 
                                            समय - सीमा 260
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देश में ऐसे कई संगीत संस्थान हैं, जो संगीत में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, तथा उन्हीं में से एक भातखंडे संगीत संस्थान भी है। भातखंडे संगीत संस्थान कैसरबाग का एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ की हवा में भी संगीत बहता है। संगीत वाद्ययंत्रों की आवाज़, घुँघरूओं की झनकार और तबले और अन्य वाद्य यंत्रों की ताल स्थान को उत्कृष्ट बनाते हैं। भातखंडे संगीत संस्थान ने न केवल शहर और राज्य में बल्कि पूरे देश में संगीत के आकर्षण को फैलाने में जबरदस्त योगदान दिया है। भातखंडे संगीत संस्थान डीम्ड (Deemed) विश्वविद्यालय, जो पूर्व में भातखंडे संगीत संस्थान के नाम से जाना जाता था, लखनऊ में स्थित एक संगीत संस्थान है, जो विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा 1926 में स्थापित किया गया। इसे सन् 2000 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एक डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया गया, जो कि स्वर संगीत, वाद्य यंत्र, नृत्य, संगीत और अनुसंधान और प्रायौगिक (Applied) संगीत में संगीत शिक्षा प्रदान करता है। संस्थान में, संगीत में 2 वर्षीय डिप्लोमा (Diploma in Music), प्रदर्शन कला में स्नातक (Bachelor of Performing Arts) – 3 वर्ष, प्रदर्शन कला में स्नाकोत्तर (Master of Performing Arts) - 2 वर्षीय, पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। इसके अलावा ध्रुपद-धमार, ठुमरी गायन और लाइट (Light) शास्त्रीय संगीत में भी विशेष प्रकार का प्रशिक्षण है, जिसमें संगीत रचना और निर्देशन शामिल हैं। भारत में संगीत शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से है, जब सभी शिक्षाओं को महान संतों और ऋषि-मुनियों के गुरुकुलों और आश्रमों में प्रदान किया जाता था। एक श्रेणीबद्ध, समयबद्ध संरचना में शिक्षा के आधुनिक संस्थागतकरण की प्रणाली की शुरूआत 19वीं सदी के मध्य से ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी थी। भारतीय संगीत शिक्षा को 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इस प्रणाली के अंतर्गत लाया गया और संरचित किया गया। इस शताब्दी में भारतीय संगीत के दो दिग्गज, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली के इस संस्थागतकरण की दो मजबूत और समानांतर परंपराओं का नेतृत्व और विकास किया। 1926 में, पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने राय उमानाथ बाली और राय राजेश्वर बाली और अन्य संगीत संरक्षक और लखनऊ के संगीतकारों के सहयोग से, अवध की सांस्कृतिक रूप से जीवंत रियासत, लखनऊ में एक संगीत विद्यालय की स्थापना की। इस संस्था का उद्घाटन अवध के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम मैरिस (Sir William Marris) ने किया था और उनके नाम पर ही संस्था का नाम ‘मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक (Marris College of Music)’ रखा गया। 26 मार्च 1966 को, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने इस कॉलेज को अपने नियंत्रण में लिया और संस्था का नाम बदलकर इसके संस्थापक के नाम पर अर्थात ‘भातखंडे कॉलेज ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक (Bhatkhande College of Hindustani Music)’ रख दिया। राज्य सरकार के अनुरोध पर, 24 अक्टूबर, 2000 को एक अधिसूचना द्वारा भारत सरकार ने इस संस्थान को ‘डीम्ड विश्वविद्यालय’ घोषित किया। भातखंडे संगीत संस्थान सोसायटी (Society) अधिनियम 1860 के पंजीकरण के तहत पंजीकृत है और एक स्वायत्त संस्थान है। इस संस्थान का अतीत में अनुकरणीय उपलब्धियों के साथ एक बहुत ही शानदार इतिहास रहा है तथा इसके पूर्व छात्र दुनिया भर में फैले हुए हैं और कई संगीत शिक्षा और प्रदर्शन की सक्रिय खोज में हैं। अनूप जलोटा, दिलराज कौर, मालिनी अवस्थी, डॉक्टर पूर्णिमा पांडे ऐसे कई पूर्व छात्रों में से हैं।
भारत में संगीत शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से है, जब सभी शिक्षाओं को महान संतों और ऋषि-मुनियों के गुरुकुलों और आश्रमों में प्रदान किया जाता था। एक श्रेणीबद्ध, समयबद्ध संरचना में शिक्षा के आधुनिक संस्थागतकरण की प्रणाली की शुरूआत 19वीं सदी के मध्य से ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी थी। भारतीय संगीत शिक्षा को 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इस प्रणाली के अंतर्गत लाया गया और संरचित किया गया। इस शताब्दी में भारतीय संगीत के दो दिग्गज, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली के इस संस्थागतकरण की दो मजबूत और समानांतर परंपराओं का नेतृत्व और विकास किया। 1926 में, पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने राय उमानाथ बाली और राय राजेश्वर बाली और अन्य संगीत संरक्षक और लखनऊ के संगीतकारों के सहयोग से, अवध की सांस्कृतिक रूप से जीवंत रियासत, लखनऊ में एक संगीत विद्यालय की स्थापना की। इस संस्था का उद्घाटन अवध के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम मैरिस (Sir William Marris) ने किया था और उनके नाम पर ही संस्था का नाम ‘मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक (Marris College of Music)’ रखा गया। 26 मार्च 1966 को, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने इस कॉलेज को अपने नियंत्रण में लिया और संस्था का नाम बदलकर इसके संस्थापक के नाम पर अर्थात ‘भातखंडे कॉलेज ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक (Bhatkhande College of Hindustani Music)’ रख दिया। राज्य सरकार के अनुरोध पर, 24 अक्टूबर, 2000 को एक अधिसूचना द्वारा भारत सरकार ने इस संस्थान को ‘डीम्ड विश्वविद्यालय’ घोषित किया। भातखंडे संगीत संस्थान सोसायटी (Society) अधिनियम 1860 के पंजीकरण के तहत पंजीकृत है और एक स्वायत्त संस्थान है। इस संस्थान का अतीत में अनुकरणीय उपलब्धियों के साथ एक बहुत ही शानदार इतिहास रहा है तथा इसके पूर्व छात्र दुनिया भर में फैले हुए हैं और कई संगीत शिक्षा और प्रदर्शन की सक्रिय खोज में हैं। अनूप जलोटा, दिलराज कौर, मालिनी अवस्थी, डॉक्टर पूर्णिमा पांडे ऐसे कई पूर्व छात्रों में से हैं। भातखंडे संगीत संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय केवल भारत ही नहीं बल्कि यूरोप, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मध्य और पूर्व एशियाई देशों के संगीत के चाहने वालों के लिए भी एक बहुत ही पसंदीदा स्थान है। इन देशों के कई छात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। समय के साथ संस्थान में विभिन्न परिवर्तन आये, और संगीत सिखाने के तरीकों में भी बदलाव देखने को मिला। संस्थान ने भले ही जनता के बीच संगीत को बढ़ावा देने के लिए नए विचारों को अपनाया है, लेकिन साथ ही साथ इसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शुद्धता की रक्षा भी की है। आज भातखंडे संस्थान जहां छात्रों को शास्त्रीय रागों और नृत्यों का प्रशिक्षण दे रहा है, वहीं अपने साउंड स्टूडियो (Sound Studio) में गीत रिकॉर्ड (Record) करने की बारीकियां भी सीखा रहा है।
भातखंडे संगीत संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय केवल भारत ही नहीं बल्कि यूरोप, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मध्य और पूर्व एशियाई देशों के संगीत के चाहने वालों के लिए भी एक बहुत ही पसंदीदा स्थान है। इन देशों के कई छात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। समय के साथ संस्थान में विभिन्न परिवर्तन आये, और संगीत सिखाने के तरीकों में भी बदलाव देखने को मिला। संस्थान ने भले ही जनता के बीच संगीत को बढ़ावा देने के लिए नए विचारों को अपनाया है, लेकिन साथ ही साथ इसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शुद्धता की रक्षा भी की है। आज भातखंडे संस्थान जहां छात्रों को शास्त्रीय रागों और नृत्यों का प्रशिक्षण दे रहा है, वहीं अपने साउंड स्टूडियो (Sound Studio) में गीत रिकॉर्ड (Record) करने की बारीकियां भी सीखा रहा है। यह छात्रों को खुद को बढ़ावा देने और सोशल मीडिया (Social Media) के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाने की कला भी सिखाता है। छात्रों को यूट्यूब (YouTube), फेस बुक (Facebook) और ट्विटर (Twitter) जैसे सोशल मीडिया मंचों पर खुद को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया जाता है। शायद यही कारण है जिसकी वजह से संस्थान में छात्रों की संख्या निरंतर बढती जा रही है। यह युवा पीढ़ी को संगीत और नृत्य में करियर (Career) के रूप में बेहतर अवसर प्रदान कर रहा है और इसलिए संस्थान में छात्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह एक ऐसा संस्थान है जहाँ वे छात्र जो अपना जीवन संगीत में समर्पित करना चाहते हैं, उन्हें पूरा समर्थन दिया जाता है। संस्थान का पाठ्यक्रम छात्रों को कलाकारों के रूप में विकसित होने और विकसित होने के लिए आवश्यक कौशल और अवसर प्रदान करता है।
 यह छात्रों को खुद को बढ़ावा देने और सोशल मीडिया (Social Media) के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाने की कला भी सिखाता है। छात्रों को यूट्यूब (YouTube), फेस बुक (Facebook) और ट्विटर (Twitter) जैसे सोशल मीडिया मंचों पर खुद को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया जाता है। शायद यही कारण है जिसकी वजह से संस्थान में छात्रों की संख्या निरंतर बढती जा रही है। यह युवा पीढ़ी को संगीत और नृत्य में करियर (Career) के रूप में बेहतर अवसर प्रदान कर रहा है और इसलिए संस्थान में छात्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह एक ऐसा संस्थान है जहाँ वे छात्र जो अपना जीवन संगीत में समर्पित करना चाहते हैं, उन्हें पूरा समर्थन दिया जाता है। संस्थान का पाठ्यक्रम छात्रों को कलाकारों के रूप में विकसित होने और विकसित होने के लिए आवश्यक कौशल और अवसर प्रदान करता है। कोरोना विषाणु संक्रमण के मामलों की बढ़ती संख्या के साथ इसके प्रसार को रोकने के लिए जहां सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया वहीं इसके बदले ऑनलाइन (Online) स्कूली शिक्षा, और शिक्षण का विकल्प चुना गया। अन्य संस्थानों की भांति लखनऊ शहर में प्रदर्शन कला का प्रशिक्षण देने वाले विभिन्न संस्थान भी 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के लिए डिजिटल (Digital) पाठ्यक्रम का सहारा ले रहे हैं, जिसके तहत कक्षाएं अब ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं।
कोरोना विषाणु संक्रमण के मामलों की बढ़ती संख्या के साथ इसके प्रसार को रोकने के लिए जहां सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया वहीं इसके बदले ऑनलाइन (Online) स्कूली शिक्षा, और शिक्षण का विकल्प चुना गया। अन्य संस्थानों की भांति लखनऊ शहर में प्रदर्शन कला का प्रशिक्षण देने वाले विभिन्न संस्थान भी 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के लिए डिजिटल (Digital) पाठ्यक्रम का सहारा ले रहे हैं, जिसके तहत कक्षाएं अब ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं। 
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        