पृथ्वी पर मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जितनी आवश्यकता जल, वायु भोजन आदि चीजों की होती है, उतनी ही आवश्यकता संसाधनों की भी होती है, क्योंकि संसाधन मानव जीवन को सरल और सहज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोयला भी एक ऐसा संसाधन है, जिसका प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। कोयले के उपयोग के लिए सबसे पहले उसके खनन की आवश्यकता होती है तथा भारत में कोयला खनन कई वर्षों से किया जा रहा है। 1774 में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी (British East India Company) ने सबसे पहले दामोदर नदी के तट पर स्थित रानीगंज में वाणिज्यिक रूप से कोयले का खनन शुरू किया था। किंतु यह खनन उस समय बहुत अधिक मात्रा में नहीं किया जाता था क्योंकि उस समय कोयले की मांग बहुत कम थी। कोयले की मांग 1853 में बढी जब भाप से चलने वाली गाड़ियों का उपयोग शुरू हुआ, इसके बाद कोयले की मांग बढती चली गयी। इस वर्ष के बाद से लगभग 10 लाख मीट्रिक टन (Metric ton) कोयले का उत्पादन हर साल किया जाने लगा। प्रथम विश्वयुद्ध के समय यह वृद्धि और भी अधिक हो गयी। 19वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में कोयला खनन वार्षिक रूप से 61.2 लाख टन हो गया। 1942 तक कोयला उत्पादन 2.9 करोड़ मीट्रिक टन प्रतिवर्ष तथा 1946 तक 3 करोड़ मीट्रिक टन पहुंच गया था।
विश्व का 4.7% कोयला उत्पादन भारत में होता है। इस उत्पादन का उपयोग मुख्य रूप से बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। लगभग एक अरब टन भंडार के साथ उत्तर प्रदेश में किसी भी भारतीय राज्य के कोयले का 10 वां सबसे बड़ा भंडार है। भारत द्वारा उत्पादित कोयले का सबसे बड़ा अनुपात बिजली पैदा करने के लिए उपयोग किया जाता है। भारत अपने इस्पात संयंत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोकिंग कोल (Coking coal) का आयात करता है। भारत ने लगभग 95 मीट्रिक टन ऑफ ऑयल इक्वीवेलेंट (Tonne of oil equivalent-Mtoe) भाप कोयले और कोकिंग कोयले का आयात किया जोकि बिजली, सीमेंट और इस्पात उत्पादन में मांग को पूरा करने के लिए कुल खपत का 29% है। भारत का कोयला आयात 2007-08 में 498 लाख मीट्रिक टन से लेकर 2016-17 में 1910 लाख मीट्रिक टन बढा। भारत का कोयला निर्यात 2007-08 में 16.3 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2012-14 में 24.4 लाख मीट्रिक टन हुआ। लेकिन बाद में 2017-18 में यह घटकर 16.6 लाख मीट्रिक टन हुआ। भारत में होने वाले कोयला आयात और निर्यात को देखते हुए इसके असीमित खनन का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वर्तमान समय में अत्यधिक खनन के कारण कोयला संसाधन की उपलब्धता में गिरावट आने लगी है तथा इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप जहां बिजली घर की कई इकाईयां बंद करनी पड़ी हैं तो वहीं अन्य बिजलीघरों में कम क्षमता पर उत्पादन कर स्थिति सम्भालने का प्रयास किया जा रहा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला खरीददार है। किंतु कुछ समय पूर्व भारत ने कोयला आयात में एक तिहाई कटौती करने की योजना बनायी है। कोयला आयात में कटौती की यह योजना भारत सहित अन्य देशों की भी है। आयात में कमी की योजना इस ओर इशारा करती है कि दक्षिण एशियाई राष्ट्र भी वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए कोयला खनन से धीरे-धीरे पीछे हट रहे हैं। 2019 में कोयले से वैश्विक बिजली उत्पादन लगभग 3% गिरने की सम्भावना थी जो अब तक की सबसे बड़ी गिरावट हो सकती है। यह गिरावट जर्मनी (Germany), यूरोप (Europe) के अन्य देशों और दक्षिण कोरिया (South Korea) सहित अन्य विकसित देशों में होने का अनुमान है। चूंकि अमेरिका में कई बड़े कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र बंद कर दिये गये हैं, इसलिए यह गिरावट अमेरिका में सबसे अधिक हो सकती है। आयात में कमी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए, कोल इंडिया (Coal India) का लक्ष्य वित्त वर्ष 2024 तक अपने वार्षिक उत्पादन को बढ़ाकर 8800 लाख टन करने का है। कोयला खनन में पिछले कुछ समय से भारी गिरावट आयी है, जिसमें फ्लड माइनिंग (Flood Mining) से लेकर श्रमिकों के बीच अशांति आदि कारण शामिल हैं। कोयला उत्पादन में संकुचन भारत के लिए एक समस्या उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि कोयला खनन भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर (Trillion dollars) सकल घरेलू उत्पाद के लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करता है। हालांकि भारत में कोयला उपयोग में कमी एक समस्या का कारण बन सकता है किंतु यह कमी अक्षय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि ला सकती है क्योंकि संसाधनों की मांग को पूरा करने का एक मात्र उपाय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग है।
जहां कोरोना महामारी ने उद्योगों, व्यवसायों आदि जैसे कई क्षेत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है वहीं कोयला खनन क्षेत्र भी इससे बच नहीं पाया है। भारतीय खान ब्यूरो (Indian Bureau of Mines) की भारतीय खनिज वार्षिक पुस्तिका (Indian Mineral Yearbook) 2018 के अनुसार वित्त वर्ष 18 में परमाणु और लघु खनिजों को छोड़कर लगभग 4.77 लाख लोगों को खनन क्षेत्र में रोजगार मिला। इससे भी महत्वपूर्ण बात, खनन कई मूल्य श्रृंखलाओं की पहली गतिविधि है। उत्पादन के साथ-साथ रोजगार के मामले में क्षेत्र का गुणक प्रभाव बहुत बड़ा है। हालांकि तालाबंदी के कारण खदानों के अस्थायी रूप से बंद होने से आपूर्ति में बहुत ज्यादा गड़बड़ी नहीं हुई है लेकिन कोरोना महामारी के साथ खनन क्षेत्र में सुधार अति आवश्यक है क्योंकि खनन क्षेत्र में सुधार, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बहाल करने के लिए आवश्यक है।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में कोयले की खादान में कार्यरत मशीन को दिखाया गया है। (Pexels)
दूसरे चित्र में कोयले का अयस्क दिखाया गया है। (Wallpaperflare)
तीसरे चित्र में पत्थर के कोयले को दिखाया गया है। (Pexels)
अंतिम चित्र में धनबाद, भारत की कोयले की खादान को दिखाया गया है। (Wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.