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वैश्विक स्वास्थ्य के एजेंडे (Agenda) में कुपोषण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, एक अनुमान के अनुसार पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में से 45% बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण होती है। विश्व भर में लगभग 165 मिलियन अविकसित बच्चे हैं, और 52 मिलियन कमजोर बच्चे हैं, जिनमें से सबसे अधिक प्रतिशत एशिया (Asia) और उप-दक्षिणी अफ्रीका (Sub‐Saharan Africa) में है। कई निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों (Low and Middle Income Countries (LMIC)) में बच्चे निम्न पोषण या अधिक पोषण के कारण कोई बचपन में मोटापे की तो कोई कमजोरी की मार झेल रहा है। कुपोषण की ही भांति विकलांगता भी विश्वस्तर पर लोगों का प्रभावित कर रही है। LMIC में विलांगता विकराल रूप धारण कर रही है। अनुमानत: 95 मिलियन बच्चों सहित एक अरब लोग विकलांगता के शिकार हैं, और इन विकलांग व्यक्तियों में से 80% LMICs में रहते हैं। बचपन की विकलांगता पोषक तत्वों की कमी (जैसे आयोडीन (Iodine) की कमी), जन्मजात विकारों, संक्रमण, आघात या अन्य कारणों से होती है, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक, दृश्य, श्रवण, बौद्धिक क्षमता पर आघात पहुंचता है।
विकलांगता से जुड़े कई कारक गरीबी और बीमार स्वास्थ्य सहित कुपोषण से भी जुड़े हैं। इस बात के प्रमाण बढ़ते जा रहे हैं कि बचपन की विकलांगता और कुपोषण का सीधा संबंध है. कुपोषण मुख्यत: तब होता है जब पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है या फिर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, या पोषक तत्वों के सेवन में कमी आ जाती है। कम पोषक तत्वों के सेवन के कारण कुछ शारीरिक दुर्बलता जैसे कि सेरेब्रल पाल्सी ((Cerebral Palsy) सीपी) हो सकता है, यह भोजन खाने या निगलने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जिससे बच्चों को खाना खाने में लंबा समय लगता है किंतु देखरेखकर्ता उन्हें वह समय नहीं दे पाते हैं। कुपोषण के कारण हड्डियों का रोग रिकेट्स (Rickets) के होने की संभावना बढ़ जाती है। उच्च आय वाले देशों के शोध से पता चला है कि विकलांग बच्चों में आमतौर पर मोटापे का खतरा अधिक होता है, विशेषकर बौद्धिक रूप से विकलांग बच्चों में। इसके विपरित LMIC में रहने वाले विकलांग बच्चे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की विफलता के कारण कुपोषण से अधिक कमजोर हो सकते हैं। इसके साथ ही इन देशों में गरीबी के कारण हुयी भूखमरी भी एक बड़ा जोखिम है। यहां अधिकतर लोग कार्यरत होते हैं जिस कारण वे विकलांग बच्चों की देखरेख में ज्यादा समय भी नहीं दे पाते हैं। एक शोध से पता चला है कि विकलांग बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में कुपोषण की अधिक संभावना होती है।
विकसित देशों की तुलना में विकासशील राष्ट्रों में कुपोषण की समस्या अत्यंत गंभीर है। इसका प्रमुख कारण गरीबी है। धन के अभाव में गरीब लोग पर्याप्त, पौष्टिक आहार जैसे दूध, फल, घी इत्यादि नहीं खरीद पाते। कुछ तो अनाज भी मुश्किल से प्राप्त कर पाते हैं। लेकिन गरीबी के साथ ही एक बड़ा कारण अशिक्षा एवं अज्ञानता भी है। अधिकांश लोगों, विशेषकर गाँव, देहात में रहने वाले व्यक्तियों को सन्तुलित आहार के बारे में जानकारी नहीं होता है, इस कारण वे स्वयं अपने बच्चों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों का समावेश नहीं कर पाते हैं, जिससे वे स्वयं तो इस रोग से ग्रस्त होते ही हैं साथ ही अपने परिवार को भी कुपोषण का शिकार बना देते हैं।
दुनिया भर में अब तक कुपोषण और विकलांगता की नीति, कार्यक्रम प्रबंधन और पेशेवर काफी हद तक अलग-अलग रहे हैं। हालाँकि, दोनों के बीच संबंधों में अंतर्राष्ट्रीय रुचि बढ़ रही है। कई सामान्य विशेषताओं को साझा करते हुए, आशा है कि दोनों क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संबंध और मजबूत कार्यकारी संबंध महत्वपूर्ण तालमेल और पारस्परिक लाभ पैदा कर सकते हैं. पिछले कुछ समय में हुए शोधों से स्पष्ट ज्ञात हुआ है कि कुपोषण और विकलांगता के मध्य घनिष्ट संबंध है। कुपोषण संपूर्ण जीवनचक्र में कभी भी हो सकता है इसकी शुरूआत माता के गर्भ में मौजूद भ्रूण से हो जाती है। यदि गर्भवती महिला कुपोषण का शिकार होती है तो इसका कुप्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। स्त्रियों में कुपोषण के कारण रक्ताल्पता या एनीमिया (Anemia), घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी हो जाता है।
कुपोषण एक ऐसी समस्या है, जो भारत में लंबे समय से चली आ रही है। परंतु यह ऐसी समस्या नहीं है, जिससे आसानी से निपटा जा सकता है। क्योंकि अल्पपोषण या कुपोषण सिर्फ अपर्याप्त भोजन या पोषक तत्वों की कमी की समस्या नहीं है। इससे लड़ने के लिए सिर्फ पर्याप्त भोजन की ही नहीं, बल्कि उचित स्वास्थ्य दखल (जैसे, सुरक्षित प्रसव की सुविधा, प्रतिरक्षण यानी टीकाकरण), स्वच्छ पेयजल, सार्वजनिक स्वच्छता और सफाई आदि की भी जरूरत है। फिर भी सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी (Centre for Budget and Governance Accountability) और यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा 11 मार्च को जारी की गई एक रिपोर्ट में कुछ घटक ऐसे हैं, जो भूख और कुपोषण की समस्या से निपटने में थोड़ी मदद कर सकते हैं।
1. विभिन्न मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय
कुपोषण से निपटने के लिए, यह जरूरी है कि निम्नलिखित मंत्रालय एक साथ काम करें:
• ग्रामीण विकास
• सार्वजनिक वितरण और नागरिक आपूर्ति
• स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
• महिला बाल विकास
• पेयजल और स्वच्छता
• कृषि
• जाति सम्बन्धी मंत्रालय
• अल्पसंख्यक मंत्रालय
ये मंत्रालय अपने प्रयासों का समन्वय करके यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आवश्यक पोषण सेवाएं वंचित समुदायों तक अवश्य पहुंचे।
2. अल्पपोषण और मोटापे (Obesity) के डेटा (Data) संग्रह में सुधार
उचित नीतियों को केवल तभी डिज़ाइन (Design) किया जा सकता है जब उचित समय पर जानकारी और डेटा एकत्र किया जा सके, और इस डेटा में न केवल कम वजन वाले बच्चों का विवरण होना चाहिये बल्कि अधिक वजन वाले लोगों का भी विवरण होना चाहिये। WHO के अनुसार, 2010 और 2014 के बीच भारत की मोटापा बढ़ने की दर 4% से 4.9% हो गई थी। अल्पपोषण के शिकार केवल कम वजन वाले बच्चे ही नहीं मोटे लोग भी हो सकते हैं।
3. सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में भारी निवेश
केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश में कुपोषण के कम संकेत देखने को मिलते है, आंकड़े बताते हैं कि इन राज्यों में बच्चों की खुशहाली के मामले में अच्छा काम हो रहा है। बाल विकास सूचकांक (Child Development Index) शीर्षक वाले एक पत्रिका में अर्थशास्त्री रेतिका खेरा (Reetika Khera) और जीन ड्रेज़ (Jean Dreze) ने इन राज्यों में तेजी से प्रगति के प्रमुख कारणों का विश्लेषण किया और बताया कि इन राज्यों में प्रारंभिक शिक्षा का एक बड़ा विस्तार किया गया है, स्वास्थ्य और स्वच्छ जल से लेकर सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे तक की आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं की एक विस्तृत श्रृंखला का विस्तार करने में राज्य ने एक रचनात्मक भूमिका निभाई है। केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश समय समय पर निवेश करके सार्वजनिक सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता का विस्तार करते रहते हैं।
4. कल्याणकारी वितरण तंत्र को अधिक उत्तरदायी बनाएं
अक्सर सरकारी योजनायें और सुविधायें पिछड़े वर्ग के समुदायों और दूरस्थ इलाकों तक नहीं पहुँच पाती हैं और इसलिये ये लोग अन्य समुदायों की तुलना में तीव्रता से कुपोषित हो जाते हैं। इसका कारण दुर्गम क्षेत्रों में सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही की कमी है। इसके निवारण के लिये कल्याणकारी वितरण तंत्र को अधिक उत्तरदायी बनने और कानूनों को महत्व देने की आवश्यकता है।
5. कल्याणकारी योजनाओं को चलाने में पंचायतों को भाग की अनुमति दें
आंगनवाड़ी कार्यक्रम बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं, इसलिये ग्राम पंचायतों या स्थानीय निर्वाचित निकायों को बिलों को मंजूरी देने और खाद्य आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान करने के लिए शक्तियों को सौंपने से शायद भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है।
6. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में विविधता लाये
गरीब लोगों को अक्सर केवल चावल और गेहूं उपलब्ध कराये जाते है, परंतु दलहन खाद्य पर्दाथों का वितरण भी जरूरी है। भारत में दलहन और तेल उत्पादन में कमी के कारण, इन वस्तुओं की कीमतें अत्यधिक अस्थिर हैं, जिससे गरीबों के लिए इनका उपयोग करना मुश्किल हो गया है। इसलिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act) के माध्यम से बेहतर पोषण प्रदान करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में विविधता लाने की आवश्यकता है।
उपरोक्त समाधानों के अलावा किशोर लड़कियों के लिए पोषण योजनाओं में विस्तार करके, बेहतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा (MGNREGA) को मजबूत बना कर, भोजन के स्थायी स्रोतों के रूप में जंगलों को पुनर्जीवित और उनकी रक्षा करके, तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक गरीब समुदायों की पहुंच में सुधार करके कुपोषण से लड़ा जा सकता है। ये कार्यक्रम आसानी से एक बड़ी आबादी के लिए जीवनरेखा बन सकते हैं।
सरकार द्वारा इस संदर्भ में काफी प्रयास किये गए हैं और विभिन्न प्रकार की योजनाएँ चलाई जा रही हैं, किंतु इन योजनाओं और प्रयासों के बावजूद हम देश में कुपोषण की चुनौती से पूर्णतः निपटने में असमर्थ रहे हैं। इससे न केवल भारत के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है।
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