लखनऊ भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रदेश की राजधानी है और यहाँ का इतिहास भी अगर देखा जाए तो अत्यंत ही प्राचीन और स्वर्णिम रहा है। लखनऊ में समय-समय पर कई नई खोजें होती रहती हैं, जिससे यहाँ के इतिहास और संस्कृति में नए अध्याय जुड़ते रहते हैं। यह शहर अवध के नवाबों के समय में बड़े ही नाजों से सजाया गया था और यह वही समय था जब यहाँ पर बहुत बड़ी संख्या में इमारतों का निर्माण कराया गया था। ये इमारतें आज भी लखनऊ के वैभव को प्रस्तुत करती हैं। इन्ही इमारतों में से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण इमारत है 'फ़रहातबक्श कोठी', जिसका निर्माण क्लाउड मार्टिन (Claude Martin) ने 1781 में कराया था। यहाँ हाल ही में कुछ दिन पहले उत्खनन का कार्य किया गया था, जिसमे स्तंभों और प्लास्टर (Plaster) का सुन्दर काम सामने निकल कर आया, यह पूर्ण कार्य करने के लिए यहाँ पर पुरातत्वविदों ने करीब 16 फीट तक की खुदाई की थी। यहाँ पर हुई खुदाई से यह पता चलता है कि वास्तविकता में समय के साथ इस स्थान पर करीब 16 फीट की गाद जमा हो गयी, जिसके कारण इस कोठी का एक पूरा तल मिटटी के अन्दर जमींदोज हो गया था।
इन उत्खननों से जो प्रमुख बिंदु निकल कर हमारे सामने आते है, वह यह है कि एक समय में गोमती नदी इस कोठी के अत्यंत ही नजदीक बहा करती थी और यह गोमती के बाढ़ क्षेत्र में आता रहा होगा क्यूंकि कोई अन्य बिंदु हमारे सामने नहीं प्रस्तुत होता है, जो यह बता सके की यहाँ पर इतनी जल्दी और इतनी ऊँची मिट्टी की गाद कैसे जम हो गई। इसके समीप ही बसे छतरमंजिल महल में भी इसी समय में खुदाई का कार्य किया गया था, जिसमे से कई अत्यंत महत्वपूर्ण खोजें हुयी और उन्ही महत्वपूर्ण खोजों में से एक था यहाँ से प्राप्त नाव के अवशेष। छतरमंजिल से प्राप्त नाव की तिथि करीब 200 वर्ष पुरानी आंकी गयी है, जो इस अवस्था में प्राप्त हुई है कि जैसे उसे बकायदे छतर मंजिल के दिवार से सटा के पार्क (Park) किया गया हो। यह नाव करीब 19 फीट नीचे तक की खुदाई के बाद प्राप्त हुयी है। इस नाव की स्थिति अत्यंत बेहतर है, जिसके कारण इसके आकार प्रकार का अंदाजा बड़े आसानी से लगाया जा सकता है। इस नाव से प्राप्त फट्टों की लम्बाई कुल 50 फुट के करीब है तथा इसकी चौड़ाई करीब 12 फुट है।
इस नाव के आकार से यह तो आसानी से समझा जा सकता है कि यह एक विशाल नाव हुआ करती होगी। लखनऊ अपने समय का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था और यह एक कारण है कि यहाँ पर व्यापार अत्यंत ही बड़े पैमाने पर प्रफुल्लित हुआ करता था। गोमती नदी की बात करें तो इस नदी से कलकत्ता, दिल्ली आदि स्थानों पर जाया जा सकता था। यह उत्खनन का कार्य वास्तविकता में शुरूआती दौर में संरक्षण और सौन्दर्यीकरण का कार्य था, जिसे उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के अंतर्गत किया जा रहा था परन्तु इस दौरान होने वाली खुदाई ने इस स्थल के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। इस उत्खनन से कई नालियाँ भी प्रकाश में आई, जिनका प्रयोग गोमती का पानी छतरमंजिल में लाने के लिए किया जाता था।
सन्दर्भ :
https://bit.ly/2ZtQOGI
https://bit.ly/2MF0agX
https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/200-year-old-boat-dug-up-at-chattar-manzil/articleshow/69242600.cms
https://bit.ly/2Zr6Cu5
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में छतर मंजिल का प्राचीन चित्र है, इस चित्र में गोमती नदी और नाव भी दिखाई दे रही है। (Wikimedia)
दूसरे चित्र में छतर मंज़िल को दिखाया गया है। (Publicdomainpictures)
अंतिम चित्र में छतर मंज़िल और गोमती नदी के किनारे खड़ी मतस्य नौका दिखाई गयी है। (Wikimedia)
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