हलाल और हराम शब्द क़ुरान में इस्तेमाल किये गये सामान्य शब्द हैं, जो क्रमशः ‘स्वीकृत’ और ‘निषिद्ध’ श्रेणियों को नामित करते हैं। दूसरे शब्दों में मानव द्वारा खाये जाने वाले वे पदार्थ जिन्हें ग्रहण करने की अनुमति ईश्वर ने दी है, हलाल हैं जबकि वे पदार्थ जिन्हें ईश्वर द्वारा ग्रहण करने से मना या निषिद्ध किया गया है, हराम हैं। कई खाद्य कंपनियां, हलाल प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और उत्पाद पेश करती हैं, जिनमें हलाल स्प्रिंग रोल (Spring Rolls), चिकन नगेट्स (Chicken Nuggets), रैवियोली (Ravioli), लज़ानिया (Lasagna), पिज़्ज़ा (Pizza) और बेबी फ़ूड (Baby Food) शामिल हैं। शाकाहारी भोजन भी हलाल की श्रेणी में आता है, अगर उसमें मदिरा न मिलायी गयी हो। हराम (गैर-हलाल) भोजन का सबसे आम उदाहरण सुअर के मांस से बने पदार्थ हैं। इस मांस का उपभोग मुसलमानों द्वारा नहीं किया जाता क्योंकि कुरान में इसे निषिद्ध बताया गया है।
वर्तमान समय में विश्व भर में उपयोग किए जाने वाली मकई, सेब, बैंगन, सोयाबीन, आलू, पपीता कुछ ऐसी ही महत्वपूर्ण फसलें हैं जो आनुवांशिक रूप से संशोधित रूप हैं। क्या आनुवंशिक रूप से संशोधित भोजन को हलाल माना जाता है? आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों पर राय मिश्रित हैं, हालाँकि इनका सेवन व्यापक रूप से किया जाता है। कुछ मौलवियों और विद्वानों ने समर्थन व्यक्त करते हुए तर्क दिया है कि इस तरह के खाद्य उत्पादन के तरीके हलाल हैं क्योंकि वे मानव कल्याण में योगदान करते हैं। आनुवांशिक रूप से संशोधित जीवों के तर्क के विरोध में कई मत पेश किए गए हैं, जैसे कि खाद्य फसलों के आनुवंशिक संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान द्वारा पहले से ही सब कुछ पूर्ण रूप से बनाया हुआ है और मनुष्य को भगवान द्वारा बनाई गई किसी भी चीज़ में हेरफेर करने का कोई अधिकार नहीं है। वहीं कुछ अन्य लोगों ने सूअरों से जीन का उपयोग करके उत्पादित विशिष्ट आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव खाद्य पदार्थों के सैद्धांतिक खपत के बारे में चिंता जताई है।
इस्लामिक न्यायशास्त्र परिषद के अनुसार, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों से प्राप्त खाद्य पदार्थ हलाल हैं, जो मुसलमानों द्वारा खपत के लिए उपयुक्त हैं। कुछ विद्वानों ने सुझाव दिया है कि जैव प्रौद्योगिकी में सुधार वाले खाद्य पदार्थों से प्राप्त खाद्य पदार्थ संभवतः हराम हो सकते हैं, यदि उनमें निषिद्ध खाद्य पदार्थों के डीएनए होते हैं। उदाहरण के लिए, सोया में सूअर के डीएनए सोया उत्पाद को हराम बना सकता है। मलेशिया (Malaysia) में दिसंबर 2010 में मलेशियाई जैव प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र (Malaysian Biotechnology Information Center) और इंटरनेशनल हलाल इंटीग्रिटी एलायंस (International Halal Integrity Alliance) द्वारा आयोजित "एग्री-बायोटेक्नोलॉजी: शरिया कम्प्लायंस (Agri-Biotechnology: Sharia Compliance)” नामक एक सम्मेलन में, प्रतिभागियों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित की गयी फसलों और उत्पादों को हलाल माना है बशर्ते उन्हें विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियां हलाल स्रोतों से प्राप्त होती हैं। इसके अलावा जो पदार्थ हराम स्रोतों से प्राप्त हुए हैं, उन्हें हराम की श्रेणी में रखा गया है।
यह मुद्दा अभी भी विद्वानों और प्रमाणित संगठनों के बीच कुछ बहस का विषय है। हालाँकि कानूनों के सबसे सख्त व्याख्याकार, रूढ़िवादी संघ के अनुसार, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें चिंता का विषय नहीं हैं। इस बोर्ड का निष्कर्ष यह था कि इस तरह के आनुवांशिक हेरफेर किसी भी काशरूत समस्याओं को प्रस्तुत नहीं करते हैं। एक गैर-कोषेर स्रोत से जीन के साथ विकसित आलू के उदाहरण का उपयोग करते हुए, कई विद्वानों का तर्क है कि गैर कोषेर जीन को आलू के पौधे में ही प्रत्यारोपित नहीं किया जाता है। बल्कि गैर-कोषेर जीन एक रासायनिक सूत्रीकरण के रूप में कार्य करता है, जो चुंबकीय मापपट्टी की तरह स्मृति पर होता है। इस सूत्रीकरण को फिर खमीर से ली गई सामग्री पर पुन: पेश किया जाता है और फिर जीवाणु के माध्यम से पौधे में पेश किया जाता है।
वहीं पैगंबर मुहम्मद के बारे में एक इस्लामी परंपरा या कहानी है, जो इस बहस के बारे में बताती है। कहा जाता है कि मुहम्मद ने एक बार उच्च पैदावार के लिए किसानों को खजूर की विभिन्न प्रजातियों का उपरोपन करते हुए देखा था। यह देख उन्होंने किसानों को ऐसा करने से माना किया और उन्होंने उनकी बात मानी, लेकिन उनकी पैदावार कम हो गई। जब किसानों ने मुहम्मद को यह बताया, तो उन्होंने किसानों को उपरोपन करना जारी रखने को कहा था। इस कहानी से हमें यह पता चलता है कि पैगंबर के समय में भी, अरब चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से खाद्य फसलों को बदल रहे थे और खेती और कृषि के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के बाद मुहम्मद अभ्यास के बारे में अपने मन को बदलने के लिए तैयार थे। इस अर्थ में, इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को एक सकारात्मक रूप से देखा जा सकता है क्योंकि वे किसानों को लाभान्वित कर सकते हैं और विश्व भर में भुखमरी की स्थिति को कम करने में मदद कर सकते हैं।
खेती में आनुवंशिक संशोधित तकनीकों का उपयोग करके फसलों की उत्पादकता बढ़ायी जा सकती है तथा लागत दर कम की जा सकती है। किंतु आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के हानिकारक प्रभावों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत, सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं होने वाली आनुवंशिक संशोधित फसलों को उगाने पर पांच साल की जेल की सज़ा और, 1 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान बनाया गया है। 2018 में सरकार को सौंपी गई एक उच्च-स्तरीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 15% कपास पूरे महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और गुजरात में अवैध रूप से उगाए जाते हैं, जोकि शाकनाशी सहिष्णु कपास हो सकते हैं। आनुवंशिक इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियों का विरोध करके, भारत विश्व के बाकी हिस्सों से पिछड़ रहा है। इन देशों में वैज्ञानिक फसलों की पैदावार, रोग प्रतिरोध क्षमता और जीवन को बेहतर बनाने के लिए जीन संपादन उपकरणों का निर्माण किया जा रहा है।
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में प्राचीन बैंगनों का चित्र दिखाया गया है। (Flickr)
दूसरे चित्र में सेब का चित्र दिखाया गया है, जो हलाल के स्टीकर(Sticker) के साथ बेचा जा रहा है। (Youtube)
तीसरे चित्र में विशिष्ट आनुवंशिक रूप से संशोधित केले को चित्रित किया गया है। (Wikimedia)
चौथे चित्र में शिमला मिर्च में आनुवंशिक रूप से संशोधित करने का चित्रात्मक दृश्य दिखाया गया है। (Wikimedia)
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