आज आधुनिकता कई कलाकारों के आजीविका के माध्यम में बाधा सी बन गई है, जहां पहले एक समय में हम लोग सड़क के किनारे मनोरंजक प्रदर्शन करने वाले कलाकारों का प्रदर्शन देखने के लिए रुक जाते थे, वहीं आधुनिकता और व्यस्त जीवन की वजह से ऐसे कलाकारों के प्रदर्शन की ओर लोगों का आकर्षण कम होता जा रहा है। 1980 और 1990 के दशक में सड़क पर किसी भी प्रकार का मनोरंजक प्रदर्शन जीवन की एक स्थायी स्मृति हुआ करती थी। उस दौर में देश और विदेश की सड़कों पर अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले कई कलाकार देखने को मिलते थे, ये मनोरंजक प्रदर्शन दरसल इनकी जीविका का आधार हुआ करता था। इन प्रदर्शनों में जादू, एक्रोबेटिक्स (Acrobatics), गुब्बारों से गुड्डे बनाना, चित्रकारी, हास्य कला, नृत्य, गायन, संगीत यंत्रों को बजाना, अग्नि कौशल, कठपुतली नचाना, मूक कला, सर्कस (Circus), करतब दिखाना, कहानी, कविता आदि कहना, तलवार निगलना, भाग्य बताना, सांप-सपेरे का खेल आदि प्रदर्शन शामिल हैं। कई देशों में इन प्रदर्शनों के द्वारा लोगों को पुरस्कार के तौर पर पैसे, भोजन, पेय या अन्य उपहार प्राप्त होते हैं।
इस कला का अभ्यास पूरी दुनिया में सदियों से किया जाता रहा है, लेकिन यदि वर्तमान समय की बात की जाए तो यह कला गुमनामी की कगार पर खड़ी हुई है। जहां 1980 और 1990 के दशक में देश के कई महानगरों की गलियों में बंदर-मदारी का खेल, बाज़ीगरी, सपेरे का खेल, जादूगर आदि आम थे, वहीं आज वे मुश्किल से ही सड़कों या गलियों में दिखायी देते हैं। देश के अधिकतर उपनिवेशों को अब बड़े-बड़े कपाट से सुसज्जित कर दिया गया है ताकि कोई भी प्रदर्शक अंदर प्रवेश न कर सके। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस द्वारा लोकप्रिय ऐतिहासिक स्मारकों जैसे स्थानों से सड़क पर प्रदर्शन करने वालों को हटा दिया जाता है। इन प्रदर्शकों को प्रायः तुच्छ रूप से देखा जाता है किंतु वास्तव में वे विभिन्न पीढ़ियों के माध्यम से सौंपी गई कला का प्रदर्शन करते हैं तथा उसे जीवित रखते हैं। इन कलाकारों और इनकी कलाओं के विलुप्त होने का केवल एक यह ही कारण नहीं है, वर्तमान समय में भुगतान की क्रेडिट (Credit) और डेबिट कार्ड (Debit Card) प्रणाली भी सड़कों पर होने वाले प्रदर्शन को प्रभावित कर रही है। जहां पहले लोगों के बटुए पैसों से भरे होते थे, वहीं इनका स्थान क्रेडिट और डेबिट कार्ड ने ले लिया है। ऐसे में सड़क कला प्रदर्शन देखने के बाद कलाकारों को नगदी के रूप में भुगतान करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार कैशलेश इकोनॉमी (Cashless Economy) कलाकारों की आय को बहुत गहराई से प्रभावित करती है।
वहीं 2000 के दशक में, कुछ कलाकारों ने ‘साइबर बस्किंग’ (Cyber Busking) शुरू की, यानी कलाकार अपने कार्य या प्रदर्शन को इंटरनेट (Internet) के माध्यम से लोगों तक पहुंचते हैं, जिसे लोग ऑनलाइन (Online) माध्यम से डाउनलोड (Download) या स्ट्रीम (Stream) करके देखते हैं, यदि लोगों को उनका कार्य या प्रदर्शन पसंद आता है, तो वे पेपैल (PayPal) का उपयोग करके इन्हें दान देते हैं। इसी प्रकार से 2015 में एक बस्किंग विशिष्ट भुगतान ऐप (Busking-specific Payment App) भी विकसित की गयी, जिसने कलाकारों को एक ऐसा प्रोफ़ाइल (Profile) बनाने की अनुमति दी, जिसका उपयोग दर्शक क्रेडिट या डेबिट कार्ड के माध्यम से कर सकते हैं, लेकिन फिर भी कलाकारों को कैशलेस भुगतान की सुविधा पूर्ण रूप से दे पाना मुश्किल है।
भारत में इन कलाकारों तथा कला के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इंडियन स्ट्रीट परफ़ॉर्मर्स एसोसिएशन ट्रस्ट (Indian Street Performers Association Trust (ISPAT)) की स्थापना की गयी, जो इन कलाओं का प्रदर्शन करने और जीविकोपार्जन करने की अनुमति देने का दबाव सरकार पर डालती है, ताकि विभिन्न जनजातियों में फैली इस कला का अस्तित्व बचा रहे। जहां इन कलाकारों तथा कला के अस्तित्व में पहले से ही काले बादल मंडरा रहे हैं, वहीं कोविड-19 (COVID-19) महामारी की वजह से इन्हें ओर अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। महामारी के चलते शहर के अधिकांश प्रदर्शन स्थलों को महीनों और अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है। यहां तक कि सार्वजनिक प्रदर्शन भी लोकप्रिय क्षेत्रों में पैदल यात्रियों की कमी के कारण संभव नहीं है। वहीं दूसरी ओर कोलकाता के कुछ थिएटर (Theater) समूह के कलाकारों ने अपनी कला से कोविड-19 के खिलाफ लड़ने और मिथकों, गलत धारणाओं और कोरोना वायरस (Corona Virus) के बारे में गलत जानकारियों को दूर करने के लिए नाटक के माध्यम से सड़क प्रदर्शन प्रस्तुत किया।
कलाकारों के इस प्रयास से लोगों को सही जानकारी प्राप्त हुई और मास्क (Mask) व सैनिटाइजर (Sanitizer) के उपयोग के लिए प्रेरित भी किया। हालांकि वर्तमान समय में इस कला का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इनके संरक्षण के लिए इन्हें कलाकारों के रूप में पहचाना जाना चाहिए और प्रदर्शन करने हेतु पहचान पत्र भी दिया जाना चाहिए। यदि इस कला का उत्थान नहीं किया गया, तो प्रदर्शन करने वाले लोगों की जनजातियां आने वाले वर्षों में विलुप्त हो सकती है, जिसको बचाने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए, ताकि हमारे आने वाली पीड़ी भी सड़कों पर किए जाने वाले इन अद्भुत कलाओं को देख सके।
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