भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में लोकप्रिय है। जैसे कि भारत के कोने-कोने की अपनी कहानी, अपना इतिहास है और यहां की संस्कृति बहुत ही बहुरंगी है। जब लोग भारतीय संस्कृति के बारे में जानना चाहते हैं तो उन्हें हिदायत दी जाती है कि त्योहारों के मौसम में भारत आकर होली, दिवाली, ओणम, नवरात्रि, रक्षाबंधन, भाई दूज के बहाने विभिन्न रीति-रिवाजों और आयोजनों का आनंद लें, साथ ही इनके आयोजन से जुड़े पौराणिक और प्राचीन कथा प्रसंगों का भी ज्ञान लाभ लें। भारत की आत्मा त्योहारों में ही बसती है।
क्यों मनाते हैं भाई दूज:
भाई दूज हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए ईश्वर की प्रार्थना करती हैं। साथ ही भाई की समृद्धि की भी कामना करती हैं। बहने भाई के माथे पर पवित्र तिलक लगाती हैं, भाई उन्हें उपहार देते हैं। इस संबंध में कई पौराणिक कथाएं हैं। मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने गए, तो बहन ने भाई के माथे पर तिलक किया और उनकी आरती उतारी। मिठाई खिलाई। इससे प्रभावित होकर यम ने वचन दिया कि जो भाई आज के दिन अपनी बहन से टीका और आरती करवाएगा, उसे कभी मृत्यु का भय नहीं होगा। इसीलिए इस दिन को यम द्वितीया भी कहा जाता है। दूसरी कथा में भगवान कृष्ण राक्षस राजा नरकासुर का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास जाते हैं, तो वह पवित्र दिए, फूल और मिठाइयों से उनका स्वागत करती हैं और कृष्ण के माथे पर रक्षात्मक तिलक करती हैं। इसी तरह की कई और कथाएं हैं, जो भारत भर में प्रचलित हैं।
बंधन भाई बहन का
वास्तव में भाई बहन में बहुत ही खास तरह का लगाव होता है। एक दूसरे के खास दोस्त होते हैं। एक दूसरे की रक्षा करते हैं। आपस में सम्मान करते हैं। एक दूसरे की खास बातें बांटते हैं। आपस में बिना शर्त का स्नेह संबंध रखते हैं। बहुत मुश्किल होता है भाई बहन के बीच की भावनाओं, प्यार और एहसास को बयान करना।
भाई दूज की दुर्लभ कथाएं
भाई दूज की कथा जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से भी जुड़ी है। जब भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, तो उनके भाई राजा नंदी वर्धन उनकी याद में बहुत दुखी हुए। उस समय उनकी बहन सुदर्शना ने धीरज बंधाया। इस प्रसंग से भाई बहन के त्यौहार भाई दूज का जन्म हुआ, जिसमें भाई अपनी बहनों पर श्रद्धा रखते हैं और उन पर प्रेम और उपहार बरसाते हैं।
दूसरी कथा भगवान विष्णु से जुड़ी है। महाबली ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा जिसमें भगवान विष्णु को पाताल लोक के सभी दरवाजों पर मौजूद होना था। भगवान विष्णु राजी हो गए और द्वार पालक बन गए। जब देवी लक्ष्मी ने यह बात नारद मुनि से जानी तो वह बहुत परेशान हो गई। उन्होंने तय किया कि वह भगवान विष्णु को उनके सही स्थान पर वापस लेकर आएंगी। इसके लिए उन्होंने एक चाल चली। एक गरीब औरत के भेष में बाली के पास जाकर उन्होंने सहायता मांगी कि उनके कोई भाई नहीं है। बाली ने उन्हें बहन के रूप में मान लिया और कहा कि कोई अपनी इच्छा बताओ। देवी लक्ष्मी ने कहा कि वह उनके पति भगवान विष्णु को अपनी सेवा से हटा दें। बाली ने अपना वादा निभाया और भगवान विष्णु को छोड़ दिया। इस तरह भाई-बहन के मजबूत रिश्ते की याद में त्यौहार की शुरुआत हुई ।
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