भले ही पश्चिमी वाद्ययंत्र जैसे वायलिन और सैक्सोफोन (Violin and Saxophone) को पूर्ण शास्त्रीय वाद्य यंत्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता हो, किन्तु भारत में शास्त्रीय संगीत में मैंडोलिन (Mandolin) ने एक अद्वितीय दर्जा हासिल किया है।
19वीं शताब्दी तक, मंडोलिन पश्चिमी दुनिया में ऑर्केस्ट्रा (Orchestra) का एक हिस्सा था लेकिन 20वीं शताब्दी की शुरुआत से इसे एक एकल उपकरण के रूप में स्थापित किया गया।
भारत में, हालांकि अब कई सालों से मैंडोलिन का उपयोग किया जा रहा है, वर्ना पहले यह केवल हल्के संगीत तक ही सीमित था। यद्यपि बहुत कम संगीतकार हैं, जो मंडोलिन पर भारतीय शास्त्रीय संगीत बजाते हैं।
लेकिन यह निश्चित रूप से यू श्रीनिवास (U Srinivas) द्वारा कर्नाटक संगीत की मुख्यधारा में लाया गया था।
श्री संपत कुमार, जिन्होंने श्रीनिवास पर एक वृत्तचित्र (Documentary) भी बनाई है का कहना है कि, "मैं अब भी समझ नहीं पा रहा हूं कि वह पश्चिमी वाद्य यंत्र पर गामाका (Ghamaka) नामक भारतीय शास्त्रीय संगीत कैसे बजा लेते थे।”
आइए यू श्रीनिवास के प्रदर्शन पर एक नजर डालते हैं।
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