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सूचनाओं के विस्तार में बहुत ही महत्वपूर्ण है, मुद्रणालय

लखनऊ

 06-11-2020 12:05 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

सूचनाओं का विस्तार करने में मुद्रणालय की एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसा माना जाता है कि विलियम कैक्सटन (1422-1491) ने 1426 में पहली बार इंग्लैंड में छपाई या मुद्रण शुरू किया तथा वे मुद्रित पुस्तकों के पहले रिटेलर (Retailer) भी थे। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि मुंशी नवल किशोर ने केवल 22 वर्ष की उम्र में 1858 में लखनऊ में एशिया का पहला प्रिंटिंग प्रेस (Printing press) या मुद्रणालय शुरू किया था। मुद्रणालय एक प्रकार की यांत्रिक युक्ति है, जिसके द्वारा कागज, कपड़े आदि पर दाब डालकर छपाई की जाती है। इस प्रक्रिया में एक स्याही-युक्त सतह को कागज या कपड़े आदि पर रखकर उस पर दाब डालना होता है। स्याही-युक्त सतह पर मुद्रण छवि उल्टी बनी होती है, जिसकी सीधी छवि कागज या कपड़े पर छपने के बाद दिखायी देती है। मुद्रणालय का आविष्कार और वैश्विक प्रसार दूसरी सहस्राब्दी की सबसे प्रभावशाली घटनाओं में से एक माना जाता है। इसका आविष्कार लगभग 1440 में जर्मनी में, जोहान्स गुटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) ने किया और इस प्रकार प्रिंटिंग क्रांति की शुरुआत हुई। मुद्रणालय का आविष्कार होने से पहले, किसी भी लेख या चित्र की प्रतिलिपि बनाने का कार्य हाथ से पूरा करना पड़ता था जिसमें श्रम के साथ-साथ समय भी बहुत अधिक लगता था। सामग्री या पुस्तकों की प्रतिलिपि बनाने के लिए कई अलग-अलग सामग्रियों जैसे- मिट्टी और पेपिरस (Papyrus), मोम, चर्मपत्र आदि का उपयोग किया जाता था।
उस समय तक यह काम केवल उन प्रतिलिपिकारों के लिए आरक्षित था, जो मठों में रहते और वहीं काम करते थे। इसके लिए प्रतिलिपिकार पहले पृष्ठ लेआउट (Layouts) को मापता और रेखांकित करता और फिर ध्यान से किसी पुस्तक के पाठ की प्रतिलिपि बनाता था। बाद में, प्रकाशक ने पन्नों में डिजाइन (Design) और अलंकरण जोड़ने का कार्य किया। एशिया की पहली प्रिंटिंग प्रेस मुंशी नवल किशोर द्वारा लखनऊ में शुरू की गयी थी। मुंशी नवल किशोर एक पुस्तक प्रकाशक थे जिन्हें भारत का कैक्सटन भी कहा जाता था। लखनऊ का नवल किशोर प्रेस एंड बुक डिपो (Naval Kishore Press and Book Depot) एशिया का सबसे पुराना मुद्रण और प्रकाशन व्यवसाय माना जाता है जहां 5000 से भी अधिक किताबें मुद्रित और प्रकाशित की गयी हैं। इनमें अरबी, बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, पंजाबी, पश्तो, संस्कृत आदि किताबें शामिल हैं। अलम्मा सईद शम्शुल्ला कादरी जी ने अपनी कई क़िताबें इसी मुद्रणालय से छपवाईं। इसी प्रकार से शेख सदुल्लाह मसीह पानीपती द्वारा फारसी में लिखी गयी रामायण-ए-मसीह भी यही से प्रकाशित की गयी। तुलसीदास जी की दोहावली, गोमती-लहरी, मार्कंडेय पुराण, दिवान-ए-ग़ाफिल, निति सुधार तरंगिणी जैसी क़िताबें और ग्रन्थ इसी मुद्रणालय में छापे गए थे। प्रेस के आविष्कार से पहले की प्रौद्योगिकियों में कागज निर्माण, स्याही का विकास, वुडब्लॉक (Woodblock) प्रिंटिंग आदि शामिल थे, जो प्रिंटिग प्रेस के आविष्कार में सहयोगी बने। उसी समय, कई मध्यकालीन उत्पाद और तकनीकी प्रक्रियाएँ परिपक्वता के स्तर तक पहुँच गई थीं, जिसने मुद्रण प्रयोजनों के लिए उनके संभावित उपयोग की अनुमति दी। 1300 से 1400 के दशक के दौरान, लोगों ने मुद्रण का एक बहुत ही मूल रूप विकसित किया जिसमें लकड़ी के ब्लॉक (Block) पर काटे गए अक्षरों या चित्रों को शामिल किया गया था। ब्लॉक को पहले स्याही में डुबोया जाता था और फिर उससे कागज पर मुहर लगाई जाती थी। गुटेनबर्ग ने महसूस किया कि यदि मशीन के साथ कट (Cut) ब्लॉक का उपयोग किया जाये, तो मुद्रण प्रक्रिया बहुत तेज की जा सकेगी। गुटेनबर्ग ने लकड़ी के ब्लॉकों का उपयोग करने के बजाय, धातु का उपयोग किया, जिसे गतिशील प्रकार (Movable type) की मशीन के रूप में जाना गया। इस मशीन के साथ, गुटेनबर्ग ने पहली मुद्रित पुस्तक बनाई, जो स्वाभाविक रूप से बाइबिल का पुनरुत्पादन थी। आज गुटेनबर्ग बाइबिल अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए एक अविश्वसनीय रूप से मूल्यवान, क़ीमती वस्तु है। गुटेनबर्ग को एक तेल-आधारित स्याही की शुरुआत का श्रेय भी दिया जाता है, जो पहले इस्तेमाल किए गए पानी-आधारित स्याही की तुलना में अधिक टिकाऊ थी। गुटेनबर्ग के आविष्कार ने जनता के बीच पहुँचने पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। चूंकि कुलीन वर्गों के लिए हाथ से लिखी गई किताबें ही अमूल्य और भव्यता का संकेत थीं, इसलिये उनके अनुसार हाथ से लिखी गई किताबों का सस्ती, बड़े पैमाने पर उत्पादित किताबों के साथ कोई मेल नहीं था। इस प्रकार, निचले वर्ग के साथ प्रेस-मुद्रित सामग्री पहले से अधिक लोकप्रिय हो गयी। जब प्रिंटिंग प्रेस का विस्तार होने लगा तो अन्य प्रिंट दुकानें खुल गईं और जल्द ही यह पूरी तरह से नए व्यापार में विकसित हो गया। मुद्रित विषय जल्दी और सस्ते में दर्शकों तक जानकारी फैलाने का एक नया तरीका बन गया। हाथ से संचालित प्रिंटिंग प्रेस में मूल प्रिंटिंग प्रेस के साथ, एक फ्रेम (Frame) का उपयोग विभिन्न प्रकार के ब्लॉक समूहों को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है। एक साथ, ये ब्लॉक शब्द और वाक्य बनाते हैं। हालाँकि, वे सभी ब्लॉक में उल्टे होते हैं। सभी ब्लॉक में स्याही लगी होती है, और फिर कागज की एक शीट ब्लॉकों पर रखी जाती है।
यह सब एक रोलर (Roller) से होकर गुजरता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्याही कागज पर स्थानांतरित हो गई है। अंत में, कागज को उठा लिया जाता है, और पाठक स्याही वाले अक्षरों को देख सकता है जो अब कागज पर सामान्य रूप से दिखाई देते हैं। ये हाथ से संचालित होते थे। 19 वीं शताब्दी के दौरान भाप से चलने वाले प्रिंटिंग प्रेस का भी आविष्कार हुआ, जिनके लिए हाथ से श्रम करने की आवश्यकता नहीं थी। आज के प्रिंटिंग प्रेस विद्युत् से चलने वाले तथा स्वचालित हैं, और पहले से कहीं अधिक तेजी से छपाई कर सकते हैं। वर्तमान समय में कई प्रकार के प्रिंटिंग प्रेस जैसे लेटरप्रेस (Letterpress), ऑफसेट प्रेस (Offset Press), डिजिटल प्रेस (Digital Press) आदि उपलब्ध हैं, तथा प्रत्येक को एक विशिष्ट प्रकार की छपाई के लिए जाना जाता है।
मुद्रण के आविष्कार से यूरोप में मुद्रण गतिविधियों में कुछ ही दशकों में भारी वृद्धि हुई। टाइपोग्राफिक टेक्स्ट प्रोडक्शन (Typographic Text Production) की तीव्रता के साथ ईकाई लागत में तेज गिरावट के कारण, पहले अखबारों को जारी किया गया जिसने जनता को हर समय की जानकारी देने के लिए पूरी तरह से एक नया क्षेत्र खोल दिया। प्रिंटिंग प्रेस, वैज्ञानिकों के एक समुदाय की स्थापना में भी कारक बनी जिसने वैज्ञानिक क्रांति लाने में मदद की। इसके द्वारा विद्वान व्यापक रूप से प्रसारित होने वाली पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी खोजों को आसानी से संप्रेषित कर सकते थे। प्रिंटिंग प्रेस की वजह से, लेखकत्व अधिक सार्थक और लाभदायक बन गया। प्रिंटिंग प्रेस, ज्ञान के लोकतंत्रीकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम बना। छपाई को लोकप्रिय बनाने का परिणाम अर्थव्यवस्था पर पड़ा तथा प्रिंटिंग प्रेस शहर के विकास के उच्च स्तर के साथ जुड़ा। व्यापार से संबंधित नियमावली के प्रकाशन और डबल-एंट्री बहीखाता (Double-entry bookkeeping) पद्धति की तरह शिक्षण तकनीकों ने व्यापार की विश्वसनीयता को बढ़ाया और व्यापारी अपराधियों की गिरावट और व्यक्तिगत व्यापारियों के उदय का कारण बना। वर्तमान समय में कोविड (COVID-19) ने दुनिया भर में गंभीर व्यवधान पैदा किया, जिसका प्रभाव मुद्रण और पैकेजिंग डोमेन (Packaging domain) पर भी हुआ। महामारी के कारण हुयी तालाबंदी ने इस क्षेत्र की आपूर्ति श्रृंखला में बहुत व्यवधान उत्पन्न किया जिसकी वजह से व्यवसायों के लिए ग्राहकों को पहले जैसी सेवा उपलब्ध कराना एक चुनौती बना। हालांकि, इस क्षेत्र के कुछ लोगों ने इस संकट को एक अवसर के रूप में देखा और अपने सेवा तंत्र का डिजिटलीकरण (Digitizing) करके अपने मौजूदा व्यवसाय मॉडल (Model) में नवाचार उत्पन्न किया। और इस प्रकार आज के अशांत समय में व्यापार निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल उत्पादों और सेवाओं की पेशकश की। मुद्रण क्षेत्र से जुडे लोग अपने मौजूदा पोर्टफोलियो (Portfolio) में नई सेवाएं जोड़ रहे हैं और अपने व्यवसायों को डिजिटल-प्रथम (Digital-first) मॉडल में बदल रहे हैं। कोविड-19 ने इस उद्योग के लिए नई चुनौतियां पेश की हैं लेकिन इस क्षेत्र में मौजूद लोगों के लिए अपने शिल्प को बेहतर बनाने और ग्राहकों को बेहतर समझने के लिए संभावित अवसर भी प्रदान किये हैं।

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Printing_press
https://lucknow.prarang.in/posts/798/postname
https://www.psprint.com/resources/printing-press/
https://www.expresscomputer.in/guest-blogs/impact-of-covid-19-on-the-print-industry/60845/
चित्र सन्दर्भ:
पहला चित्र दिखाता है लखनऊ में स्थित एशिया का सबसे पुराना मुद्रणालय(prarang)
दूसरी छवि पुराने प्रिंटिंग प्रेस मशीन को दिखाती है।(wikipedia)
तीसरी छवि प्रारंभिक प्रेस को दिखाती है, विलियम स्कीन द्वारा प्रारंभिक टाइपोग्राफी से नक़्क़ाशी।(wikipedia)


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