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केले की कई प्रजातियों में से एक है लाल केला।इसमें भी काफ़ी विभिन्नताएँ मौजूद हैं।इनकी लाल-बैंगनी त्वचा होती है।आम तौर पर पाए जाने वाले बड़े आकार के केलों के मुक़ाबले कुछ लाल केले छोटे और फूले हुए होते हैं।जब यह पकते हैं तो इनका गूदा बादामी से हल्के गुलाबी रंग का होता है।पीले केलों से अलग लाल केले ज़्यादा मुलायम और मीठे होते हैं।पूर्वी अफ़्रीका, एशिया, दक्षिण अमेरिका और यूनाइटेड अरब अमीरात लाल केलों के मुख्य निर्यातक हैं।मध्य अमेरिका में इनकी बहुत माँग है।पूरी दुनिया में ये बिकते हैं।मूसा अकयूमीनता (Musa acuminata) प्रजाति के लाल केले दक्षिण पूर्व एशिया में मूलरूप से मिलते मिलते हैं।अंग्रेज़ी में इसे रेड़ डक्का(Red Dacca), क्लैरेट बनाना (Claret banana), जमेकन रेड़ बनाना(Jamaican Red banana ) आदि नाम दिए गए हैं।संस्कृत में इसे ‘रक्तकदली’ कहा जाता है।
लाल केले के ख़ास गुण :
पकने पर इन केलों का रंग लाल या कत्थई हो जाता है और ज़्यादा तब खाए जाते हैं, जब ये थोड़े मुलायम और बिना चोट खाए होते हैं।इसमें बीटा कैरोटीन (Beta
Carotene) और विटामिन सी पीले केलों से ज़्यादा होते हैं।इनमें पोटेशियम और लौह तत्व भी होता है।केला जितना लाल होता है उतना ही ज़्यादा उसमें कैरोटीन और विटामिन सी होता है।पीले केलों की तरह ही ये कुछ दिनों में कमरे के तापमान में पक जाते हैं।ये फ़्रिज से बाहर सुरक्षित रहते हैं।पीले केलों से अगर इन्हें मिलाया जाए तो लाल केले छोटे, मोटी त्वचा के और ज़्यादा मीठे स्वाद के होते हैं।इनका shelf जीवन पीले केलों से ज़्यादा लम्बा होता है।क़ीमत में ये पीले केलों से 50% प्रति पाउंड ज़्यादा होते हैं क्योंकि बहुत कम मात्रा में इनकी आपूर्ति होती है।
उपयोग:
आमतौर पर इनको छिलका उतारकर साबुत खाया जाता है।इन्हें काटकर मिठाई और फलों के सलाद में डाला जाता है।इन्हें बेक, तला और भूना भी जाता है।सूखे लाल केले भी दुकानों में मिलते हैं।टोरंटो में 1870 और 1880 में जो पहले केले बाज़ार में आए वे लाल केले थे।
ज़्यादा आमदनी और नियमित आजीविका के लिए केलों की खेती :
केले पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय ताज़े फल होते हैं।इसका बनाना(banana) नाम अरबी के शब्द बान(Banan) से आया है जिसका मतलब उँगली होता है।पुराना वैज्ञानिक नाम मूसा सपीनतम(Musa sapientum) है।इनमें कार्बोहाईड्रेट और पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होता है।अपनी ज़्यादा ऊर्जा क्षमता के कारण ये धावकों की पहली पसंद होते हैं।ये व्यापार और आमदनी के बेहतरीन स्रोत हैं।केले पौष्टिक सोने की खान होते हैं। इसमें उच्च क्षमता का विटामिन B6 तत्व होता है जो संक्रमण से लड़ता है और हेमे(Heme) के संश्लेषण के लिए यह ज़रूरी होता है।इसमें फ़ाइबर (रेशा) भी भरपूर होता है।केलों के उत्पादन में असंतुलित रूप से रसायनों के प्रयोग के विकल्प में दुनिया भर में केले और्गेनिक तरीक़े से उत्पादित किए जा रहे हैं।600BC में इतिहास में पहली बार एक बौद्ध ग्रंथ में केले को बहुत पौष्टिक फल बताया गया।भारत में केलों की खेती कुल उपज का 2.8% होती है।यह किसानों की बहुत भरोसेमंद और कमाऊ उपज होती है।केला अपनी कम क़ीमत और ज़्यादा पौष्टिकता के कारण बहुत लोकप्रिय है।।
कमालपुर लाल केला :
कमालपुर गाँव की घाटी और आस-पास के क्षेत्रों में इस केले की भरपूर फसल होती है।कमालपुर कर्नाटक के गुलबर्गा ज़िले में स्थित है।इसे ‘रईस आदमी का फल’ भी कहा जाता है क्योंकि इसकी क़ीमत आम केलों से ज़्यादा होती है।इसका कारण लाल केलों की उपज पर अधिक उर्वरकों की खपत, पानी और श्रमिकों की ज़्यादा ज़रूरत है।इसकी ऊपरी त्वचा लाल होती है, गूदा बादामी रंग का और स्वाद बहुत अच्छा होता है।कैलोरीज़्यादा होती हैं, विटामिन सी और बी6 मिलकर इसे स्वास्थ्यवर्धक फल बनाते हैं।
रामपुर ज़िले में केले की खेती का आर्थिक विश्लेषण :
2016-17 में रामपुर ज़िले में व्यापक पैमाने पर केले की खेती को लेकर सर्वेक्षण कराया गया।यह 25 केला उत्पादकों से बातचीत पर आधारित था।इसमें लगने वाली सभी प्रकार की लागत और उत्पादन की क़ीमत पता चली।सर्वेक्षण के नतीजों में कई बातें सामने आयीं।रामपुर ज़िले के केला उत्पादक ज़्यादातर अधिक उपज देने वाली प्रजातियों का प्रयोग करते हैं।जलवायु और ज़मीन दोनों इस खेती के लिए उपयुक्त हैं।सारी खपत की गणना करने और लाभांश का मूल्यांकन करने से पता चला कि इस क्षेत्र में केला उत्पादन अन्य फसलों के मुक़ाबले बहुत ही फ़ायदेमंद है।इससे कुल आमदनी रु. 89,485.00 प्रति हैक्टेयर है जबकि ख़र्च रु. 165515.00 और gross आमदनी रु. 255000.00 है।