जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग |
चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ||
सदाबहार चंदन वृक्षों की आर्थिक और सांस्कृतिक मूल्यवत्ता से सभी परिचित हैं। भारत के कुछ राज्यों में चंदन वृक्ष लगाने पर लगे प्रतिबंधों के कारण, इस दुर्लभ और बहुमूल्य वृक्ष की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है। हालांकि कुछ राज्यों में यह प्रतिबंध हटा लिया गया है। प्रदेश में चंदन वृक्षों की उपज पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, लेकिन इनको काटने से पहले सरकारी अनुमति लेना आवश्यक है। पेड़ के संरक्षण से जुड़े नियम को जानना जरूरी होता है। आज चंदन वृक्ष को संरक्षित करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है यह जानना भी है कि इनको खतरा किन चीजों से है ।
चंदन वृक्ष की खासियत
जीनस सेंटालम (Genus Santalum) प्रजाति की चंदन की लकड़ी बहुत भारी और पीले रंग की होती हैं। दूसरे खुशबूदार पेड़ से अलग चंदन की खुशबू दशकों तक एक ही बनी रहती है। इससे चंदन का तेल भी निकाला जाता है जिसके कई उपयोग होते हैं। इसे दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी में शुमार किया जाता है । चंदन की लकड़ी और तेल की एक खास तरह की खुशबू शताब्दियों से चर्चा में रही है। इस वजह से इनकी कुछ किस्म अतीत में भारी दुरुपयोग का शिकार रही हैं। चंदन मध्यम आकार का आंशिक परजीवी वृक्ष होता है। चंदन वृक्ष में दो प्रमुख हैं-
भारतीय चंदन वृक्ष और ऑस्ट्रेलियन चंदन वृक्ष।
इतिहास
संस्कृत शब्द चंदनं से उत्पन्न इस पेड़ के नाम का मतलब है 'सुगंधित धूप जलाने की लकड़ी'। अंग्रेजी भाषा में चंदन शब्द ग्रीक भाषा, मध्यकालीन लैटिन भाषा और पुरानी फ्रेंच भाषा के जरिए 14- 15 शताब्दी में इस्तेमाल होने लगा। चंदन वृक्ष भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, हवाई और दूसरे प्रशांत द्वीप में पाए जाते हैं।
चंदन वृक्षारोपण पर प्रतिबंध
भारतीय चंदन के वृक्ष की लकड़ी अपने सौंदर्य प्रसाधन एवं औषधीय गुणों के कारण विश्व की सबसे कीमती लकड़ी है। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है। बेमिसाल खुशबू के कारण इस लकड़ी का मूल्य 10000 प्रति किलो है। दक्षिण भारतीय मिट्टी में यह बहुत अच्छा विकसित होता है विशेषकर कर्नाटक और तमिलनाडु में। इसको बहुत कम पानी की जरूरत होती है। साल भर इसमें फूल लगते हैं। यह तोते और कोयल को बहुत आकर्षित करते हैं। सामान्य पेड़ की तरह चंदन के वृक्ष भी कार्बन डाइऑक्साइड सोते हैं और ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं।
2002 तक व्यक्तिगत स्तर पर चंदन के पेड़ लगाना प्रतिबंधित था। आज चंदन के पेड़ तो लगा सकते हैं, लेकिन इन्हें काटकर खुले बाजार में बेचना गैरकानूनी है। सरकारी वन विभाग से अनुमति लेनी होती है। वे अपने अधिकारियों को भेजकर पेड़ कटवा कर उसके मूल्य का भुगतान कर देते हैं।
इस तरह के प्रतिबंध ज्यादातर लोगों को चंदन के वृक्ष लगाने से विमुख करते हैं। इसी के साथ एक सुरक्षा संबंधी खतरा भी है क्योंकि चंदन वृक्षों की काफी कमी है, इसलिए भी अवांछित लोग इसकी तरफ आकर्षित हो सकते हैं। भारत में इन प्रतिबंध के कारण हमारे 90% चंदन के पेड़ समाप्त हो चुके हैं। बहुत जल्दी यह दुर्लभ श्रेणी में आ जाएंगे जबकि दूसरे देशों में लोग चंदन के पेड़ मुक्त भाव से लगा रहे हैं और इसकी लकड़ी का निर्यात कर रहे हैं। प्रोफेसर डी. नरसिंहम, वनस्पति शास्त्री का मानना है कि अगर भारत में भी प्रतिबंधित चंदन के पेड़ लगाने की अनुमति मिल जाए तो इन पेड़ों का संरक्षण संभव हो सकता है और इसके लुप्त होने का खतरा टाला जा सकता है।
चंदन का सांस्कृतिक महत्व
चंदन और श्रीगंधा नाम से लोकप्रिय वृक्ष का बहुत व्यावसायिक और चिकित्सकीय मूल्य है। हमारे पारंपरिक जीवन में इसका बच्चे के पालने से लेकर अंतिम संस्कार तक में प्रयोग प्रचलित है। सरकार तस्करों से इन वृक्षों की रक्षा करके इनके विकास का ऐसा तंत्र स्थापित करना चाहती है ताकि ना केवल सरकार, बल्कि इसके उत्पादक को भी पूरा लाभांश मिल सके। इसके लिए वन विभाग के अधिकारी न केवल वृक्षों की सुरक्षा की चौकसी कर रहे हैं, बल्कि गांव में जन जागरण अभियान भी चला रहे हैं।
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