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आज हमारा देश बिजली संकट से जूझ रहा है। यदि इस कमी को कोई दूर कर सकता हैं तो वो है यूरेनियम (Uranium)। यूरेनियम बिजली पैदा करने वाले परमाणु रिएक्टरों के लिए मुख्य ईंधन है, और यह दुनिया भर में कई देशों में पाया जाता है। ईंधन बनाने के लिए, यूरेनियम का खनन किया जाता है और परमाणु रिएक्टर में लोड (Load) होने से पहले इसका संशोधन भी किया है। यूरेनियम एक चाँदी और भूरे रंग का रेडियोधर्मी रासायनिक तत्व है। इसका रासायनिक चिह्न "U" और परमाणु क्रमांक 92 है। ये एक भारी धातु है, जिसका उपयोग 60 वर्षों तक ऊर्जा के प्रचुर स्रोत के रूप में किया जा सकता है। यूरेनियम पृथ्वी की संपूर्ण ऊपरी सतह पर फैला है और टिन (Tin), टंगस्टन (Tungsten) और मोलिब्डेनम (Molybdenum) के रूप में पाया जाता है। यूरेनियम तत्व की खोज 1789 ई. में क्लाप्रोट (Klaproth) द्वारा पिचब्लेंड (Pitchblende) नामक अयस्क से हुई।
अन्य तत्वों की तरह यूरेनियम कई अलग-अलग रूपों में होता है, जिन्हें 'आइसोटोप (Isotope)' के रूप में जाना जाता है। यूरेनियम के मुख्यतः दो आइसोटोप हैं: यूरेनियम-238 (U-238), 99.3% और यूरेनियम-235 (U-235), 0.7%। इनमें से यूरेनियम-238 को आसानी से विभाजित किया जा सकता है, जिससे बहुत अधिक ऊर्जा मिलती है। नाभिकीय विखंडन के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा कहा जाता है। नाभिकीय विखंडन एक ऐसी रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें एक भारी नाभिक दो भागों में टूटता है। जब यूरेनियम पर न्यूट्रानों की बमबारी की जाती है, तो एक यूरेनियम नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप बहुत अधिक ऊर्जा व तीन नये न्यूट्रॉन (Neutron) उत्सर्जित करता है। ये नये उत्सर्जित न्यूट्रॉन, यूरेनियम के अन्य नाभिकों को विखंडित करते हैं। इस प्रकार यूरेनियम नाभिकों के विखंडन की एक शृंखला बन जाती है और इसी शृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित कर परमाणु रिएक्टरों में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। इस ऊर्जा का उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जाता है।
यूरेनियम अयस्क को भूमिगत या ओपन-कट (Open-cut) तरीकों के माध्यम से खनन किया जाता हैं। खनन के बाद, अयस्क को पीसा जाता है और ऊपर लगी मिट्टी को हटा कर इस एसिड (Acid) में डाल कर इसे विलयन के रूप में प्राप्त किया जाता है, इसके आलावा इसे इन-सीटू लीचिंग (In-situ Leaching) (आईएसएल (ISL)) द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। जिसके बाद इसे यूरेनियम ऑक्साइड का उत्पादन करने के लिए सुखाया जाता है। यह घोल चमकीले पीले रंग का होता है, इसलिए इसे 'येलोकेक (Yellowcake)' के रूप में जाना जाता है। खनन और शोधन के बाद अंतिम उत्पाद यूरेनियम ऑक्साइड (U3O8) प्राप्त होता है, इसी रूप में यूरेनियम बेचा जाता है। इससे पहले कि यह बिजली उत्पादन के लिए रिएक्टरों में इस्तेमाल किया जाये, इसे कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, जहां सबसे पहले यूरेनियम ऑक्साइड को गैस यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (यूएफ 6) में बदला जाता है, जिससे संवर्धित यूरेनियम प्रात्प किये जा सके। यह यूरेनियम -235 आइसोटोप के अनुपात को प्राकृतिक स्तर से 0.7% से 4-5% तक बढ़ा देता है। संवर्धन के बाद, UF6 गैस को यूरेनियम डाइऑक्साइड (UO2) में बदल दिया जाता है जो कि ईंधन गोलियों के रूप में होते हैं। इन ईंधन गोलियों को पतली धातु की छडों के अंदर रखा जाता है, जिन्हें ईंधन छड़ के रूप में जाना जाता है, जो कि रिएक्टर में मूल ईंधन तत्व के रूप में लगी होती हैं।
वैसे तो यूरेनियम की खदानें कई देशों में संचालित होती हैं, लेकिन दुनिया के 85% से अधिक यूरेनियम का उत्पादन विशेष रूप से छह देशों में होता है: ऑस्ट्रेलिया (30%), कजाख्स्तान (14%), कनाडा (8%), रूस (8%), नामीबिया (7%), साउथ अफ्रीका (5%)। भारत में यूरेनियम की प्राप्ति की बात करे तो लखनऊ से कुछ ही दूर स्थित ललितपुर (बुंदेलखंड) में भी यूरेनियम भंडार पाया जाता है। बुंदेलखंड में पाए जाने वाले यूरेनियम के सामान्य खनिज यूरेनिनाइट (Uraninite), ब्रांनाइट (Brannerite), मोनाज़ाइट (Monazite), फ्लोरोपाटाइट (Fluorapatite) आदि है। बुंदेलखंड क्षेत्र की भूवैज्ञानिक परिस्थिति यूरेनियम खनिज के लिए बहुत अनुकूल है। ललितपुर भूगर्भीय सर्वेक्षण से पता चला कि एपाटाइट (Apatite) आवश्यक फॉस्फेट खनिज है, जबकि क्वार्ट्ज और फेल्सपार क्षेत्र में प्रमुख रूप से पाये जाते हैं और जांच में देखा गया की फॉस्फोराइट के नमूने P2O5, CaO, SiO2 और Fe2O3 में समृद्ध हैं जबकि MgO, MnO, K2O और Al2O3 की इसमें कमी है। यह इस बात का संकेत देता है कि ललितपुर के फॉस्फोराइट्स में यूरेनियम की मात्रा उपलब्ध है। हाल के मानचित्रण से पता चलता है कि पूरे क्षेत्र में आर्कियन काल के दौरान दो अवसादी-ज्वालामुखी क्रियायों से इंट्रा-क्रेटोनिक बेल्ट (Intra-cratonic Belt) का विकास हुआ, और इसी क्षेत्र में से सोना, यूरेनियम और निकल आदि जैसे खनिज प्राप्त होते है। भारत के पास एक अति महत्त्वाकांक्षी स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम है, जिससे देश में 2030 तक 40,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य शामिल है। भारत के परमाणु ऊर्जा भंडार में अधिकांश योगदान राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, मेघालय, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक का है।
परमाणु ऊर्जा बहुत लंबे समय तक हमारी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों को पूरा कर सकती है। यूरेनियम के एक परमाणु के विखंडन से जो ऊर्जा मुक्त होती है वह किसी अन्य कार्बन परमाणुओं के दहन से उत्पन्न ऊर्जा की तुलना में बहुत अधिक होती है। अनेक विकसित देश परमाणु ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रुपांतरण कर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा कम मात्रा में ही हरितगृह गैसों को उत्पन्न करती है। यह अन्य स्रोतों की अपेक्षा कम खर्च पर ऊर्जा प्रदान करती है। परन्तु हर सिक्के के दो पहलू होते है इसके कई लाभ है तो हानियां भी हैं। झारखण्ड प्रदेश के पूर्वी सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा गाँव में जादूगोड़ा खान एक यूरेनियम की खान है यह 1967 से कार्य कर रही है और भारत में यूरेनियम खनन की प्रथम खान है। लेकिन इस ऊर्जा की भारी कीमत यहां के लोगों ने चुकाई है। जादूगोड़ा के 25 किलोमीटर के दायरे में यूरेनियम जमा हैं जिस कारण वहाँ के नज़दीकी गाँवों और बस्तियों में रहने वाले लोगों में अनेक रेडियोधर्मिता से जुड़ी बीमारियां होने लगी हैं और इस बीमारियों का फैलना साबित करता है कि परमाणु विकिरण का असर काफी खतरनाक हैं। स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक रेडियोधर्मी कचरे से जादूगोडा में कैंसर, तपेदिक, और गर्भपात जैसी बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं, तालाबों और नदियों के जल भी दूषित हो गए हैं। 2003 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (Tata Institute of Social Sciences) द्वारा किए गए एक अध्ययन अध्ययन में पता चला कि इन खदानों के आस पास बसे गांवों में बांझपन, कैंसर, सांस संबंधी बीमारियों, गर्भपात और जन्मजात विकलांगता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
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