रामपुर का रजा पुस्तकालय कई प्राचीन यंत्रों को संजोए हुए है। हम यहां मौजूद नक्षत्र यंत्र (यंत्र रजा) के बारे में जानते हैं, जो यहां का सबसे पुराना उपकरण है। लेकिन उस समय के ऐसे अनेकों उपकरण हैं जिनका उपयोग खगोल विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं के कारण अक्सर विशेष आविष्कार होते रहे हैं। भारत में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों को करने के लिए कुछ विशेष समय का पालन करते हैं। लेकिन उस समय उनके पास समय बताने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं था। जमीन में एक साधारण छड़ी का उपयोग सन डायल (Sun dial) बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन जब सूरज नहीं होता तब यह उपयोग में नहीं आता। इसलिए प्राचीन भारतीयों ने एक अलग प्रकार की घड़ी तैयार की, जो पानी पर आधारित थी और इसे घटिका यंत्र नाम दिया गया। भारतीय लोगों ने दिन और रात को 60 भागों में विभाजित किया, जिनमें से प्रत्येक को घडी (घरी) कहा गया। इसके अलावा रात और दिन प्रत्येक को चार भागों में विभाजित किया गया, और प्रत्येक को पहर कहा गया। सभी महत्वपूर्ण शहरों में, समय को मापने के लिए घड़ियाली नामक पुरुषों के एक समूह को नियुक्त किया गया।
समय को मापने के लिए एक छिद्रयुक्त बर्तन को एक ऐसे अन्य बडे बर्तन में रखा गया, जिसमें पानी भरा था। यह छेद वाला बर्तन धीरे-धीरे पानी से भर जाता था। एक मोटी पीतल की डिस्क (Disc) एक ऊंचे स्थान पर एक मैलेट (Mallet) के साथ लटका दी जाती थी। इसने एक निश्चित अवधि का संकेत दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि सन डायल के साथ पानी की घडि़यां, सबसे पुरानी समय मापने वाले उपकरण हैं।
वे पहली बार कहां और कब आविष्कृत हुए थे यह तो ज्ञात नहीं है लेकिन कटोरे के आकार का बहिर्वाह एक जल घड़ी का सबसे सरल रूप है और हजारों साल पहले भारत, चीन, बेबीलोन और मिस्र में अस्तित्व में था। इतिहासकार बताते हैं कि मोहनजोदड़ो से निकले पात्रों का इस्तेमाल शायद पानी की घड़ियों के रूप में किया गया होगा। वे सतह पर पतले होते हैं, जिनके किनारों पर छेद होता है और उन बर्तनों के समान होते हैं, जिनका प्रयोग शिवलिगों के जलाभिषेक के लिए किया जाता था। अथर्ववेद में दूसरी शताब्दी से प्राचीन भारत में जल घड़ी का उपयोग भी वर्णित है। छह वेदांग विषयों में से एक ज्योतिषा स्कूल, घटी या कपाला नामक जल घड़ियों का वर्णन करता है।
7वीं शताब्दी के दौरान भारत का दौरा करने वाले चीनी यात्री ने भी इस बात की जानकारी दी कि बौद्ध विश्वविद्यालय नालंदा में इस जल घड़ी ने कैसे काम किया।
नालंदा में दिन के चार घंटे और रात के चार घंटे पानी की घड़ी से मापे जाते थे। इसमें तांबे की कटोरी होती थी जो पानी से भरे एक बड़े कटोरे में दो बडे डोंगे धारण किए हुए होती थीं। ज्योतिषी वराहिमिरा की पंचसिद्धांतिका में एक जल घड़ी का वर्णन सूर्यसिद्धांत में दी गयी जानकारी के बारे में और विस्तार से बताता है। गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त द्वारा उनके कार्य ब्रह्मसुप्तासिद्धान्त में दिया गया वर्णन सूर्यसिद्धांत में दिए गए वर्णन से मेल खाता है। खगोलविद लल्लाचार्य ने भी इस यंत्र का विस्तार से वर्णन किया है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.