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प्राचीन काल से ही कई अध्ययन और शोध के बाद भारत की पाक-कला में ऐसे मसालों को सम्मिलित किया गया है, जिनकी सुगंध मनमोहक है, जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और जो स्वाद में उत्तम हैं। इन मसालों को भोजन में मिलाने से उस भोजन का स्वाद दोगुना बढ़ जाता है। यही कारण हैं कि विश्वभर में भारत के पारम्परिक भोजन को बहुत पसंद किया जाता है। भारतीय भोजन के स्वाद को और अधिक गहनता से जानने के लिए समय-समय पर वैज्ञानिक इसमें प्रयोग होने वाले मसालों पर अपनी खोज के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। भारतीय मसालों का निर्यात कई देशों में किया जाता है। भारतीय मसालों के प्रमुख आयातकों में चीन, बांग्लादेश, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इटली, यूएई (UAE), कनाडा, सिंगापुर, ईरान आदि देश शामिल हैं। जहाँ काली मिर्च, इलायची, अदरक, हल्दी, धनिया, जीरा, अजवाइन, सौंफ, मेथी, जायफल और पुदीना दलिया आदि मसाले निर्यात किए जाते हैं। एसोचैम (ASSOCHAM) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना वायरस के चलते विश्वभर में भारतीय मसालों की मांग में काफी वृद्धी हुई है। इस साल जून में भारतीय रुपये में 34% और डॉलर में 23% की वृद्धि के साथ बढ़कर यह 359 मिलियन डॉलर हो गई है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि विदेशी मुद्रा लाभ के फलस्वरूप मसालों का निर्यात 34% से बढ़कर 2721 करोड़ रुपये हो गए है, जो पिछले वर्ष इसी माह में 2030 करोड़ था। भारतीय खाने का स्वाद इतना भिन्न और अनूठा क्यों है? यह जानने के लिए डाटा वैज्ञानिक और खाद्य विशेषज्ञ अपने अध्ययन से प्राप्त परिणामों द्वारा यह बताते हैं कि भारतीय व्यंजनों में कुछ ऐसा है, जो अन्य देशों की पाक-विधि से बिल्कुल अलग है । इसका कारण यह भी माना जा सकता है कि भारत हमेशा से एक जैसा नहीं रहा है, प्राचीन भारत, गुलामी के समय का भारत, आजादी के बाद और वर्तमान भारत की जीवन-शैली में बहुत अधिक अंतर है। जिसका असर यहाँ के खान-पान पर भी पड़ा है। अलग-अलग शासकों के पसंदीदा पकवान देखते ही देखते भारतीय पारम्परिक भोजन की सूची में शामिल हो गए। देश में व्याप्त विशिष्टता यहां के व्यंजनों में भी स्पष्ट देखी जा सकती है।
स्वाद वास्तव में है क्या? यह समझने के लिए इसे वैज्ञानिक रूप से समझने का प्रयत्न करते हैं। विज्ञान में खाद्य पदार्थ को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है: सरल यौगिक और जटिल यौगिक। कई खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जो दूसरे खाद्य पदार्थ के साथ मिलकर अधिक स्वाद वाले यौगिकों को साझा करते हैं। उदाहरण के लिए भुनी हुई मूंगफली जो दूसरे खाद्य पदार्थ के साथ मिलकर सबसे अधिक स्वाद वाले यौगिक साझा करती है। पश्चिमी देशों के खानसामे अधिकतर ऐसे ही खाद्य पदार्थों के साथ भोजन पकाना पसंद करते हैं। हालाँकि सभी व्यंजन एक ही प्रकार से नहीं बनाए जाते हैं इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थों को भी अपनाया जाता है जो दूसरे खाद्य पदार्थ के साथ मिलकर अधिक स्वाद वाले यौगिकों को साझा नहीं करते हैं। इसके विपरीत भारतीय भोजन में हर तरह की खाद्य सामग्रियों का मिश्रण पाया जाता है। भारतीय भोजन स्वाद कला के सारे नियमों को तोड़कर एक नई कला के रूप में उभरता है। स्वाद के बारे में एक विशेष बात यह है कि किसी भी दो खाद्य सामग्रियों को ऐसे ही आपस में मिलाकर एक नए व्यंजन का अविष्कार नहीं किया जा सकता। दो या दो से अधिक खाद्य पदार्थों को आपस में मिलाने से पूर्व सर्वप्रथम उनको रसायन विज्ञान की दृष्टि से जांचना बहुत आवश्यक है, अन्यथा वह स्वास्थ के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए इस बात का शत-प्रतिशत प्रमाण होना आवश्यक है कि उन दो पदार्थों के स्वाद के यौगिक आपस में मिलकर अच्छे स्वाद का निर्माण करें। भोजन और उसके स्वाद पर जलवायु, भूगोल, इतिहास और संस्कृति आदि का गहरा प्रभाव होता है। एक अच्छे भोजन की पहचान उसके रंग, स्वाद, सुगंध और यहाँ तक की ध्वनि से होती है। उदाहरण के लिए कुरकुरे और मसालेदार पापड़ और क्रंची चिप्स को उनकी ध्वनि के बिना सोच कर देखिए, कैसा प्रतीत होता है? बिलकुल ऐसा मानों उनका स्वाद आधा हो गया हो।
औसतन, अधिकांश खाद्य सामग्री में लगभग 50 विभिन्न प्रकार के स्वाद के अणु होते हैं। इसके अलावा एक पके हुए टमाटर में लगभग 400 विभिन्न स्वाद और सुगंध के घटक पाए जाते हैं और एक ग्लास रेड वाइन में एक हजार से अधिक स्वाद के अणु उपस्थित हो सकते हैं। भारतीय मसालों में से एक लौंग अपने विशिष्ट गुणों और मसालेदार स्वाद व गंध के लिए जाना जाता है, जिसे मुख्य रूप से यूजेनॉल (Eugenol) नामक एक रसायन की गंध से भी पहचान सकते हैं। लौंग के तेल का प्रयोग दांत दर्द के एक पारंपरिक उपचार के रूप में किया जाता है।
हालांकि उनमें 2-हेप्टानोन और मिथाइल (2-Heptanone and Methyl) के आलावा सैलिसिलेट (Salicylate), जिसे आमतौर पर विंटरग्रीन के तेल के रूप में जाना जाता है भी होते हैं। एक और उदाहरण है हल्दी, जिसे वर्षों से औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। साथ ही यह घाव भरने में सहायक और त्वचा को साफ़ व सुन्दर बनाए रखने में विशेष योगदान देती है। इसी प्रकार भारतीय भोजन में प्रयोग किए जाने वाले प्रत्येक मसाले की अपनी विशिष्टता है जो किसी न किसी रूप में हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए लाभदायक है। कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान यह पाया गया कि भारतीय मसालों की उचित मात्रा मनुष्य में रोग-प्रतिरोधक क्षमता के विकास में मदद करती है। यही विशेषता इसे विश्व के सबसे अधिक पसंदीदा भोजनों में से एक बनाती है।
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