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प्राचीन इस्लाम धर्म में बहुत से ऐसे तथ्यों और रहस्यों का उल्लेख मिलता है जो ईश्वर द्वारा मानव कल्याण के उद्देश्य से अपने पैगम्बरों के माध्य्म से लोगों तक पहुँचाए गए हैं। आइए उन्हीं में से कुछ तथ्यों को संक्षेप में जानने क प्रयास करते हैं। इस्लाम धर्म में, मिराज (Mi'raj) का विशेष महत्व है यह पैगंबर मुहम्मद के स्वर्गारोहण की यात्रा है। इस मान्यता क़े अनुसार एक शाम मुहम्मद को आर्कबेल्स जिब्रील (गेब्रियल) और मिकाल (माइकल) द्वारा ईश्वर से भेंट करने के लिए तैयार किया गया, जो मक्का के पवित्र मंदिर काबा (Kaʿbah) में सो रहे थे। उसके शरीर से सभी प्रकार की अशुद्धि, भ्रम और शंकाओं को दूर कर ज्ञान और विश्वास की भावना को उजागर किया गया। शुरुआती मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर को जिब्रील द्वारा सीधे स्वर्ग के सबसे निचले हिस्से में ले जाया गया था। इस्लामिक इतिहास में आरोही की कहानी मुहम्मद की रात की यात्रा (इसरा) से "पवित्र स्थान" (मक्का) से "आगे के पूजा स्थल" (यरूशलेम) की कहानी से जुड़ी हुई है। लोकप्रिय रूप से उद्गम को राजाब के 27 वें दिन लीलात अल-मिराज ("उदगम की रात") कहा जाता है।
कुरान में सूरह अल-इसरा में कहा गया है कि पैगंबर मुहम्मद ने विशेष रूप से, मक्का से यरूशलेम की चमत्कारी रात की यात्रा यरूशलेम में अल-अक्सा मस्जिद की साइट पर की जो अन्तत: स्वर्ग तक जाकर संपन्न हुई । इस पूरी यात्रा के वर्णन में इज़रा और मिराज का उल्लेख किया गया है। हदीस के कुछ विद्वानों के अनुसार, यह यात्रा पैगंबर मुहम्मद के रजक के 27 वें दिन मक्का से मदीना चले जाने से ठीक एक साल पहले हुई है।
सर्वप्रथम, स्वर्ग में प्रवेश करते हुए मुहम्मद और जिब्रील ईश्वर के सिंहासन तक पहुंचने से पूर्व सभी सात स्तरों सें होकर गुजरे। इस मार्ग में उनकी भेंट ईश्वर के सभी पैगम्बरों आदम, याय्या (जॉन), यीशु, युसुफ़ (जोसेफ) इद्रिश, हारून, मूसा और इब्राहम से हुई और साथ ही उन्होंने नरक और स्वर्ग का दौरा भी किया। मूसा उनसे कहते हैं कि ईश्वर मुहम्मद को स्वयं से अधिक मानते हैं जो स्वयं उनका अनुसरण करते हैं। एक बार मुहम्मद को ईश्वर के सम्मुख प्रस्तुत होने क आदेश दिया गया और उनसे कुछ सवाल भी किए गए कि क्या उन्होंने वास्तव में ईश्वर को कभी देखा है, साथ ही उनसे कहा गया कि वह हर दिन 50 बार (आलात (रस्म प्रार्थना) का पाठ करें। हालांकि, मूसा द्वारा मुहम्मद से आग्रह किया गया कि अनुयायियों के लिए ऐसा करना असंभव होगा इसलिए इस प्रर्थना की संख्या को घटाकर प्रतिदिन 5 बार कर कर दिया गया।
अलग-अलग मुस्लिम समुदायों के लिए मुहम्मद का मिराज हमेशा से चिंतन क विषय बना हुआ है। कोई इसे एक स्वपन मात्र कहता है तो कई लोगों का मानना है कि मुहम्मद की आत्मा स्वर्ग में और शरीर धरती पर निवास करता है। इस्लाम धर्म में ऐसा माना जाता है कि बुर्क़ (Burāq) एक ऐसा सफेद रंग क प्राणी या जानवर है जो आधे खच्चर और आधे गधे के समान है और जिसके पंख भी हैं। इस जीव ने पैगंबर मोहम्मद को स्वर्ग तक पहुँचाया। मूल रूप से बुर्क़ का उल्लेख मुहम्मद की मक्का से यरूशलेम और यरूशलेम से मक्का (वापसी) तक की रात की यात्रा (इसरा) की कहानी में मिलता है। यह भी उल्लेखित है कि कैसे शहरों के बीच की इतनी लंबी यात्रा एक रात में पूरी की गई। कुछ परंपराओं के अनुसार जैसे-जैसे रात के सफर की कहानी (इसरा) मुहम्मद के स्वर्ग (miārāj) के स्वर्गारोहण के साथ जुड़ती गई वैसे- वैसे वह जीव एक महिला के सिर और मोर की पूंछ वाला जीव बन गया जो मुहम्मद के स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए एक साधन बना।
अहमद मूसा (Aḥmad Mūsā) जिनको इस्लाम धर्म में एक चित्रकार के रूप में जाना जाता है। यह चित्रकारी उन्होंने अपने पिता से सीखी थी। मूसा ने चेहरे की कलाकृतियों के साथ फारसी लघु चित्रकला का आविष्कार किया। वह इब्राहीम के दरबार में तबरेज़ में और अबू साद (1316-35 शासन) के तहत भी सक्रिय रूप से कार्य करते थे। इनके द्वारा चित्रित एक कालिला वा डिमना (जानवरों की दंतकथाओं की पुस्तक) और मिराज (पैगंबर मुहम्मद की चमत्कारी यात्रा) की एक पुस्तक, जो वर्तमान समय में शायद इस्तांबुल के टॉपकापी पैलेस में शाही ऑटोमन पुस्तकालय के "विजेता के एल्बम" वाले भाग में संरक्षित हैं।
इस्लाम में वर्णित जिब्रील (Jibrīl) या जेबराएल (Jabrāʾīl) या जिबरेल (Jibreel), जिनको बाइबिल साहित्य में वर्णित गेब्रियल के समकक्ष माना जाता है ।
वे ईश्वर और मनुष्यों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं। साथ ही उनको पैगंबर (विशेष रूप से मुहम्मद) के रहस्योद्घाटन के वाहक के रूप में भी जाना जाता है।
मुस्लिम “मीलाद उन-नबी” को एक त्यौहार की तरह मनाते हैं, जिसका शब्दिक अर्थ मौलिद (Mawlid) और अरबी भाषा में जिसका अर्थ है “जन्म” अर्थात 'हज़रत मुहम्मद’ का जन्म दिन'। संसार का सबसे बड़ा जश्न माना जाने वाला यह त्यौहार 12 रबी अल-अव्वल को मनाया जाता है। दूसरी ओर कुछ शिया मुस्लिमों का ऐसा मानना है कि 'हज़रत मुहम्मद का जन्म रबी अल-अव्वल के 17 वें दिन हुआ था। कई मुस्लिम देशों में लोग बिजली और मोमबत्तियों से रोशनी करके प्रार्थना करके यह पर्व मनाते हैं। रामपुर शहर में ईद-मिलाद-उन-नबी क जश्न एक विशाल जूलूस निकालकर मनाया जाता है। जिसमें लोग बहुत बडी़ संख्या में सज-सवंर कर एकत्रित होते हैं और खूब धूम–धाम से 'हज़रत मुहम्मद’ को याद करते हैं। पूरा शहर गीतों की ध्वनी से गूंज उठता है।
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