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वर्तमान समय में कोविड-19 के प्रकोप सें दुनिया के लगभग सभी देश और वहाँ के देशवासी प्रभावित हुए हैं। इस बीमारी ने लोगों को न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से भी झकझोर कर रख दिया है, और मनुष्य को अपने प्रत्येक पहलू पर एक नए सिरे से सोचने के लिए विवश कर दिया है। इस भागदौड़ भरे जीवन में जहां स्वास्थ्य गौण (Secondary) आवश्यकता थी, वहीं कोरोना ने इसे विश्व स्तर पर एक प्राथमिक आवश्यकता में बदल दिया है। जहाँ एक ओर सम्पूर्ण विश्व इस महामारी की चपेट में है, वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल इसका सारा आरोप एक-दूसरे की शासन प्रणाली पर लगा कर जिम्मेदरी से हाथ धोने पर तुले हैं। किंतु सत्य यह है कि आरंभिक रूप से इस वायरस को सभी ने नज़रअंदाज किया, जिसका परिणाम हम सभी आज देख सकते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में देरी, आवश्यक उपकरणों का अभाव, सवस्थ्य कर्मियों की अनुपस्थिति या उनकी संख़्या में कमी, लोगों द्वारा स्वास्थ्य संबंधी लापरवाही इत्यादि सभी कारक इसके लिए समान रूप से उत्तरदायी हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है”, कोरोना वैक्सीन (Vaccine) बनाने में जुटे सभी देश इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। आधुनिकता के दौर में किसी भी देश को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए नवाचार अथवा नवीनीकरण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ता है। नवाचार (नव+आचार) का अर्थ किसी उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा में थोड़ा या बहुत बड़ा परिवर्तन लाने से है, जिससे कम समय में अधिक गुणवत्ता लाभ उपभोक्ता को प्राप्त हो सके। किसी भी आविष्कार के लिए अनुसंधान और विकास (Research and development) की विशेष रूप से आवश्यकता होती है।
दुनिया के सफल उद्यमियों में से एक बिल गेट्स (Bill Gates) ने कहा था “आज वैश्विक तबाही का सबसे बड़ा खतरा एक वायरस है। अगर अगले कुछ दशकों में कोई चीज़ दस लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करेगी, तो वह संभवत: एक युद्ध की बजाय एक संक्रामक वायरस होगी”। मात्र बिल गेट्स ने ही नहीं बल्कि विश्वं स्वास्थ संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र संघ के आपदा जोखिम न्यूनीकरण (The United Nations Office for Disaster Risk Reduction) तथा एलर्जी और संक्रामक रोग (Allergy and Infectious Disease), रेड क्रॉस आदि संगठन भी समय-समय पर हम सभी को इस प्रकार के रोगों से बचने के लिए चेतावनी देते रहते हैं। ऐसे में यह आवश्य्क है कि हम वर्तमान में रोगों से सुरक्षित रह कर भविष्य की संभावित परिस्थितियों के लिए तैयार रहें। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्यों में कोरोनावायरस के संक्रमण के लिए चमगादड़ भी प्रत्यक्ष भागीदारी निभाते हैं। जैसा कि 2013 में फैले इबोला वायरस (Ebola Virus) के संक्रमण के दौरान हुआ था, जो काले हंस के माध्य्म से फैला था। किंतु चमगादड़ों द्वारा मनुष्य में कोरोनावायरस के फैलने के कोई प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं। वास्तविकता यह है कि स्वास्थ्य के क्षेत्रों में नवाचार का अभाव और विज्ञान की लोच इस वायरस को रोकने में असफलता के लिए जिम्मेदार है।
वर्तमान समय में 40 से अधिक स्वास्थ्य कंपनियों ने कोविड-19 टीकों का विकास शुरू कर दिया है। टीके के अनुसंधान में निवेश कितना भी ज्यादा हो, किंतु यदि वह सही तरीके से तैयार किया जाए, तो इसे तैयार होने में लगभग 18 महीने का समय अवश्य लगेगा। अमेरिकी शोधकर्ता ने हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस को बताया कि वह और उनकी टीम 2016 में कोरोनावायरस के एक अन्य श्वसन रोग सार्स (SARS) पर काम कर रहे थे। लेकिन, उस समय, किसी को भी कोरोनावायरस अनुसंधान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह अपने शोध को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक धन नहीं जुटा पा रहे थे। वैसे तो सामान्य समय में टीकों की पर्याप्त मांग नहीं होती है, यह एक आर्थिक वस्तु है, जबकि टीकों की खपत सामान्य रूप से बहुत कम होती है। यही कारण है कि ऐसी बीमारी आने से पूर्व इसके प्रकोप का अंदाजा लगाना सभी के लिए कठिन है और वैक्सीन निर्माता भी वैक्सीन अनुसंधान और विकास (R&D) में ज्यादा निवेश करने में रूचि नहीं लेते हैं।
नवाचार के पथ पर अग्रसर होते हुए पेटेंट (Patent) को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रसार का एक साधन माना जाता है, जो आविष्कारक को एकाधिकार और संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है। हालाँकि जब तक नवप्रवर्तक पेटेंट की सभी शर्तों को पूरा नहीं करता, तब तक पेटेंट अधिकारों की स्वचालित रूप से मान्यता नहीं होती है। पेटेंट पर संयुक्त राष्ट्र के विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization of the United Nations) के आँकड़ों पर नज़र डालें तो हम पाएँगे कि भारत देश के पेटेंट कार्यालय द्वारा वर्ष 2016 की अपेक्षा 2017 में 50 प्रतिशत अधिक पेटेंट आवंटित किए गए। अर्थात 2015 में 6,022 और 2016 में 8,248 पेटेंट प्रदान किए गए, जबकि 2017 में यह संख़्या बढ़कर 12,387 हो गई। हालाँकि इसमें एक बड़ा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदकों का भी था। वर्ष 2018 में भारत ने 2,013 अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दर्ज किए। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में विश्वभर में 1.4 मिलियन पेटेंट आवंटित किए गए थे। यह संगठन कई वर्षों से पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट देने की प्रक्रियाओं को सरल करके नवाचार को बढ़ावा देना के प्रयासों में जुटा है। भारत में पेटेंट आवेदकों की संख्या अमेरिका और चीन की अपेक्षा बहुत कम है। वर्ष 2017 में चीन में 48,905 और 2018 में 53,345 अंतरराष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दर्ज किए। वहीं शीर्ष पर रहते हुए अमेरिका ने वर्ष 2018 में 56,142 आवेदन दर्ज किए। भारत देश नवाचार के माध्यम से विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। केंद्रीय मुंबई स्थित पेटेंट का नियंत्रक प्रमुख कार्यालय देश में पेटेंट आवेदन की प्रक्रिया को किफायती और सरल बनाने का प्रयास कर रहा है, ताकि अधिक से अधिक आवेदनकर्ताओं को आकर्षित किया जा सके और देश के विकास में वृद्धि हो।
कोविड की वर्तमान परिस्थिति से यह सिद्ध होता है कि चिकित्सा, स्वास्थ एवं कल्याण पर प्रत्येक देश को न केवल निवेश करने की आवश्यकता है, बल्कि नवाचार और खोज के माध्यम से भविष्य के लिए भी पर्याप्त साधन और उपकरण जुटाने की भी आवश्यकता है, ताकि इस प्रकार की बीमारी से हर देश सुरक्षित रह सके। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी ऐसे क़दम उठाए जाने चाहिए, जिससे छोटे-बड़े सभी देशों को चिकित्सा व स्वास्थ सेवाएँ मिल सकें। इसी के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा, बुनियादी ढांचे और संभावित महामारी के लिए पहले और बाद की वैज्ञानिक शोध एवं तथ्यों के लिए विशेष रूप से अनुसंधान और नवाचार के दृष्टिकोण से तकनीकी और संगठनात्मक विशेषज्ञता के मुख्य साधनों को भी विकसित करने की अति आवश्यकता है।
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