लखनऊ शहर अपने कबाब के लिए काफी समय से प्रसिद्ध है। इसकी खास और गुप्त रेसिपी (Recipe) एक बहुत ही छुपा कर रखा गया रहस्य है। ऐसा कहा जाता है कि इन कबाब में 120 प्रकार की चीजें मिलाई जाती हैं। जिनकी बदौलत वह लाजवाब स्वाद मिलता है, जिससे कई लोग परिचित हैं। उसको ध्यान में रखते हुए हम 600 साल पुरानी मांडू के सुल्तान की पांडुलिपि ‘निमतनामा (Nimatnama)’ में कबाब की सबसे पुरानी रेसिपी ढूंढ सकते हैं। तमाम रेसिपी के अमूल्य संग्रह और विलासिता की सामग्री का संग्रह है ‘निमतनामा’।
क्या है कबाब की दास्तान?
कबाब न सिर्फ नवाबों के दस्तरखान की रौनक होते थे, बल्कि आम जनता की रसोई की भी शान होते थे। तमाम मुहावरों में तरह-तरह के कबाब का जिक्र होता है। आखिर यह कबाब भारत कैसे पहुंचे? आग की खोज के साथ ही उसमें भोजन पकाने का सिलसिला शुरू हुआ। सीकों में लगाकर मांस पकाने का रिवाज चलन में आया, ताकि हाथ ना जले। इनसे जन्म हुआ 'सींक कबाब' का। कबाब का मतलब होता है- 'भुना मांस'। एक किवदंती है कि आनातोलिया (Anatolia) पर आक्रमण के समय सैनिक खुले मैदानों में अपनी तलवारों पर मांस भूनते थे। कबाब भारत में दिल्ली के सुल्तानों के जरिए पहुंचे। लेकिन उनमें संशोधन करके लखनऊ की रसोइयों में उन्हें लजीज बनाया अवध के नवाबों ने।
15वी शताब्दी के मालवा की किताब ‘निमतनामा’ में घियाथ अल-दिन खाल्ज (Ghiyath al -Din Khalj) के जमाने के कबाब बनाने की विधि और सामग्री का संदर्भ मिलता है। लखनवी कबाब के बारे में बताया जाता है कि अवध के नवाब के लिए इसे सीरियन रसोइए ने खोजा था। क्योंकि बिना दांत के नवाब साहब के लिए मांस के टुकड़े चबाना संभव नहीं था। कोफ्ते की खोज शायद किसी किफायती रसोइए ने की होगी, जिसे मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों का बर्बाद होना बर्दाश्त नहीं था। 'कोफ्ता' शब्द फारसी के 'कुफ्ता' शब्द से बना है, जिसका मतलब पीटना या कूटना होता है। कोफ्ते का ही एक विस्तृत रूप 'नरगिसी कोफ्ता' होता है, जिसमें कोफ्ते का पेस्ट उबले अंडे पर लगाकर उसे तलते हैं फिर बीच से काटकर इसे परोसते हैं। अंडे की सफेदी और जर्दी (Yolk) मिलकर नरगिस के फूल का एहसास देते हैं। रमजान के महीने में शामी कबाब इफ्तार के समय खाने की मेज पर सजाए जाते हैं।
कोरोना और कबाब
कोरोना महामारी के चलते टुंडे के कबाब की बिक्री पर अन्य व्यवसायियों की तरह गाज गिरी है। उम्मीद है स्थितियां जल्द ही सामान्य हो जाएंगी।
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