मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो विचारों के आदान प्रदान के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। जिसके लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है। भाषा के मुख्यत: तीन रूप हैं मौखिक, सांकेतिक और लिखित। लिखित भाषा के लिए लिपि का प्रयोग किया जाता है, मानवीय इतिहास में मानव के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में से एक है लिपि का आविष्कार, जिसके कारण आज हम अपने भूत को जान पाने में सक्षम हुए हैं। हर भाषा की अपनी लिपि होती है जैसे अंग्रेजी भाषा की रोमन लिपि, हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि, उर्दू भाषा की नस्तालीक़ लिपि। नस्तालीक़ लिपि उर्दू और फारसी वर्णमाला की प्रमुख लिपि है। इसे 14वीं और 15वीं शताब्दी में ईरान में विकसित किया गया था। इसे कभी-कभी अरबी भाषा में भी प्रयोग किया जाता है। लेकिन मुख्य रूप से इसका उपयोग फारसी, उर्दू और तुर्क क्षेत्र में किया जाता है। नस्तलीक ईरान, अफगानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप और अन्य देशों के काव्य साहित्य में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है।
इतिहास में इस लिपि का प्रयोग मात्र तुर्की या फारसी लिखने के लिए किया जाता था, जिसे तालिक के रूप में जाना जाता था। आगे चलकर इन्होंने इसमें से दिवानी और रुक्का शैलियों को विकास किया। फारसी में इसका प्रयोग मात्र कविता लिखने के लिए किया जाता है। ससानी साम्राज्य के बाद नस्तलीक फ़ारसी लेखन परंपरा की मूल लिपि बन गयी और अपने सांस्कृतिक प्रभाव के कारण इन क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हो गयी। ईरान की भाषाएँ (पश्चिमी फ़ारसी, अज़ेरी, बालोची, कुर्दी, लुरी, आदि), अफ़गानिस्तान (दारी फ़ारसी, पश्तो, तुर्कमेन, उज़बेक आदि), भारत (उर्दू, कश्मीरी आदि), पाकिस्तान (उर्दू, पंजाबी , सरायकी, पश्तो, बालोची, आदि) और चीनी प्रांत झिंजियांग के तुर्क उईघुर भाषा में नस्तलीक लिपि का प्रयोग किया जाता है। नस्तलीक अरबी लिपि के लिए सबसे अधिक सुगम्य सुलेख शैलियों में से एक है। इसमें बिना सेरिफ़ (Serifs) और लंबे क्षैतिज स्ट्रोक (Strokes) के साथ छोटे ऊर्ध्वाधर शब्द होते हैं। इसे 5 से 10 मिमी (0।2–0।4 इंच) नोक वाली ईख की कलम और स्याही से लिखा जाता है।
फारस (ईरान) में इस्लामी विजय के बाद, ईरानी फारसी लोगों ने फारस-अरबी लिपि को अपनाया और ईरान में पूर्व फारसी साम्राज्य के क्षेत्रों के रूप में फ़ारसी सुलेख की कला पनपी। मीर अली तबरीज़ी (14वीं शताब्दी) ने नस्तलीक को नैश और तालिक की दो मौजूदा लिपियों के संयोजन से विकसित किया। इसलिए, इसे मूल रूप से नैश-तालिक कहा जाता था। नस्तलीक के अविष्कार के बाद कई लिपिकारों ने इसकी भव्यता और सुंदरता को बनाने के लिए अपना योगदान दिया। मीर इमाद के प्रयासों से नस्तलीक अपनी सर्वोच्चता तक पहुँच गई।
नस्तलीक का वर्तमान स्वरूप, मिर्जा रेजा कलहोर की तकनीक पर आधारित है। कलहोर द्वारा संशोधित और अनुकूलित नस्तलीक को आसानी से छपाई मशीनों में उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने नास्तिक को पढ़ाने के तरीकों को भी तैयार किया और इसके लिए स्पष्ट आनुपातिक नियमों को निर्दिष्ट किया, जिनका पालन कई लोग कर सकते थे। मुगल साम्राज्य ने दक्षिण एशिया पर अपने शासन के दौरान फ़ारसी को दरबार की भाषा के रूप में उपयोग किया। इस दौरान, दक्षिण एशिया में नस्तलीक व्यापक रूप से उपयोग में आयी, जिसका प्रभाव आज भी जारी है। भारत और पाकिस्तान में, उर्दू में लगभग सब कुछ इस लिपि में लिखा गया है, जो दुनिया में नस्तलीक के उपयोग का सबसे बड़ा हिस्सा है। 1971 तक बांग्लादेश में नस्तलीक की स्थिति पाकिस्तान के समान थी, किंतु विभाजन के बाद उर्दू यहां की आधिकारिक भाषा नहीं रही। आज, केवल कुछ ही लोग बांग्लादेश में लेखन के इस रूप का उपयोग करते हैं। इस्लाम के पवित्र ग्रंथ को लिखने में इस लिपि का प्रयोग किया गया था।
हाल ही में अखिल भारतीय कश्मीरी समाज और प्रवासी भारतीय पंण्डित संगठन के एक शीर्ष निकाय ने कश्मीरी भाषा में संग्रहित दस्तावेजों का देवनागरी लिपि में डिजीटलीकरण करने का प्रस्ताव रखा। इनका मानना है कि यह कश्मीरी युवाओं को मूल भारत से जोड़ेगा और और उनके लिए रोजगार के नए अवसर खोलेगा। किंतु इसके लिए यहां की सरकार ने चिंता व्यक्त की। इनका मानना है कि यदि देवनागरी में इसका डिजीटलीकरण किया जाता है तो भविष्य में फारसी भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। देवनागरी लिपि का प्रस्ताव पहली बार नहीं दिया जा रहा है, स्वतंत्रता से पूर्व भी यह प्रस्ताव दिया गया था। जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह अयंगर गोपालस्वामी अयंगर ने कहा कि फारसी सदियों से यहां कि अधिकारिक भाषा थी और यहां के हिंदु मुस्लिम इससे भलि भांति परिचित हैं। इसलिए इन्होंने दो लिपि (देवनागरी, नस्तलीक) के उपयोग का आदेश दिया। हांलांकि यह इसे लागू कराने में विफल रहे। वर्तमान स्थिति भी यथावत बनी हुयी है, देवनागरी के उपयोग से आशंका जातायी जा रही है कि इससे नस्तलीक का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.