प्राचीन समय से गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश यात्रा निकालने की परंपरा रही है। लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल कोरोना वायरस की वजह से एक कड़ा निर्णय लिया है कि सार्वजनिक स्थानों पर इस वर्ष गणेश पूजा के पंडाल नहीं लगेंगे। इस बारे में पूरी नियमावली भी जारी की गई है। विघ्न विनाशक विनायक के इस उत्सव का पूरे देश को साल भर इंतजार रहता है। इस वर्ष के प्रतिबंध की पृष्ठभूमि में कोरोना वायरस से बचाव एक बड़ी वजह है। पंडालों के आयोजनों और पूरे समारोह में भक्तों कलाकारों की भीड़ को नियंत्रित करना सामाजिक दूरी बना कर रखना बहुत जटिल हो जाता है।
पिछले वर्षों में आयोजित गणेश उत्सव
गणेश चतुर्थी के अवसर पर लखनऊ में पिछले वर्षों में भव्य आयोजन होते रहे हैं। लखनऊ के मकबूलगंज में महाराष्ट्र समाज भवन में 1921 से बड़ी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता रहा है। पहले गणपति पूजा लाटूश रोड पर स्थित विष्णु नारायण जोशी के यहां मनाई जाती थी। आलमबाग में श्री गणपति उत्सव पंडाल और पीली कोठी मौसम बाग में भव्य आयोजन होते हैं। मौसम बाग में 18 फीट ऊंची गणपति की मूर्ति स्थापित हुई। सिद्धिविनायक रामेश्वरम की कथा पर आधारित श्री गणेश प्राकट्य समिति द्वारा 16000 स्क्वायर फीट क्षेत्र में 80 फीट ऊंचा पंडाल लगाया गया। इसमें देशभक्ति के सांस्कृतिक कार्यक्रम और बड़े मेले का भी आयोजन किया गया। इनके अलावा गणेश उत्सव पूरी भक्ति और हर्षोल्लास के साथ गुलाब वाटिका अपार्टमेंट अलीगंज, तिलकेश्वर महादेव मंदिर आलमबाग, आर्य समाज मंदिर गणेशगंज आदि स्थलों पर धूमधाम से मनाया गया।
भारत में मूर्ति विसर्जन जनित प्रदूषण
बेंजामिन फ्रैंकलिन (Benjamin Franklin) ने कहा था कि जब कुएं सूख जाएंगे तब हमें पानी का मूल्य पता चलेगा। मनुष्य 3 दिन तक पानी के बिना रह सकता है। 2025 तक एक अनुमान के अनुसार लगभग 1.8 बिलियन (180 करोड़) लोग जल संकट से जूझ रहे होंगे। दुनिया की दो तिहाई आबादी पानी की समस्या से बेहाल है। पानी की कमी के साथ-साथ जल प्रदूषण भारत की बहुत बड़ी समस्या है। अन्य कारणों के अलावा इसमें मूर्तियों का विसर्जन सबसे बड़ा कारण है। मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस (Plaster of Paris), कपड़े, लोहे की छड़, बांस आदि से निर्मित होती हैं। जिस पर रंग किया जाता है, उसमें बहुत से पदार्थ मिले होते हैं, जैसे पारा, आर्सेनिक (Arsenic), जस्ता और लेड (Lead), जो कि वातावरण तथा खुद मनुष्य के लिए हानिकारक होते हैं। इससे पानी के स्वाभाविक गुणों में भारी परिवर्तन हो जाता है और भारी धातु प्रदूषण से पानी का इकोसिस्टम (Ecosystem) नष्ट हो जाता है क्योंकि इससे जलीय जीव खत्म हो जाते हैं और पानी का बहाव भी बाधित होता है। वैसे तो सारा देश इस प्रदूषण से त्रस्त है, लेकिन खासतौर से गंगा, यमुना आदि नदियां इस प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं। हर साल लगभग एक लाख मूर्तियां भारत में विसर्जित की जाती हैं।
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में आलमबाग के गजानन की झांकी (2019) को दिखाया गया है। (Youtube)
दूसरे चित्र में लखनऊ शहर में बीते साल विभिन्न स्थानों पर सजाये गए गणपति पंडाळ को दिखाया गया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में चिनहट (लखनऊ) में बनायीं गयी भगवान् गणेश की प्रतिमा का चित्रण है। (Prarang)
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