भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहां दुनिया की आबादी का लगभग 5वां हिस्सा रहता है। विश्व जनसंख्या सम्भावना के 2019 के संशोधन के अनुसार देश की आबादी 1,352,642,280 है। 1975-2010 के दौरान, जनसंख्या दोगुनी होकर 120 करोड़ हो गई थी तथा 1998 में भारतीय जनसंख्या बिलियन (Billion) की संख्या तक पहुँची। ऐसा अनुमान है कि चीन की जनसंख्या को पीछे छोडते हुए भारत की जनसंख्या 2024 तक सबसे अधिक हो जायेगी। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक भारत 150 करोड से अधिक लोगों के घर वाला पहला देश बन जायेगा और और इसकी जनसंख्या 2050 तक 170 करोड तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 1.13% है, तथा 2017 में दुनिया की वरीयता सूची या रैंकिंग (Ranking) में 112वें स्थान पर था। भारत दुनिया के भूमि क्षेत्र का 2.41% हिस्सा आवरित करता है, लेकिन दुनिया की आबादी का 18% से अधिक का समर्थन करता है। 2001 की जनगणना में 72.2% आबादी लगभग 638,000 गाँवों में रहती थी और शेष 27.8% आबादी 5,100 से अधिक नगरों में और 380 से अधिक शहरी क्षेत्रों में रहती थी। भारत की जनसंख्या 2010 में 200 मिलियन लोगों द्वारा अफ्रीका के पूरे महाद्वीप से अधिक थी। हालाँकि, क्योंकि अफ्रीका की जनसंख्या वृद्धि भारत की तुलना में लगभग दोगुनी है, इसलिए अनुमान है कि यह 2025 तक चीन और भारत दोनों की जनसंख्या से अधिक हो जायेगी। यह जानकारी हमें उस जनगणना के कारण उपलब्ध है जो प्रत्येक 10 वर्षों में ली जाती है।
19वीं शताब्दी से पूर्व की यदि बात करें तो मुगल साम्राज्य (16वीं -18वीं शताब्दी) के तहत भारत की जनसंख्या वृद्धि दर भारतीय इतिहास में किसी भी पिछली अवधि की तुलना में अधिक थी। मुगल साम्राज्य के तहत, मुगल कृषि सुधारों के कारण भारत ने एक अभूतपूर्व आर्थिक और जनसांख्यिकी उन्नयन का अनुभव किया। कृषि सुधारों के कारण कृषि उत्पादन, प्रोटो-औद्योगीकरण (Proto-Industrialization) में तीव्रता आयी, जिससे भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विनिर्माण का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बना। इस समय 15% आबादी शहरी केंद्रों में रहती थी, जो 19वीं सदी के ब्रिटिश भारत में जनसंख्या के प्रतिशत से अधिक थी। सन् 1600 में अकबर के शासनकाल में, मुगल साम्राज्य की शहरी आबादी 170 लाख लोगों तक पहुंची, जो यूरोप की शहरी आबादी से बड़ी थी। सन् 1700 तक, मुगल भारत की शहरी आबादी 230 लाख हुई, जो 1871 में ब्रिटिश भारत की शहरी आबादी 223 लाख से अधिक थी। औरंगज़ेब (1658-1707) के समय तक 455,698 गाँवों के साथ, मुगल भारत में गांवों की संख्या भी बहुत अधिक थी। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुगल भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 35 वर्ष थी। स्वतंत्रता से पहले की भारत की जनगणना समय-समय पर 1865 से 1947 तक आयोजित की गई। इस समय जनगणना मुख्य रूप से प्रशासन से संबंधित थी, और उनके डिजाइन (Design) और संचालन को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। जनगणना को सामाजिक अभियांत्रिकी के लिए और शासन हेतु ब्रिटिश एजेंडे (Agenda) को आगे बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया था न कि जनसंख्या की अंतर्निहित संरचना को उजागर करने के लिए। यह जनगणना ब्रिटिश भारत के लोगों के लिए सामाजिक वास्तविकता की तुलना में ब्रिटिश की प्रशासनिक जरूरतों के बारे में अधिक जानकारी देती थी। ब्रिटिश राज के तहत भारत की जनसंख्या (पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित) 1871, 1881, 1891, 1901, 1911, 1921, 1931, 1941 में क्रमशः 293,550,310 (वृद्धि दर-2.2), 315,156,396 (7.4), 318,942,480 (1.2), 352,837,778 (10.6), 388,997,955 (10.2) थी।
जनगणना के सभी आंकडें विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी होते हैं, जो जनसंख्या गणना के महत्व को उजागर करते हैं। जनसंख्या की गणना को दो अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। पहला दृष्टिकोण एक तात्कालिक फोटोग्राफिक (Photographic) चित्र प्रदान करता है कि यह एक समुदाय का है, जो समय के एक विशेष क्षण में मान्य है, इसे जनगणना का ‘स्थिर या स्थायी पहलू’ कहा जाता है। दूसरा यह जनसंख्या विशेषताओं में रुझान प्रदान करता है, जो जनसंख्या का ‘गतिशील पहलू’ है। एक समुदाय की जनगणना के अनुक्रमण से ही विभिन्न जनसांख्यिकीय रुझानों के परिमाण और दिशा का आकलन करना संभव है। एक देश या सीमांकित क्षेत्र के सभी व्यक्तियों के लिए एक निर्दिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा (Data) को एकत्रित करने, संकलित करने और प्रकाशित करने की पूरी प्रक्रिया जनसंख्या गणना या जनगणना है। जनगणना की कुछ आवश्यक विशेषताएं प्रायोजन, परिभाषित क्षेत्र, सार्वभौमिकता, एकरूपता, निर्धारित अवधिकता, संकलन और प्रकाशन, अंतर्राष्ट्रीय सौहार्द आदि हैं। डेटा संग्रह के एकीकृत कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में, जनसंख्या जनगणना प्रशासनिक उद्देश्यों और आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान और योजना के कई पहलुओं के लिए आवश्यक बुनियादी राष्ट्रीय जनसंख्या डेटा का प्राथमिक स्रोत है। स्वर्गीय श्री गोविन्द बल्लभ पंत के अनुसार ‘वास्तव में इन दिनों में आप जनगणना दस्तावेज का उल्लेख किए बिना कोई भी गंभीर प्रशासनिक, आर्थिक या सामाजिक कार्य नहीं कर सकते हैं, जो कि हर अध्ययन, हर जांच का एक अनिवार्य हिस्सा है। यहां तक कि छोटी समस्याओं के समाधान के लिए भी आपको अक्सर जनगणना रिपोर्ट (Report) की आवश्यकता होती है। जनगणना विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी है, जिनमें प्रशासन और नीति, अनुसंधान उद्देश्य, व्यापार और उद्योग, नमूना सर्वेक्षण के लिए रूप रेखा, सामाजिक और आर्थिक योजना आदि शामिल हैं। यह प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए मूल डेटा प्रदान करती है। इसके प्रशासनिक उपयोगों में से एक सबसे बुनियादी घटक निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन और शासी निकायों पर प्रतिनिधित्व का आवंटन है। यह वैज्ञानिक विश्लेषण और संरचना, वितरण और अतीत और भविष्य की संभावित वृद्धि के मूल्यांकन के लिए अपरिहार्य डेटा भी प्रदान करता है। व्यापार और उद्योग में व्यक्तियों और संस्थानों के लिए जनगणना के कई महत्वपूर्ण उपयोग हैं। विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के लिए उपभोक्ता की मांग का विश्वसनीय अनुमान जनसंख्या के आकार और उम्र और लिंग के आधार पर इसके वितरण की सटीक जानकारी पर निर्भर करते हैं। जनगणना नमूना सर्वेक्षणों के साथ संयोजन में वैज्ञानिक नमूना डिजाइन के लिए रूप-रेखा प्रदान करती है, साथ ही यह सभी सर्वेक्षण परिणामों की तर्कशीलता का मूल्यांकन करने के लिए भी महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है। देश की सामाजिक और आर्थिक योजना के लिए जनगणना डेटा अपरिहार्य है। योजना आयोग ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों द्वारा वर्गीकृत आयु, लिंग द्वारा जनसंख्या के वितरण पर जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करता है। इनके अतिरिक्त मतदाता सूची, अन्य प्रकार की जनगणनाओं, नागरिक पंजीकरण और महत्वपूर्ण आंकडे आदि क्षेत्रों में भी जनसंख्या गणना महत्वपूर्ण है।
जनगणना संख्या के कुछ महत्वपूर्ण उपयोगों को हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं:
• संघीय सरकार प्रतिवर्ष संघीय कोष में सामुदायिक कार्यक्रमों और सेवाओं जैसे शिक्षा कार्यक्रम, आवास और सामुदायिक विकास, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं और नौकरी प्रशिक्षण के लिए 675 बिलियन डॉलर (Billion dollars) से अधिक आवंटित करने के लिए जनगणना संख्या का उपयोग करती है।
• राज्य, स्थानीय और आदिवासी सरकारें नए स्कूल निर्माण, पुस्तकालयों, राजमार्ग सुरक्षा और सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों, नई सड़कों और पुलों, पुलिस और अग्निशमन विभागों के स्थान और कई अन्य परियोजनाओं के लिए धन की योजना और आवंटन के लिए जनगणना की जानकारी का उपयोग करती हैं।
• सामुदायिक संगठन सामाजिक सेवा कार्यक्रमों, सामुदायिक कार्रवाई परियोजनाओं, वरिष्ठ भोज कार्यक्रमों और बाल देखभाल केंद्रों को विकसित करने के लिए जनगणना जानकारी का उपयोग करते हैं। कारखानों, खरीदारी केंद्रों, सिनेमाघरों, बैंक और कार्यालयों के स्थान निर्धारण में व्यवसाय जनगणना संख्या का उपयोग करते हैं - ऐसी गतिविधियां जो अक्सर नई नौकरियां उत्पन्न करती हैं।
• जनगणना संख्या यातायात जमाव या भीड़भाड़ वाले स्कूलों से निपटने के लिए समुदायों को रणनीति बनाने में मदद करती है। गैर-लाभकारी संगठन पूरे राष्ट्र में समुदायों में संभावित स्वयंसेवकों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए जनगणना संख्या का उपयोग करते हैं।
• कई 911 आपातकालीन प्रणाली पिछले जनगणना के लिए विकसित किए गए नक्शे पर आधारित हैं। जनगणना की जानकारी स्वास्थ्य प्रदाताओं को बच्चों या बुजुर्ग लोगों के साथ समुदायों के माध्यम से बीमारियों के प्रसार की भविष्यवाणी करने में मदद करती हैं। और जब आपदाएं आती हैं, तो जनगणना बचाव दल को बताता है कि कितने लोगों को उनकी मदद की आवश्यकता होगी। जनगणना संख्याएं उद्योग का वित्तीय जोखिम कम करने और संभावित बाजारों का पता लगाने में मदद करती हैं।
भारत की अगली जनगणना, जो 16वीं भारतीय जनगणना होगी, 2021 में ली जाएगी। इससे पहले 15वीं भारतीय जनगणना को 2011 में लिया गया था, जिसमें 1931 के बाद पहली बार सामाजिक-आर्थिक और जाति की स्थिति के आधार पर जनसंख्या का अनुमान लगाने का प्रयास किया गया था। अप्रैल 2019 में, एक डेटा उपयोगकर्ता सम्मेलन (Data User Conference) आयोजित किया गया, जिसमें घोषणा की गई कि 330,000 प्रगणकों को सूचीबद्ध किया जाएगा और उन्हें अपने स्वयं के स्मार्ट फोन (smartphone) का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, हालांकि एक कागज विकल्प भी उपलब्ध होगा, जिसे प्रगणकों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी। वास्तविक गणना फरवरी 2021 में की जायेगी जबकि इसका संशोधन दौरा मार्च में आयोजित किया जायेगा। भारत में फैली कोविड (COVID-19) महामारी जनसंख्या गणना में देरी का कारण बनी है।
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