City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2 | 1 | 1 | 1 | 5 |
This post was sponsored by - "irfan"
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
वर्तमान समय में इत्र मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इत्र जिसे अत्तर (Attar) भी कहते हैं, एक प्रकार का तेल है, जिसे वनस्पति स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। आमतौर पर इन तेलों को हाइड्रो (Hydro) या भाप आसवन (Steam distillation) के माध्यम से निकाला जाता है। इत्र को रासायनिक माध्यमों से भी प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त इत्र अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं तथा इनकी सुगंध लंबे समय तक बनी रहती है। इत्र निर्माण प्रक्रिया में इत्र के आधार के रूप में, कस्तूरी या मस्क (Musk) महक का भी उपयोग किया जाता है। कस्तूरी मूल रूप से कस्तूरी नामक हिरन की नाभी में स्थित एक ग्रंथि है, जिससे उत्पादित पदार्थ की सुगंध बहुत तीव्र होती है। यह दुनिया के सबसे महंगे पशु सम्बंधित पदार्थों में से एक है। स्रोत के आधार पर इत्र विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे, प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त ‘प्राकृतिक इत्र’ और रासायनिक तरीके से बनाये गये ‘रासायनिक इत्र’। इसके अलावा इत्र का प्रकार इस बात पर भी निर्भर करता है कि, इत्र बनाने के लिए कौन से फूल या पदार्थ उपयोग किये जा रहे हैं? इत्र को आमतौर पर शरीर पर उनके कथित प्रभाव के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है। जैसे - ऊष्मा प्रदान करने वाले इत्र जैसे मस्क, एम्बर (Amber), केसर आदि को सर्दियों के मौसम के लिए उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि, ये शरीर के तापमान को बढ़ाते हैं। इसी तरह, गुलाब, चमेली, केवड़ा, मोगरा आदि इत्रों का उपयोग गर्मियों के मौसम में ठंडक प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इत्र का प्रयोग विश्व में आदिकाल से होता आ रहा है तथा पूरे विश्व में इसके इतिहास की बात की जाए तो, मिस्र (Egypt) के लोगों को प्राचीन दुनिया में इत्र बनाने का मुख्य श्रेय दिया जाता है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के पौधों और फूलों से इत्र का निर्माण किया। इत्र के इस रूप को विशिष्ट प्रकार का सुगंधित उत्पाद बनाने वाले एक प्रसिद्ध चिकित्सक अल-शायख अल-रईस (Al-Shaykh al-Rais) द्वारा विकसित किया गया। उन्होंने गुलाब और अन्य पौधों की सुगंध के आसवन की विभिन्न तकनीकों का भी विकास किया। उनके द्वारा बनाया गया गुलाब जल, पिछले संस्करणों की तुलना में बहुत अच्छा था। उन्होंने कम से कम 62 हृदय संबंधी दवाओं का निर्माण किया, जिनमें से 40 को इत्र से बनाया गया था। भारत में इत्र के इतिहास की बात करें तो, यह इतिहास 60,000 वर्ष से भी अधिक पुराना है। भारतीय महाकाव्यों और ग्रन्थों में सुगंध और इत्र का उल्लेख देखने को मिलता है। 'अग्नि पुराण' के अनुसार, राजा, सुगंध की 150 से अधिक किस्मों के साथ स्नान किया करते थे। कालीदास की रचनाओं में विभिन्न प्रकार के फूलों के रस तथा चंदन के मिश्रण से बनाये जाने वाले द्रव्य का उल्लेख मिलता है, जो इत्र का ही कार्य करते थे। भारत में इत्र बनाने का सबसे पहला रिकॉर्ड (Record) ‘बृहत् संहिता’ (Bri- hat Samhita) में पाया जा सकता है, जिसे उज्जैन में रहने वाले 6ठी शताब्दी के खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और ज्योतिषी, वराहमिहिर (Varahamihi- ra) द्वारा लिखा गया था। भारत में इत्र के विकास में मुगल शासकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। ऐसे कई स्रोत हैं, जो बताते हैं कि, भारत में मुगल काल के दौरान कई शासकों ने इत्र तेलों और सुगंधों का उपयोग एक अच्छे या आनंदित जीवन के हिस्से के रूप में किया। मुगल सम्राट और उनकी रानियां इत्र सुगंध के अत्यधिक शौकीन थे, और यही कारण था कि, भारत में विभिन्न प्रकार के इत्रों का विकास हुआ। मुगल दरबार के इतिहासकार, अबू-फ़ज़ल इब्न मुबारक (Abu’l-Fazl ibn Mubarak) ने अपनी पुस्तक ‘आईने अकबरी’ (Ain-e-Akbari) में इत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उन्होंने यह भी उल्लेखित किया है, कि मुगल सम्राट अकबर, विभिन्न तरीकों को अपनाकर, नियमित रूप से इत्र का उपयोग किया करते थे। इतिहासकारों के अनुसार, अकबर के पास इत्र का एक पूरा विभाग था ताकि, वह और उनके उत्तराधिकारी अपने शरीर और दिमाग को गर्म क्षेत्रों में सुगंधित और ठंडा रख सकें। माना जाता है कि, मुगल सम्राट जहाँगीर (Jahangir) की पत्नी, नूरजहाँ (Noorjahan), इत्र की विशेषज्ञ थी और गुलाब की पंखुड़ियों से सुगंधित पानी में स्नान किया करती थी। इस कारण जहाँगीर के प्रोत्साहन के साथ लोगों ने प्राकृतिक सुगंधों के साथ प्रयोग करना शुरू किया और इत्र बनाने की संस्कृति का विकास हुआ, हांलाकि इस बारे में कई मतभेद भी हैं। अवध क्षेत्र में वहां के शासक गाजी उद दीन हैदर शाह (Ghazi-ud-Din Haidar Shah) भी इत्र के अत्यधिक शौक़ीन थे तथा उन्होंने अपने शयन कक्ष में इत्र के फव्वारे भी लगवाए थे। अवध ने इत्र निर्माण और इत्र शिल्प कौशल को अत्यधिक बढ़ावा दिया। रामपुर शहर भी इत्र व्यापार से जुड़ा हुआ था, तथा यह व्यापार यहां भारत के विभिन्न हिस्सों से होता था। इसका विवरण रामपुर की राजकुमारी मेहरुन्निसा खान (Mehrunnisa Khan) ने अपनी जीवनी में भी किया है।
भारत में प्रमुख इत्र बनाने वाले शहर कन्नौज, जौनपुर, गाजीपुर, लखनऊ आदि थे और इन शहरों से रामपुर में इत्र मंगाया जाता था। रामपुर के नवाबों को इत्र और सुगंध से ख़ासा प्रेम था और इसका उदाहरण रामपुर में स्थित विभिन्न स्थानों, जैसे - कोठी ख़ास बाग़ और रजा पुस्तकालय के सामने बनाए गये बगीचे हैं। इनके अलावा और भी कई स्थान थे, जहाँ पर रामपुर के नवाबों ने सुंदर उद्यानों का निर्माण किया था। इन उद्यानों से इस बात का अंदाजा स्पष्ट रूप से लगाया जा सकता है कि रामपुर के नवाबों के जीवन में इत्र और सुगंध एक विशेष स्थान रखते थे।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.