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विश्व युद्ध एक ऐसी भयावह घटना है, जिसके प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं। चूंकि इस समय भारत में ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित था इसलिए ब्रिटिश-भारतीय सेना को विभिन्न रूपों में युद्ध के लिए भेजा गया, जहां उन्होंने बड़ी वीरता के साथ अपने शौर्य का परचम लहराया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने यूरोपीय, भूमध्य, मध्य पूर्व और अफ्रीका में बड़ी संख्या में डिवीजन (Divisions) और स्वतंत्र ब्रिगेड (Brigade) में योगदान दिया। 10 लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने विदेशों में सेवा की, जिनमें से 62,000 की मृत्यु हो गई और अन्य 67,000 घायल हो गए। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर कम से कम 74,187 भारतीय सैनिक मारे गए थे। प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर जर्मन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी। भारतीय डिवीजनों को मिस्र, गैलीपोली, जर्मन पूर्वी अफ्रीका, मेसोपोटामिया में ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ अपनी सेवा देने के लिए भेजा गया था। जबकि कुछ डिवीजनों को विदेशों में भेजा गया था, अन्य लोगों को उत्तर पश्चिम सीमा पर और आंतरिक सुरक्षा और प्रशिक्षण कर्तव्यों की रक्षा के लिए भारत में रहना पड़ा। 
युद्ध में लखनऊ ब्रिगेड की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही। लखनऊ ब्रिगेड 1907 में बनी ब्रिटिश भारतीय सेना की एक पैदल सेना ब्रिगेड थी, जो किचनर सुधारों (Kitchener Reforms) के परिणामस्वरूप निर्मित हुई थी। कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-Chief), भारत के रूप में लॉर्ड किचनर (Lord Kitchener) के कार्यकाल के दौरान (1902–09) किचनर सुधार ने 3 पूर्व प्रेसीडेंसी सेनाओं (Presidency Armies), पंजाब फ्रंटियर फोर्स  (Punjab Frontier Force), हैदराबाद कॉन्टिंगेंट (Hyderabad Contingent) और अन्य स्थानीय बलों को भारतीय सेना में शामिल करने का काम पूरा किया। किचनर ने भारतीय सेना के मुख्य कार्य की पहचान आंतरिक सुरक्षा के साथ विदेशी आक्रामकता (विशेष रूप से अफगानिस्तान में रूसी विस्तार) के खिलाफ उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर की रक्षा के रूप में की, जो कि एक द्वितीयक भूमिका में थी। सेना को डिवीजनों और ब्रिगेड में संगठित किया गया, जिन्होंने क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य किया लेकिन इसमें आंतरिक सुरक्षा सैनिक भी शामिल थे। भारतीय सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विदेशों में 7 अभियान बलों का गठन किया जो कि भारतीय अभियान बल-A, भारतीय अभियान बल-B, भारतीय अभियान बल-C, भारतीय अभियान बल-D, भारतीय अभियान बल-E, भारतीय अभियान बल-F और भारतीय अभियान बल-G थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लखनऊ ब्रिगेड को भारतीय अभियान बल-E के हिस्से के रूप में 22वें (लखनऊ) ब्रिगेड के रूप में संगठित किया गया। इसने जनवरी 1916 में टूटने से पहले 1915 में मिस्र में सेवा दी थी किंतु आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों के लिए और युद्ध के अंतिम वर्ष में भारतीय सेना के विस्तार में सहायता के लिए 1917 में ब्रिगेड को भारत में पुनः संगठित किया गया। यह कई पदनामों के तहत युद्धों के बीच ब्रिटिश-भारतीय सेना का हिस्सा बनी रही और सितंबर 1939 में 6ठीं (लखनऊ) इन्फैंट्री (Infantry) ब्रिगेड थी। ब्रिगेड ने 8वें (लखनऊ) डिवीजन का हिस्सा बनाया। इसने विश्व युद्धों के बीच पदनाम के कई बदलावों को चिन्हित किया, जिनमें 73वीं भारतीय इन्फैंट्री दल (मई से सितंबर 1920 तक), 19वीं इन्फैन्ट्री दल (नवंबर 1920 से) और 6ठीं (लखनऊ) इन्फैंट्री दल (1920 के दशक से) शामिल थे।
8वीं (लखनऊ) डिवीजन ब्रिटिश भारतीय सेना की उत्तरी सेना का एक गठन था, जिसे पहली बार 1903 में भारतीय सेना के किचनर सुधारों के परिणामस्वरूप बनाया गया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों पर डिवीजन भारत में बना रहा, हालांकि 8वें (लखनऊ) कैवेलरी (Cavalry) ब्रिगेड को पहली भारतीय कैवलरी डिवीजन में स्थानांतरित कर दिया गया और इसने पश्चिमी मोर्चे पर फ्रांस में सेवा की। 22वीं लखनऊ इन्फैंट्री ब्रिगेड ने मिस्र में 11वें भारतीय डिवीजन के हिस्से के रूप में कार्य किया। इन्हें 1919 में तीसरे अफगान युद्ध में और फिर 1919-1920 और 1920-1924 में वज़ीरिस्तान अभियान में शामिल किया गया था। 1930-1931 के बीच आफरीदियों के खिलाफ, 1933 में मोहमंदों के खिलाफ और फिर 1935 में तथा अंत में द्वितीय विश्व युद्ध के विद्रोह शुरू होने से ठीक पहले एक बार फिर से 1936-1939 के बीच वज़ीरिस्तान में किये गए युद्ध में भी इन्होंने अपना योगदान दिया था।