कृष्णम वंदे जगत गुरुम
देवकी परमआनंदम कृष्णम वंदे जगत गुरुम
श्री कृष्ण जन्माष्टमी, कृष्ण के लोक नायक, पुरुषार्थी, कर्म योगी, संघर्षशील और कभी हार ना मानने वाले स्वरूपों की पूजा करने वाला पर्व है। विष्णु की 16 कलाओं का उत्तराधिकार लेकर जन्मे श्री कृष्ण की गाथा इतने विविध आयाम समेटे है कि जितना उन पर लिखा गया, उतनी व्यापकता किसी और अवतार में नहीं मिलती।
विविध रूप: श्री कृष्ण जन्मोत्सव
विष्णु भगवान के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण का जन्म श्रावण मास की अष्टमी को हुआ था।
कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 2 दिनों का होता है। क्योंकि उनका जन्म मध्य रात्रि को हुआ था, इसलिए पहले दिन को कृष्ण अष्टमी या गोकुलाष्टमी कहते हैं, वही दूसरे दिन को कालाष्टमी या जन्माष्टमी कहा जाता है। कृष्ण अष्टमी को भक्त उपवास रखते हैं, भजन गाते हैं। काल अष्टमी के दिन लोग भक्ति गीत गाते हैं, नाचते हैं और भोग लगाते हैं। पूरे भारत में यह त्यौहार कई नाम और प्रकारों से मनाया जाता है। हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा का यह पर्व व्यापक रूप से मणिपुर, पश्चिम बंगाल, आसाम, उड़ीसा, राजस्थान, गुजरात, तमिल नाडु में मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी प्रमुख रूप से वृंदावन का त्यौहार है, जहां कृष्ण का जन्म हुआ और जहां कृष्ण पले बढ़े।
कृष्ण जन्माष्टमी: अन्य प्रदेशों में
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में श्री कृष्ण जन्माष्टमी गोकुलाष्टमी के नाम से जानी जाती है। इस अवसर पर दही हांडी का भी आयोजन होता है। इस आयोजन के साथ एक कथा यह भी प्रचलित है कि माखन चोर कृष्ण द्वारा मक्खन-दही की चोरी से परेशान गोकुल वासी ऊंची हांडी में दही मक्खन छुपाते थे ताकि बालकृष्ण वहां तक ना पहुंच पाए। कृष्ण बहुत प्रयास करते थे, उस हांडी तक पहुंचने का। इसी क्रम में अपने साथियों के साथ एक पिरामिड जैसी आकृति बनाकर हांडी तक पहुंच ही जाते थे और उसे तोड़कर माखन दही चुरा लेते थे। उसी स्मृति में यह प्रथा अभी भी चली आ रही है।
गुजरात
द्वारका में जन्माष्टमी के अवसर पर दही हांडी की तरह माखन हांडी का आयोजन होता है। मंदिरों में कई तरह के आयोजन होते हैं। लोक नृत्य और भक्ति संगीत का कार्यक्रम होता है। लोग द्वारकाधीश मंदिर जाकर जन्मोत्सव में शामिल होते हैं। ज्ञातव्य है कि द्वारका में भगवान कृष्ण ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी।
उत्तर भारत
वैष्णव समुदाय उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में बहुत धूमधाम से इस पर्व को मनाते हैं।
पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
इन क्षेत्रों में व्यापक रूप से कृष्ण पूजा का प्रचलन 15 एवं 16वीं शताब्दी के शंकरदेव और चैतन्य महाप्रभु के प्रयासों से संभव हुआ। अंकिया नात, सत्तरिया, बोर्गीत और भक्ति योग पश्चिम बंगाल और असम में प्रचलित हैं। मणिपुरी लोगों ने हिंदू वैष्णव कथानक पर आधारित एक नृत्य विकसित किया है, जिसे जन्माष्टमी के दिन प्रदर्शित किया जाता है। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इसे कृष्ण जयंती या श्री जयंती नामों से भी मनाते हैं।
दक्षिण भारत
तमिलनाडु में लोग फर्श पर सजावट करते हैं और गीत गोविंदम गाते हैं। भक्त श्री कृष्ण के पद चिन्ह घर के बाहर प्रतीक रूप में बनाते हैं ताकि ईश्वर कृपा बरसाने घर के अंदर आ सके। आंध्र प्रदेश में भक्ति संगीत का आयोजन होता है। युवा लड़के कृष्ण का रूप धर के पड़ोसियों और दोस्तों के यहां मिलने जाते हैं। विभिन्न प्रकार के फलों और मिठाईयों का भोग लगाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.