लखनऊ की दुर्लभ तस्‍वीरों का संकलन

लखनऊ

 21-11-2020 08:29 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

कैमरे (Camera) का अविष्‍कार मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ी देन है, जिसके माध्‍यम से हमारे अतीत को बड़ी ही खूबसूरती से समेट कर रखा गया है। हर गुजरते वक्‍त के साथ विश्‍व का स्‍वरूप बदलता जा रहा है। किंतु कैमरे से ली गयी तस्‍वीरों से हम आज भी अपने अतीत के विश्‍व की साक्षात छवि देख सकते हैं।
जैसे आज लखनऊ की कई ऐतिहासिक इमारतें या तो टूट चुकी हैं या फिर इनका नवनिर्माण करा दिया गया है। लेकिन इतिहास में ली गयी इनकी तस्‍वीरों में यह आज भी जीवित हैं। द लखनऊ एल्बम ऑफ 1874 (The Lucknow Album of 1874) - लखनऊ की प्रारंभिक फोटोग्राफी (Photography) का एक दुर्लभ रिकॉर्ड (Record) है। जिसे दरोगा अब्बास अली द्वारा बनाया गया था। यह 19वीं सदी के भारतीय इंजीनियर (Engineer) और फ़ोटोग्राफ़र (Photographer) थे। लखनऊ में नगरपालिका के इंजीनियर के रूप में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, अली ने 1870 के दशक में शहर और इसके आसपास के फोटो (Photo) खींचना शुरू किया। उन्होंने 1874 में द लखनऊ एल्बम (The Lucknow Album) नामक एक एल्बम में 50 तस्वीरें प्रकाशित कीं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं:
1) आलम बाग और जनरल हैवलॉक का मकबरा (General Havelock's Tomb): यह मूल रूप से एक किलाबंद उद्यान था, जिसे वाजिद अली शाह की पत्‍नी नवाब ख़ास महल के लिए एक सामयिक निवास स्‍थान के रूप में बनाया गया था। बाद में इस पर जनरल हैवलॉक द्वारा कब्जा कर लिया गया। हैवलॉक को उनकी मृत्‍यु के पश्‍चात यहीं दफना दिया गया था, इसी पर जनरल हैवलॉक का मकबरा बनवाया गया है।
2) बेबेपोर (Bebeapore) की कोठी: इसे लखनऊ के नवाब असफ-उद-दौला द्वारा बनवाया गया था। इसमें एक उद्यान बनाया गया था। जब नवाब अपने शासनाधिकारियों में किसी भी प्रकार के परिवर्तन करते थे तो वह अपने नए अधिकारियों को यहीं पर रोकते थे, जब तक कि महल में उनके रहने की व्‍यवस्‍था न हो जाए। यहीं से वज़ीर अली के गोद लिए गए बेटे और असफ-उद-दौला के वारिस के लिए भारत सरकार का यादगार फरमान आया। इस प्रकार की अनेक यादगार घटनाएं यहां घटित हुई हैं। किंतु अब यह महल एक खण्‍हर में परिवर्तित हो चुका है, लेकिन कुछ मरम्‍मत के बाद इसे रहने योग्‍य बनाया जा सकता था। उद्यान में अब जंगली जानवर रहते हैं।
3) दी विलायत बाग (The Welaite Bagh): यह बाग नवाब नासिर-उद-दीन हैदर द्वारा बनवाया गया था, वे इसे ग्रीष्‍म ऋ‍तु के भवन के रूप में उपयोग करते थे। इसे यूरोपीय पौधों से सजाया गया था। गोमती नदी के तट पर स्थित यह बाग नवाबों के समय में बहुत ही सुंदर एवं आनंदायक हुआ करता था। किंतु अब इसकी सुंदरता के कुछ अवशेष ही शेष रह गए हैं। 4) दिलकुशा (Dilkoosha): इसे सआदत अली खान द्वारा आखेटन के लिए बनवाया गया था। इन्‍होंने यहां के घने जंगलों को साफ करवाकर मैदान में सुव्यवस्थित उद्यान के रूप में बदल दिया। इसे इतनी खूबसूरती से संवारा गया की यह महिलाओं का पसंदीदा सैरगाह (Resort) बन गया। औपनिवेशिक काल के दौरान इस पर ब्रिटिशों (British) द्वारा कब्‍जा कर लिया गया था।
5) ला मार्टिनियर (La Martiniere): अवध के ब्रिटिश प्रमुख जनरल क्लाउड मार्टिन (General Claude Martin) के नाम पर इस स्‍थान का नाम "ला मार्टिनियर" पड़ा। इसका निर्माण नवाब असफ़-उद-दौला के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था, यह इतना शानदार बना कि नवाब ने इसे जनरल से खरीदने का मन बना लिया। किंतु यह ज्ञात नहीं है कि जनरल ने यह प्रस्‍ताव स्‍वीकारा या नहीं। इसका निर्माण पूर्ण होने से पहले ही जनरल की मृत्‍यु हो गयी थी। अब इस इमारत में "ला मार्टिनियर कॉलेज" (La Martiniere College) चल रहा है।
6) हयात बख्‍श (Hyat Buksh): यह मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner) का निवास स्‍थान था जिसे नवाब सआदत अली खान द्वारा बनवाया गया था। नासिर-उद-दीन हैदर के शासनकाल के दौरान इस पर अवध में नियुक्‍त कर्नल रॉबर्ट्स (Colonel Roberts) द्वारा कब्जा लिया गया। बगावत के दौरान विद्रोहियों ने इस पर कब्‍जा कर लिया 1858 में सर एडवर्ड लुगार्ड (Sir Edward Lugard) ने एक सेना के साथ इस पर पुन: कब्‍जा कर लिया। 1873 में इसकी मरम्‍मत करवायी गयी और इस इमारत को बहुत बड़ा और बेहतर बनाया गया।
7) दारूल शफा (Darul Shaffa): जैसा कि इसके नाम का तात्पर्य है, यह एक अस्पताल (Hospital) या डिस्पेंसरी (Dispensary) है, जिसे नवाब सआदत अली खान द्वारा बनवाया गया था, और जरूरतमंद रोगियों के उपचार के लिए इसका निर्माण कराया गया, किंतु इस उद्देश्‍य के लिए कभी इसका उपयोग नहीं किया गया। अवध के दरबार की कुछ महिलाओं ने इस पर नियंत्रण कर लिया और अपने आरामगाह महल के रूप में इसका उपयोग किया। आगे चलकर इसे पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया गया, और अब यह मुख्य सचिव का निवास स्थान बन गया, और यह लखनऊ में सबसे लोकप्रिय आवासों में से एक था। 8) अवध और रोहिलखंड रेलवे कंपनी के कार्यालय (The Offices of the Oudh and Rohilcund Railway Company): लखनऊ की पुनर्स्थापना के कुछ समय बाद, इस इमारत में स्थित रॉयल हॉर्स आर्टिलरी (Royal Horse Artillery) की एक टुकड़ी ने इस स्‍थान पर एक खजाने की खोज की, जो कुछ तीन या चार लाख रुपये तक की राशि का था, अपने घोड़ों को बांधने के लिए जमीन में खूंटे गाड़ते समय इन्‍हें यह खजाना मिला, जो अभी भी एक रहस्य है। आज यहां रेलवे कंपनी का कार्यालय है। दूसरी इमारत या रेंज मेसर्स और कंपनी ( Messrs Murray and Company) , व्यापारियों और मैडम लाइन्स के प्रतिष्ठान (Madame Lines' Millinery) द्वारा कब्जा की गई हैं।
9) संत जोजेफ चर्च (St। Joseph's Church): इस खूबसूरत चैपल (Chapel) को सिविल लाइंस के रोमन कैथोलिक समुदाय (Roman Catholic Community of the Civil Lines) द्वारा बनवाया गया था। यह पादरी (Priest) फादर लुईस (Father Lewis) द्वारा की जाने वाली प्रार्थना के लिए एक स्‍वच्‍छ स्‍थान था।
10) क्राइस्ट चर्च (Christ's Church): लेफ्टिनेंट स्वेथेनम (Lieutenant Swetenham) के अधीक्षण के तहत प्रोटेस्टेंट समुदाय (Protestant Community ) द्वारा निर्मित चर्च वास्तुकला की आधुनिक शैली में बनाया गया है।
11) विंगफील्ड उद्यान (Wingfield Park): बनारसी बाग के रूप में जाना जाने वाला यह उद्यान जब अंग्रेजों के नियंत्रण में आया था उस समय बहुत जीर्ण अवस्‍था में था। अब इसका नाम अवध के दिवंगत लोकप्रिय मुख्य आयुक्त विंगफील्ड (Wingfield) के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस उद्यान में फूल पौधे वृक्ष इत्‍यादि लगाकर इसे पुन: जीवित किया। 12) सिकंदर बाग: इसे वाजिद अली शाह द्वारा अपनी पसंदीदा बेगम, सिकंदर बेगम (Sekunder Begum) के सम्‍मान में बनवाया था। इसका नाम भी इन्‍हीं के नाम पर रखा गया। यह एक ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। इस बाग में 1857 के विद्रोह के दौरान दो हजार से अधिक विद्रोहियों को निर्दयता से मार दिया गया था।
13) कदम रसूल: यह मुसलमानों के लिए एक पवित्र तीर्थस्‍थान है, इसे नवाब गाज़ी-उद-दीन हैदर ने बनवाया था: यह एक टीले के शिखर पर खड़ा है, और माना जाता है कि इसमें एक पत्थर है, जो पैगंबर मोहम्‍मद के पदचिह्न से संबंधित है, हालांकि यह पत्‍थर अब चोरी हो गया है। कहा जाता है कि यह पत्थर मक्का से कुछ प्रतिष्ठित तीर्थयात्रियों द्वारा लाया गया था। विद्रोह के दौरान, इस जगह ने विद्रोहियों के लिए एक मजबूत स्थिति का निर्माण किया, लेकिन जल्द ही अंग्रेजों ने इस पर कब्‍जा कर लिया।
14) नजफ अशरफ या शाह नजफ: यह मकबरा स्‍वयं ग़ाज़ी-उद-दीन हैदर ने अपने लिए बनवाया था, यहां पर इनके अवशेष दफनाए गए हैं। यह कदम रसूल के समान ही ऊंची दिवारों से घिरा हुआ है। यह 1857 की क्रांति के विद्रोहियों के लिए एक सुरक्षित स्‍थान बना। किंतु जल्‍द ही इस पर अंग्रेजों द्वारा कब्‍जा कर लिया गया। इस जगह का नाम "नजफ" (Najuf) है, जिस पहाड़ी पर मोहममद के दामाद अली का मकबरा बनाया गया है, जिसे मकबरे का एक सटीक नमूना कहा जाता है। 15) मोती महल: इस इमारत का निर्माण नवाब सआदत अली खान द्वारा करवाया गया था, मोती के समान दिखायी देने वाला यह महल अपने नाम की भांति ही खूबसूरत है। गोमती के तट पर बने इस महल की इमारतों को विशेष प्रयोजन से डिज़ाइन (Design) किया गया है। नवाब यहां पर बैठकर नदी के पार जंगली जानवरों का खेल देख सकते थे। मोती महल एक ऊँची दीवार से घिरा हुआ है, जिसमें 1857 में, विद्रोहियों द्वारा दृढ़ता से किलेबंदी की गई थी।
16) खुर्शीद मंजिल: यह इमारत देखने में ऐसी प्रतीत होती है मानों जैसे गहरी खाई से घिरी हो, जाहिर तौर पर रक्षा के उद्देश्‍य से इसे ऐसा बनाया गया होगा। इसका निर्माण सादत अली खां द्वारा शुरू किया गया था और और गज़ी-उद-दीन हैदर द्वारा समाप्त किया गया। अवध के राजाओं ने इस इमारत का कभी उपयोग नहीं किया क्‍योंकि इन्‍होंने इसे ब्रिटिशों को सौंप दिया था। किंतु बगावत के दौरान विद्रोहियों द्वारा इसका भरपूर उपयोग किया गया।
17) तारा कोठी (Star House): इसे तारा कोठी या स्‍टार हाउस इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि इसे वेधशाला (Observatory) के लिए बनाया गया था। नवाब नासिर-उद-दीन अहमद ने यूरोपीयों के अधीक्षण (European Superintendence) में इस कोठी का निर्माण कराया। जिसमें विशेष खगोलीय उपकरण स्‍थापित किए गए।
18) नूर बख्‍श की कोठी: इस कोठी को प्रकाश देने वाला घर (Light Giving House) भी कहा जाता है क्‍योंकि जब इस घर को प्रकाशित किया गया था तो इसके आसपास काफी दूरी तक प्रकाश फैल गया था। इसका निर्माण नवाब सआदत अली खान द्वारा करवाया गया था, जो इनके बेटे का निवास स्‍थान बन गया। बगावत के दौरान सर हेनरी हैवलॉक (Sir Henry Havelock) ने इस इमारत का फायदा उठाया।
19) लौह पुल: पहले यहाँ नावों का एक पुल था; वर्तमान पुल 1865 में बनाया गया था, और 1866 में तत्कालीन नगरपालिका अभियंता (Municipal Engineer) श्री ब्रूस (Mr Bruce) के अधीक्षण में पूरा हुआ। किंतु यह ज्‍यादा मजबूत साबित नहीं हुआ 1870 में आयी बाढ़ से इसे भारी हानि पहुंची, जिसकी बाद में मरम्‍मत करायी गयी। 20) छत्‍तर मंजिल (Chutter Munzil): गोमती नदी के दाहिने किनारे पर बनी यह भव्‍य इमारतें बहुत ही सुंदर हैं। इन इमारतों को इनके छत पर मौजूद छत्‍तर या अम्‍ब्रेला (Umbrella) एक विशिष्‍ट रूप देता है। इन इमारतों के समूह को एक विशाल पैराशूट (Enormous Parachute) नाम दिया गया है। इनके अतरिक्‍त अब्बास अली ने अपनी एल्‍बम में केशर बाग, यूरोपीय कैदियों (European Captives) के नरसंहार की स्‍मारक, कनकर वाली कोठी (Kunkur Wali Kothi), सादत अली खान का मकबरा और मुर्शिद जादी का मकबरा, केसर पसंद (Kaiser Pussund), नील का द्वार (Neil's Gate), ब्रूस का पुल (Bruce's Bridge), लाल बारादरी (Lal Baradurree), बैली गॉर्ड (Baillie Guard), बलरामपुर हॉस्पिटल (Bulrampore Hospital), पत्‍थर पुल, लक्ष्मण टीला (Luchman Tela), नवाब औसफ़-उद-दौला का इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद इमामबाड़ा, दिलराम कोठी, हजरत अब्‍बास की दरगाह, काज़मैन (Kazmain), कुर्बुल्ला ताल कटोरा (Kurbulla tal Katora) की तस्‍वीरें शामिल की थी। 1880 में, उन्होंने अवध के एन इलस्ट्रेटेड हिस्टोरिकल एल्बम ऑफ़ राजास एंड ताल्लुकदार ऑफ अवध (An Illustrated Historical Album of Rajas and Taaluqdars of Oudh) नाम से एक और फोटोग्राफिक एल्बम (Photographic Album) बनायी, जिसमें अवध के भू-गर्भीय चित्र शामिल थे। अब्बास अली ने अपनी एल्‍बम में मुगलकालीन भारत से लेकर औपनिवेशिक भारत तक की सभी तस्‍वीरों को एकत्रित किया है। संदर्भ
https://en.wikipedia.org/wiki/Darogha_Ubbas_Alli
https://www.journals.uchicago.edu/doi/abs/10.1086/680733?journalCode=grj
https://www.rarebooksocietyofindia.org/book_archive/196174216674_10153539897631675.pdf
https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/Hazratganj-A-Corridor-To-Past-Glory/articleshow/7299022.cms
https://archive.org/stream/gri_000033125008608313#page/n3/mode/2up
https://en.wikisource.org/wiki/The_Lucknow_Album
चित्र सन्दर्भ:
प्रथम चित्र में 1- आलम बाग और जनरल हैवलॉक का मकबरा, 2- बेबेपोर (Bebeapore) की कोठी, 3 - द इलाइट बाग (The Welaite Bagh) और 4 - दिलकुशा (Dilkoosha) को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में 5 - ला मार्टिनियर (La Martiniere) 6 - हयात बख्श (Hyat Buksb) 7 - दारूल शफा (Darul Shaffa)
और 8 - अवध और रोहिलखंड रेलवे कंपनी के कार्यालय को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में 9 - संत जोजेफ चर्च (St। Joseph's Church) 10 - क्राइस्ट चर्च (Christ's Church) 11 - विंगफील्ड उद्यान (Wingfield Park) और 12 - सिकंदर बाग को दिखाया गया है। (Prarang)



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id