पृथ्वी पर वनस्पतियों की अनेक विविधता पायी जाती है तथा यहां विभिन्न प्रकार के फल प्राचीन समय से उगाये जा रहे हैं। सेब भी सबसे शुरुआती फलों में से एक है, जिसका अपना एक लंबा इतिहास है और यह कई धार्मिक अनुष्ठानों से भी जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक रूप से मैलस प्यूमिला (Malus Pumila) के नाम से जाना जाने वाला यह फल एक महत्वपूर्ण शीतोष्ण फल है, जिसे ज्यादातर ताजा खाया जाता है किंतु रस, जेली (Jelly), डिब्बाबंद स्लाइस (Canned Slices) और अन्य उत्पादों के लिए संसाधित भी किया जाता है। भारत में, सेब की खेती मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की पहाड़ियों में की जाती है। अरुणांचल प्रदेश नागालैंड, पंजाब और सिक्किम भी इसकी खेती के लिए काफी हद तक जाने जाते हैं। सेब एक शीतोष्ण फल वाली फसल है। हालाँकि, भारत में सेब उगाने वाले क्षेत्र समशीतोष्ण क्षेत्र में नहीं आते हैं, लेकिन इस क्षेत्र की प्रचलित समशीतोष्ण जलवायु हिमालय पर्वतमाला और उच्च ऊंचाई के कारण है। सक्रिय विकास की अवधि के दौरान औसत तापमान लगभग 21-24° C होना चाहिए। सेब उन क्षेत्रों में सबसे अच्छा होता है, जहां पेड़ सर्दियों में निर्बाध आराम तथा अच्छे रंग विकास के लिए प्रचुर धूप का अनुभव करते हैं। इसे समुद्र तल से 1500- 2700 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जा सकता है।
इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से सूखी हुई दोमट मिट्टी तथा PH 5.5-6.5 उपयुक्त होता है। पौधे का रोपण आमतौर पर जनवरी और फरवरी के महीने में किया जाता है तथा रोपण की दूरी विविधता और मिट्टी के उर्वरक स्तर के अनुसार भिन्न होती है। सबसे व्यापक रूप से प्रयुक्त रोपण प्रणाली वर्ग प्रणाली है। सेब को कई तरीकों से प्रसारित किया जाता है, जिनमें ग्राफ्टिंग (Grafting), बडिंग (Budding), रूटस्टॉक (Rootstocks) आदि शामिल हैं। पूरी दुनिया में 7,500 से अधिक उत्पादक सेब की खेती करते हैं, जिनकी अलग-अलग विशेषताएं हैं। चीन दुनिया में सेब का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने 2009 में 31 मिलियन टन (Million tons) सेब का उत्पादन किया। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका सेब उत्पादन में दूसरे स्थान पर जबकि पोलैंड तीसरे स्थान पर रहा। इस सूची में भारत ने चौथा स्थान बनाया है। इस समय एक कॉस्मिक (Cosmic) या लौकिक घटना चल रही है लेकिन इसमें सुपर (Super) चंद्रमा या सौर ग्रहण शामिल नहीं हैं। यहां पर बात उन सेबों की हो रही है जिनकी त्वचा हल्के रंग के छोटे प्रस्फुटन के साथ गहरी लाल रंग की है तथा जिनका गूदा कुरकुरा और मीठा है। इसलिए इसे कॉस्मिक क्रिस्प (Cosmic Crisp) नाम दिया गया है। यह वो सेब है जिसकी अमेरिकी उत्पादक उम्मीद कर रहे हैं कि वे फुजिस (Fujis), गलास (Galas), गोल्डन (Golden) और रेड डिलीशियस (Red Delicious) जैसी उन सभी किस्मों की बिक्री को रोक देंगी, जिन्होंने बड़े पैमाने पर ब्रांडेड (Branded) सेब के कारोबार को परिभाषित किया है। इस किस्म को विकसित करने का काम 20 साल पहले वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (Washington State University) में शुरू हुआ जिसका वाणिज्यिक रोपण 120 लाख पेड़ों के साथ 2017 में शुरू हुआ।
भारत में भी, सेब अलग-अलग कारणों से ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। कश्मीर भारत में सेब का सबसे बड़ा उत्पादक है। 2017-18 में नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड (National Horticulture Board) के आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने भारत में 77.7% सेब का उत्पादन किया। इस समय भारत दुनिया में सेब का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक बना, जिसने यह संदर्भित किया कि कश्मीर सेब का 11वां सबसे बड़ा उत्पादक होगा, जो रूस और ब्राजील के बाद आता है। राज्य को हमेशा व्यापक बाजारों में अपने सेब लाने में समस्या रही है, लेकिन अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की घोषणा के बाद की गयी तालाबंदी इसके लिए एक अनोखी चुनौती साबित हुई तथा बड़ी मात्रा में सेब बर्बाद हुए। राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और किसानों के साथ संबंध बनाने का मौका देखकर, भारत सरकार ने कश्मीरी सेब का समर्थन करने के लिए विशेष उपायों की घोषणा की। हालांकि ट्रम्प (Trump) प्रशासन के साथ व्यापार युद्धों के हिस्से के रूप में, अमेरिकी सेब पर शुल्क बढ़ा दिए गए हैं, लेकिन भारत को सेब को गंभीरता से लेना शुरू करना चाहिए क्योंकि एक और आयात खतरा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी के साथ उभर रहा है, जो कि भारत में उत्पादित सेबों को नीचे गिराते हुए चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में उत्पादित सेबों का नेतृत्व करेगा। यह किसी भी बड़ी फल की दुकान या सुपरमार्केट (Supermarket) में मजबूती से देखा जा सकता है, जहां आयातित सेब उच्च अलमारियों पर देखभाल के साथ प्रदर्शित किए जाते हैं, जबकि भारतीय सेब खराब स्तर पर प्रस्तुत किए जाते हैं। भारतीय सेब आयातित सेबों की तुलना में बहुत सस्ते हैं, और फिर भी उपभोक्ता उनकी बहुत देखभाल नहीं करते हैं।
वास्तव में, सेब का भारत में एक लंबा इतिहास है। सेब की उत्पत्ति कज़ाकिस्तान से हुई जो रेशम मार्ग के साथ प्रसारित हुआ। यह रेशम मार्ग कश्मीर से भी जुड़ा हुआ है। नुश्के-शाहजहानी (Nushkae-Shahjahani), जिसे हाल ही में सलमा हुसैन द्वारा मुगल भोज के रूप में पुनः बनाया गया है, में शीश्र्गा साइब नाम्की (Shishranga Saib Namky) जैसे व्यंजन हैं, जिसमें सेब को पहले मसाले के साथ तथा फिर अंडे के साथ पकाया जाता है। सेब में विरासत में मिली विशेषताओं की एक आकर्षक श्रृंखला है, जिसमें पैतृक पेड़ समान दिखने वाले सेबों की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन कर सकता है। इनके बीज ऐसे सेबों का उत्पादन करते हैं, जो पूरी तरह से अलग आकार, रंग, मिठास के होते हैं। जिन देशों में सेब की लंबी खपत वाली परंपराएं हैं, वे इस विविधता को महत्व देते हैं। देश को कोरोना संकट से निकालने के लिए की गयी तालाबंदी का सेब की खेती पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। तालाबंदी के चलते फल उत्पादकों को उर्वरकों, कीटनाशकों, सूक्ष्म पोषक तत्वों और फफूंदनाशकों की घटती आपूर्ति और बिक्री के लिए मंडियों (बाजारों) तक परिवहन के साधनों की कमी का सामना करना पड़ा। इस समय उत्पादित फलों को संग्रहित करने हेतु सरकारी और निजी दुकानों से पैकेजिंग (Packaging) सामग्री प्राप्त करना सबसे बड़ी समस्या थी क्योंकि 2019 में लंबे समय तक पर्याप्त ठंड और नमी के स्तर के साथ एक भरपूर फसल किसानों को प्राप्त हुई किन्तु विपणन न होने के कारण उत्पादित सेब का भंडारण उत्पादकों के लिए प्रमुख समस्या का कारण बना।
संदर्भ:
https://www.mapsofworld.com/world-top-ten/world-map-countries-by-apple-production.html
https://economictimes.indiatimes.com/news/economy/agriculture/why-india-should-start-taking-apples-seriously/articleshow/71767025.cms
https://vikaspedia.in/agriculture/crop-production/package-of-practices/fruits-1/apple-1/apple
https://www.downtoearth.org.in/news/agriculture/covid-19-lockdown-himachal-fruit-growers-battle-input-shortages-70404
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में सेबों को दृश्यांवित किया गया है। (Picseql)
दूसरे चित्र में कश्मीर स्थित सेब के बागानों का दृश्य है। (Pikero)
तीसरे चित्र में सेब का पेड़ दिखाया गया है। (Flickr)
चौथे चित्र में एक पेड़ पर लगे हुए सेब चित्रित हैं। (Unsplash)
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