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अन्तःसमुद्री संचार केबल निश्चित रूप से प्रभावशाली नहीं हैं। लेकिन वास्तव में दुनिया में फाइबर ऑप्टिक केबलों (Fiber Optic Cables) का विशाल तंत्र है, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो रही हमारी अनेक जानकारियों को बनाए रखते हैं। अन्तःसमुद्री संचार केबल भूमि आधारित स्टेशनों (Stations) के बीच समुद्र तल पर बिछायी गयी केबलें है, जो समुद्र और समुद्र के हिस्सों में दूरसंचार संकेतों (Telecommunication Signals) को ले जाने का कार्य करती है। 99% से अधिक इंटरनेट ट्रैफिक (Traffic), उच्च गुणवत्ता वाले फाइबर ऑप्टिक केबल पर ही निर्भर करता है, जो विभिन्न देशों को जोड़ता है तथा आम तौर पर समुद्र के तल पर बिछा होता है। ट्रैफिक का केवल एक छोटा हिस्सा ही उपग्रहों के माध्यम से जाता है। 1839 में विलियम कुके और चार्ल्स व्हीटस्टोन (William Cooke and Charles Wheatstone) ने जब अपने टेलीग्राफ (Telegraph) को पेश किया, तब अटलांटिक महासागर में अन्तःसमुद्री संचार केबल को बिछाने के बारे में सोचा जाने लगा। 1842 सैमुअल मोर्स (Samuel Morse) ने टेरेड हेम्प (Tarred hemp) और भारतीय रबड से इंसुलेडेट (Insulated) तार को न्यू यॉर्क हार्बर (Newyork Harbor) के पानी में डूबा दिया और इसके द्वारा टेलीग्राफ किया। पहली अन्तःसमुद्री केबल टेलीग्राफी के लिये 1850 की शुरूआत में बिछायी गयी थी। पहली ट्रांसकॉन्टिनेंटल (Transcontinental) केबल को 1858 में आयरलैंड (Ireland) से न्यूफाउंडलैंड (Newfoundland) तक बिछाया गया और इंग्लैंड और कनाडा के बीच टेलीग्राफ संचार संभव हुआ। यद्यपि संचार महंगा था और केवल कुछ शब्द प्रति घंटे के हिसाब से सीमित था, लेकिन उस समय संचार की गति अद्वितीय थी। त्वरित संचार इसकी एक बड़ी व्यावसायिक सफलता थी, और इसने केबल बिछाने की गति को प्रेरित किया। फाइबर ऑप्टिक तकनीक ने बड़ी मात्रा में सूचनाओं को तेजी और लागत प्रभावी तरीके से प्रसारित किया। गति का स्तर केवल समय के साथ बढ़ा है - और अब केबल प्रति सेकंड 160 टेराबिट्स (Terabits) को संचारित कर सकते हैं। आज, 420 से अधिक अन्तःसमुद्री संचार केबल हैं, जो दुनिया भर में 700,000 मील तक फैली हैं।
आधुनिक केबल आमतौर पर लगभग 2.5 सेंटीमीटर व्यास तथा 1.4 टन प्रति किलोमीटर वजन के होते हैं। अन्तःसमुद्री संचार केबल नेटवर्क (Network) को विभिन्न सरकारों और विशाल कंपनियों द्वारा बिछाया गया है, जो इनका रखरखाव भी करते हैं। निवेश की बड़ी लागत के कारण इस तरह की परियोजनाएं आमतौर पर कई कंपनियों द्वारा संचालित की जाती हैं। इसके लिए तीन स्तर बनाए गये हैं: टियर (Tier)-1, टियर-2 और टियर-3। टियर -1 के अंतर्गत वे कंपनियाँ हैं, जिनके पास दुनिया भर में कई केबलों को जोड़ने वाला एक वैश्विक नेटवर्क है। वे दूसरों को शुल्क दिए बिना इंटरनेट पर किसी भी गंतव्य तक पहुंच प्रदान करने में सक्षम होते हैं। यह नेटवर्क इंटरनेट की रीढ़ के रूप में कार्य करता है। टियर-2 के अंतर्गत वे कंपनियां हैं, जिनके पास एक क्षेत्रीय नेटवर्क है और वे एक या एक से अधिक टियर -1 नेटवर्क से जुड़ी हैं। टियर -1 कंपनी के नेटवर्क तक पहुंचने के लिए उन्हें भुगतान करना होता है। टियर-3 इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISPs-आईएसपी) हैं, जिनसे हम अपने ब्रॉडबैंड कनेक्शन (Broadband Connections) खरीदते हैं। ये स्तर अंत में उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट से जोड़ता है। हमारे सभी अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट ट्रैफिक शहरों मुंबई, कोचीन, चेन्नई और तूतीकोरिन (Tuticorin) से होकर जाते हैं। वह स्थान जहाँ अंतर्राष्ट्रीय केबल भूमि से जुड़ते हैं, लैंडिंग (Landing) स्टेशन कहलाते हैं। भारत में 3 लैंडिंग स्टेशन मुंबई, चेन्नई और कोचीन का स्वामित्व टाटा कम्युनिकेशंस (Tata Communications) के पास है तथा यह भारत की एकमात्र टियर -1 कंपनी हैं। टाटा कम्युनिकेशंस के BKC मुंबई लैंडिंग स्टेशन पर अन्तःसमुद्री केबल की बैंडविड्थ (Bandwidth) 3.6 टेराबिट प्रति सेकेंड (Terabytes per second-Tbps) के आस-पास है। भारती एयरटेल (Airtel) के 2 लैंडिंग स्टेशन चेन्नई और मुंबई में हैं। इसके अलावा रिलायंस ग्लोबलकॉम (Reliance Globalcom), सिफि टेक्नॉलोजिस (Sify Technologies) का एक-एक लैंडिंग स्टेशन मुंबई में और बीएसएनएल (BSNL) का तूतीकोरिन में है, जो श्रीलंका से जुड़ा हुआ है। पूर्व की ओर, केबल चेन्नई को सिंगापुर से जोड़ती है। पश्चिमी की तरफ मुंबई से हम संयुक्त अरब अमीरात से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं।
तथा दक्षिण की ओर हम दक्षिण अफ्रीका से आने वाली केबलों से जुड़े हैं। भारत में एक गैर लाभकारी सरकारी संगठन भी है, जिसे नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया (National Internet Exchange of India-NIXI) कहा जाता है, यह भारतीय इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को विदेशी सर्वर (Server) का उपयोग करने के बजाय एक दूसरे के नेटवर्क को प्रभावी तरीके से उपयोग करने की अनुमति देता है। भारत में कई नेटवर्क हैं, जिनमें से एक रेलटेल (RailTel) भी है। ये केबल 400 गीगाबिट प्रति सेकेंड (Gigabit per second-Gbps) तक की बैंडविड्थ (Bandwidth) के लिए सक्षम हैं। इसके पास 30,000 किलोमीटर से अधिक का नेटवर्क है। 2014 में भारत ने प्रति माह 967 पेटाबाइट्स (Petabytes) का इस्तेमाल किया था, जो उसके बाद और प्रति वर्ष 33% की दर से बढ़ रहा है। 1 पेटाबाइट्स = 1000 टेराबाइट्स (Terabytes) या 1000 ट्रिलियन बाइट्स (Trillion Bytes) होता है। 2013 की एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल अंतर्राष्ट्रीय बैंडविड्थ 33,900 Gbps की है। अन्तःसमुद्री संचार केबल लैंडिंग स्टेशन सर्वर (Server) के लेन (LAN port) पोर्ट में प्लग (Plugged) की गयी होती हैं, यदि इस केबल को हटा दिया जाता हैं, तो भारत का वैश्विक इंटरनेट से जुडाव टूट जायेगा और हम इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। वीडियो (Video) से लेकर फेसबुक (Facebook), ऑनलाइन बैंकिंग (Online banking) आदि सभी के लिए हमें इंटरनेट की आवश्यकता होती है। इस प्रकार इन सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में अन्तः-समुद्री संचार केबल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।