लखनऊ की 100 साल पुरानी फूल मंडी और वहाँ की फूलों वाली गली, अपने फूलों की विविधता के लिए दूर-दूर तक मशहूर है। यहां का व्यापार किसी भी परिस्थिति में नहीं रुकता है। बहुत से लोगों के व्यवसाय इस मंडी पर आधारित है। इस मंडी का कार्य और व्यापार बहुत व्यवस्थित तरीके से चलता है। इस मंडी को यहां से हटाकर कहीं और स्थापित करने के बहुत बार प्रयास हुए लेकिन इस बात का हमेशा कड़ा विरोध ही हुआ। भारत में फूलों की खेती का पुराना इतिहास रहा है। वर्तमान समय में समारोहों के आयोजन पर लगे प्रतिबंध के कारण फूलों की मांग पर बहुत असर पड़ा है। देखना यह है कि इस मामले में प्रशासन का रुख क्या रहता है, क्या उपाय सोचा जाता है, फूलों की फसल के उपयोग के विषय में?
फूल वाली गली
नवाबों के समय में चौक का इलाका अपनी रंगीनियों के लिए बदनाम था। आसपास तवायफें रहती थी ,वहीं फूलों की दुकानें भी थी। आज उन तंग गलियों में चिकनकारी की दुकानें हैं, फूलों की दुकानें भी हैं, जिनमें गेंदे और गुलाब के फूल मिलते हैं।
कंचन मार्केट: फूलों का नया बाजार
यह काफी रौनक वाला व्यस्त बाजार है, जिसमें हर तरह के फूल मिलते हैं। यह नींबू पार्क के पास है। यहां के फूल वाले शादियों, मंदिरों, होटल लॉबी में सजावट का काम करते हैं। यहां सारी चीजें बहुत कम कीमतों पर मिल जाती हैं।
क्या फिर बदलेगा फूल मंडी का पता?
चौकी फूल वाली गली से चलकर कंचन मार्केट पहुंची, फूल मंडी पर एक बार फिर किसान मंडी, गोमती नगर पहुंचने के बादल मंडरा रहे हैं। हालाँकि फूल वालों की यूनियन ने इसका पुरजोर विरोध किया है। ज्यादातर फूल सप्लाई करने वाले किसान- दुबग्गा, काकोरी, अमेठी और हरदोई से आते हैं। उनके लिए चौक पहुंचना आसान है। गोमती नगर शहर का एकदम दूसरा छोर है।
फूलों की फसल के संकट
कोरोना वायरस महामारी के चलते कर्फ्यू और लॉकडाउन के इस दौर में बड़े-बड़े आयोजन रद्द हो गए हैं। मंदिर और गुरुद्वारों में भी फूलों की मांग नहीं के बराबर है। ऐसी स्थिति में देश के हर क्षेत्र के किसान खेतों में तैयार खड़ी फूलों की फसल को नष्ट करने की सोच रहे हैं, बहुत जगह तो यह कदम उठाकर नई फसल बोई भी जा रही है। पंजाब के तरनतारन इलाके में 10-12 सालों से किसान गेंदा और गुलाब की फसल उगा रहे थे। कर्फ्यू के चलते लोगों ने शादी ब्याह के आयोजन भी आगे बढ़ा दिए हैं । अब किसानों ने अपनी फूलों की फसल नष्ट कर दी है। लाखों के नुकसान के साथ-साथ रही सही बचत नई फसल बोने में खर्च हो रही है। पंजाब की तरह ही हाल राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों का भी है। फूलों की फसलें अक्टूबर से दिसंबर के मध्य लगाई जाती हैं और अगले वर्ष फरवरी से जून तक इसकी बिक्री होती है। फूलों की फसलें नष्ट होने से तमाम किसान परिवार रोजी-रोटी के भयंकर चक्र में फंसकर बेहाल हो गए हैं। कुछ किसान दूसरों की जमीन पर अपनी फसल उगाते हैं। इसलिए जमीन के लिए अगर प्रशासन से कुछ राहत मिलेगी तो वह जमीन के मालिक को मिलेगी, फूलों की फसल उगाने वाले किसान को नहीं। लोगों को इंतजार है लॉकडाउन समाप्त होने का और बंद हुए उत्सव समारोह के शुरू होने का। लेकिन इस पर भी उनके मन में शंका है कि फूलों की मांग पहले जैसी होगी या नहीं।
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