचाव कार्य के दौरान 229 लोगों की जान बचाई गयी, जो 50 घंटे से फंसे हुये थे। एक किंवदंती के अनुसार, कप्तान नीलसन (Captain Neilson) द्वारा जहाज़ में मौजूद काली बिल्ली को अपनी बांह में दबाकर बचाया गया था। इस बचाव कार्य को इसलिये भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि छह जीवनरक्षक नौकाओं और अन्य लोगों द्वारा अपनी जान की परवाह किये बिना समुद्र की विषम परिस्थितियों में लोगों की जान बचाई गई थी। इस कार्य का लेखा जोखा कॉलिन ब्रिटैन (Colin Brittain) ने अपनी पुस्तक इन टू द माएलस्ट्रॉम: द व्रेक ऑफ एच.एम.एच.एस. रोहिल्ला (Into the Maelstrom: The Wreck of HMHS Rohilla) में किया है। कॉलिन ब्रिटैन एपिडर्मॉइड ब्रेन ट्यूमर सोसाइटी (Epidermoid Brain Tumor Society) के एक दीर्घकालिक सदस्य थे। इसके साथ ही वे व्हिटबी में दो दशक से भी अधिक समय तक बीएसएसी एडवांस्ड डाइवर (BSAC Advanced Diver) और ओपन वाटर इंस्ट्रक्टर (Open Water Instructor) रहे। अपनी पुस्तक में उन्होंने जीवनरक्षक नौकाओं और स्थानीय जनता के साहसिक कार्यों का वर्णन किया है जो बर्फीले पानी और भयावह परिस्थितियों होने के बावजूद भी उन लोगों तक पहुंचे जो रोहिल्ला जहाज के मलवे में फसे थे। हालांकि ब्रिटैन पहले इंसान नहीं थे जिन्होंने इस बचाव घटना का वर्णन किया परंतु जिस विस्तार पूर्वक जानकारी उनकी पुस्तक में मिलती है उतनी और कहीं नही मिलती। यह पुस्तक जीवनरक्षक दल और अन्य लोगों द्वारा किए गए प्रयासों की कहानी से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों ने चार रजत और तीन स्वर्ण आरएनएलआई (RNLI) पदक जीते।
बताया जाता है कि रोहिल्ला और रीवा बीआई (BI) में ऐसे पहले जहाज थे जो पूर्ण एक्स-रे (X Ray) उपकरणों और वायरलेस रेडियो (Wireless Radio) से लैस थे। लेकिन विडंबना यह है कि इस घटना में वायरलेस रेडियो कोई हाथ नहीं था, जहाज के डुबने की असली वजह सिग्नल लैंप (Signal Lamp) और रॉकेट (rockets) थे। दो साल पहले टाइटैनिक (Titanic) के डूबने से मिले सबक ने जहाज सुरक्षा और उपकरणों में सुधार किया था। रोहिला आपदा का भी इसी तरह का प्रभाव देखने को मिला। इसने रॉकेट ब्रिगेड (rocket brigade) (दाएं) की विफलता पर सभी का ध्यान खीचा। कहते है कि कप्तान नीलसन (Captain Neilson) को यकीन हो गया था कि रोहिल्ला जब चट्टान से टकराया तो वे तट से छह या सात मील की दूरी पर थे। हालांकि पुस्तक में कहा गया है कि इस दूरी को कभी भी स्पष्ट नहीं किया गया था, लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि युद्ध के कारण रोशनी की अनुपस्थिति ने नेविगेशन (Navigation) को बेहद मुश्किल बना दिया होगा जिस कारण दूरी का अंदाजा नहीं लगाया जा सका।
रोहिल्ला जहाज त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले सभी लोगों को याद करने के लिए ब्रिटिश इंडिया ने व्हिटबी में एक स्मारक का निर्माण करवाया था। यहां 1-2 नवंबर 2014 को रॉयल नेशनल लाइफबोट इंस्टीट्यूशन और स्थानीय संगठन ने 100वीं वर्षगांठ के रूप में उन लोगों को याद रखने के लिए श्रद्धांजलि दी जिन्हें बचाया नहीं जा सका।
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