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कोविड-19 (Covid-19) का चढ़ता हुआ ग्राफ (Graph) किस ऊंचाई पर पहुंचकर दम तोड़ेगा, ये साफ होने में तो अभी थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) ने कई लोगों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान पहुंचाया है। लॉकडाउन की वजह से भारत में कोई मेला और महोत्सव नहीं होने के कारण कई कुम्हारों का व्यापार बंद पड़ा है, जिस वजह से खुर्जा में कारीगर मांग और राजस्व में गिरावट को दूर करने के लिए सरकारी समर्थन की मांग कर रहे हैं। एक श्रम प्रधान उद्योग होने के कारण कई कुशल मजदूर यहाँ पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आते हैं और महामारी के कारण खुर्जा को हॉटस्पॉट (Hotspot) घोषित किए जाने के बाद, उनमें से अधिकांश अपने घर वापस चले गए। कारीगरों का यह भी कहना है कि बाजार खुलने के बाद भी उनकी दुकानों में लोग नहीं आ रहे हैं। खुर्जा में 2500 मृत्तिका के कारखाने हैं लेकिन इनमें से लगभग 450 इकाइयाँ चालू हैं।
उच्च अंत नीले बर्तनों और बोन चाइना (Bone China) से उपयोगितावादी विसंवाहक तक, वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 50,000 लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। वर्तमान समय में स्थानीय मांग घटकर आधे से भी कम रह गई है, लेकिन उन्हें निर्यात करोबार से फिलहाल के लिए उम्मीद है, क्योंकि आमतौर पर, यूरोप, इंग्लैंड, बेल्जियम और जर्मनी में खुर्जा उत्पादों की मांग काफी है, परंतु इस वर्ष चीनी उत्पादों के खिलाफ प्रतिक्रिया के कारण उन्हें कई अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे चीन में एक यंत्रीकृत उद्योग है, जबकि हमारे द्वारा अभी भी हाथों से उत्पाद का निर्माण करना पड़ता है। साथ ही जब वे हाइड्रोलिक प्रेस (Hydraulic Presses) का उपयोग कर रहे हैं, हम अभी भी जिगर जॉली (Jigger Jolly) मशीनों पर निर्भर हैं, फिर भी वे सरकार के समर्थन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि राज्य का एक जिला, एक उत्पाद योजना मात्र एक अधर सेवा नहीं रहनी चाहिए और मृत्तिका मिट्टी के उत्पादों पर जीएसटी (GST) को 12% से घटाकर 5% किया जा सकता है और ऋणों पर ब्याज दो-तीन साल तक माफ किया जा सकता है।"
भारत में मिट्टी के बर्तनों को बनाने की कला की शुरुआत मध्य पाषाण काल से शुरू हुई तथा धीरे-धीरे इन्हें बनाने की तकनीकों में भी अनेकों परिवर्तन आये। वर्तमान समय में लोग मिट्टी और चीनी मिट्टी के बर्तनों में अत्यधिक निवेश कर रहे हैं, इसलिए यदि कला में निवेश करना है, तो आज भी मिट्टी के बर्तन एक अच्छी शुरुआत है। मिट्टी के पात्र वर्तमान समय में कला बाजार में धूम मचा रहे हैं, जबकि चीनी या मृत्तिका फूलदान हमेशा से कीमती रहे हैं।
मिट्टी के पात्र में नए और रोमांचक काम ने लोगों को प्रेरित किया है, जिससे कि लोग इन्हें एकत्रित करने के लिए उत्साहित हैं, इसी प्रकार से मृत्तिका कला को घर की सजावट के लिए बहुत अधिक पसंद किया जा रहा है और मृत्तिका की तकनीक नई तापन तकनीकों, ग्लेज़िंग (Glazing) विधियों और नियंत्रणीय भट्टियों के साथ विकसित हो रही है, यह प्रक्रिया वैज्ञानिक तो है लेकिन साथ ही इसमें कुछ अप्रत्याशितता भी है। इसमें जहां रसायन विज्ञान है, वहीं उत्सुकता भी है इसलिए मृत्तिका के कामों को आखिरकार एक नया दर्शक, बाजार और स्थिति मिल रही है।
भारत में आज कई युवा मिट्टी और मृत्तिका कला की ओर अत्यधिक आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि भारत में पारंपरिक गाँव के कुम्हारों की यादों से कुछ कलाकार बचपन के दिनों से ही मिट्टी और मृत्तिका कला से भली भांति परिचित थे, जबकि अन्य लोगों को अपनी पढ़ाई के दौरान इस कला में रूचि उत्पन्न हुई। दिलचस्प बात यह है कि प्रदर्शन करने वाले कई कलाकार बिल्कुल अलग पृष्ठभूमि से हैं, लेकिन अब वे मृत्तिका कला में पूरी तरह से व्यस्त हो गए हैं। मिट्टी के कला के प्रतिमान प्रयोग के साथ ही साथ शौक का एक विषय बन चुके हैं। आज यह एक व्यवसाय के रूप में जन्म ले चुका है, जो एक बहुत ही बड़े स्तर पर लोगों और कलाकारों को रोजगार प्रदान कर रहा है। मिट्टी के बर्तन बनाने की कला अब कुम्हारों तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि यह बड़े-बड़े कलाकेन्द्रों तक पहुँच चुकी हैं। स्टूडियो पॉटरी (Studio Pottery) एक ऐसा संस्थान है, जहाँ पर शौकिया कलाकारों या कारीगरों द्वारा छोटे समूहों या खुद अकेले मिट्टी के बर्तन आदि बनाए जाते हैं, इस प्रकार के संस्थानों में मुख्य रूप से खाने और खाना बनाने आदि के ही मिट्टी के बर्तन बनाये जाते हैं।
इनके अलावा संस्थान मिट्टी से निर्मित सजावटी वस्तुओं के निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यह प्रचलन सन 1980 के बाद से एक बड़े पैमाने पर प्रसारित होना शुरू हुआ और आज एक बहुत बड़े स्तर पर यह विभिन्न देशों में विद्यमान है। मिट्टी के बर्तनों की लोकप्रियता कुछ इस प्रकार है कि विभिन्न गैलरियों (Galleries) में विभिन्न प्रकार की मिट्टी से बनाए गये विभिन्न कला नमूनों की प्रदर्शिनी आयोजित की जाती है। प्रदर्शिनी में विभिन्न कलाकारों द्वारा बनाए गए मिट्टी की कला के प्रतिमानों को जगह प्रदान की जाती है। जैसे विभिन्न धातुओं के दाम आसमान छू रहे हैं ऐसे में मिट्टी के बर्तन रोजगार को एक नया आयाम प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा लोगों का मिट्टी की कला के प्रति आकर्षण इस क्षेत्र को और भी विकसित करने का कार्य कर रहा है। भारत में कार्य कर रहे कुम्हारों के लिए यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय है, जब वे अपनी मिट्टी की कलाओं और बर्तनों को एक बड़े स्तर पर ले जाने का कार्य कर सकते हैं।