रामपुर जिला उत्तर प्रदेश के उन गिने-चुने जिलों में से है, जो अपनी वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। रामपुर की वास्तुकला ऐसी है, जो कि पूरे भारत में सिर्फ कुछ ही स्थानों पर पायी जाती है, जैसे कि कलकत्ता, मुंबई, मद्रास आदि। इन सभी में यदि रामपुर की बात की जाए तो भी यहाँ की वास्तुकला में कुछ ऐसा है, जो कि उपरोक्त लिखित स्थानों पर भी नहीं पाया जाता है। यहाँ पर मौजूद वास्तुकला के नमूने इंडो-सरसेनिक (Indo-Saracenic) वास्तुकला से प्रेरित हैं। अब यह जानना अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर इंडो-सरसेनिक वास्तुकला है क्या? तो सबसे पहले जानते हैं इस कला के उत्थान और इतिहास के बारे में: इंडो-सरसेनिक का भारतीय परिपेक्ष्य में पहली बार आगमन चेपाक मद्रास (जहाँ पर चेपाक पैलेस (Chepauk Palace) का निर्माण सन 1768 में किया गया था) में हुआ था। यह कला मुख्य रूप से हिन्दू, मुग़ल और गोथिक (Gothic) कला के मिश्रण से बनी थी। गोथिक कला वह कला है, जिसका उद्भव यूरोप (Europe) से हुआ था और आज भी यूरोपीय देशों में अनेकों महल इसी कला पर निर्धारित हैं। इंडो-सरसेनिक कला के कुछ प्रमुख बिंदु निम्न हैं:
गुम्बद :- इस कला में निर्मित इमारतों में गुम्बद बनाने की परंपरा होती है और इन गुम्बदों का आकार थोड़ा प्याज़ की तरह होता है, जिसे हम रज़ा पुस्तकालय रामपुर, ताज होटल मुंबई, गेटवे ऑफ़ इंडिया (Gateway of India), छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई में देख सकते हैं।
मीनार :- इन इमारतों में मीनारों का निर्माण किया जाता है, जो कि मुख्य द्वार के पास स्थित होती हैं और इमारत के अलग-अलग कोनों और स्थानों पर भी स्थित होती हैं। इसका उदाहरण भी रामपुर के पुस्तकालय और महल में देखा जा सकता है।
गुम्बददार छत :- जैसा कि बताया जा चुका है कि इन इमारतों में गुम्बद बने होते हैं, तो यह समझना अत्यंत ही आसान हो जाता है कि इनकी छतें गुम्बददार होती हैं। इसे उपरोक्त प्रथम बिंदु में वर्णित स्थानों पर देखा जा सकता है।
बागान :- इंडो-सरसेनिक वास्तुकला में बनी इमारतें खुली-खुली होती हैं तथा इनमें बागानों आदि का समावेश होता है, जैसा कि चेपाक पैलेस और अन्य महलों आदि में देखा जा सकता है।
नुकीला मेहराब :- इन इमारतों के मेहराब नुकीले होते हैं। मेहराब से आशय दरवाज़ों के ऊपर बने नुकीले घुमाव से है।
इन उपरोक्त वर्णित अंगों के अनुसार अन्य कई और भी बिंदु इंडो-सरसेनिक इमारतों में देखने को मिल सकते हैं, जैसे कि अकेंथस (Acanthus) पौधे के पत्तों का अलंकरण। अकेंथस के पत्तों का विवरण तमाम इंडो-सरसेनिक इमारतों में देखने को मिल जाता है।
रामपुर में स्थित नगर कोतवाली और नवाब प्रवेशमार्ग इंडो-सरसेनिक कला के अद्वितीय उदाहरण हैं। जब 1905 ईस्वी में लार्ड कर्ज़न (Lord Curzon) रामपुर की यात्रा करने आए थे, तो यहाँ आकर वे अत्यंत ही द्रवित हो उठे तथा उन्हें रामपुर के नवाब ने 55 इमारतों की तस्वीरों वाली किताब भेंट स्वरूप दी। उसी किताब से ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन (British Library, London) ने इन दोनों इमारतों की तस्वीरें और जानकारियाँ प्रेषित की हैं और इसी प्रेषित चित्र से नवाब द्वारा दिए गए उपहार का भी ज़िक्र देखने को मिलता है। इन दोनों चित्रों को कैमरे (Camera) से किसने उतारा, वह तो ज्ञात नहीं हो पाया है परन्तु ये इन इमारतों और उनके महत्व को ज़रूर दर्शाती हैं। नवाब प्रवेशमार्ग के बारे में यह लिखा गया है कि यह एक वास्तविक इस्लामी वास्तुकला का उदाहरण था। कोतवाली और नवाब प्रवेशमार्ग, दोनों में ही कालांतर में कुछ बदलाव किये गए थे और उनको प्रमुख अभियंता डब्ल्यू. सी. राईट (W. C. Wright) (जो 1896 में सिंहासन पर बैठने के बाद नवाब हामिद अली खान के पद पर मुख्य अभियंता थे) द्वारा इंडो-सरसेनिक कला के अनुसार बदला गया था। आज रामपुर अपनी इन धरोहरों को लेकर खड़ा अपने उच्च काल की कहानी को प्रदर्शित कर रहा है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.