जलवायु परिवर्तन के नैतिक सिद्धांत

लखनऊ

 10-08-2020 06:36 PM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

मान लीजिए आप एक मछुआरे हैं और आपके राष्ट्र में मछलियों से भरी एक बड़ी झील है, जो लगभग 900 मछुआरों का भरण पोषण करने में सक्षम है। हालांकि वहाँ 1000 मछुआरे हैं। यदि झील से ऐसे ही मछली पकड़ी जाती हैं, तो अगले कुछ दशकों में सभी मछलियां खत्म हो सकती हैं। लेकिन आप पेशे से मछुआरे हैं और राजनीतिक सत्ता में आपकी दिलचस्पी नहीं है और न ही आपके पास बहुत सारे अन्य विपणन कौशल हैं। साथ ही आपके पास पालन-पोषण करने के लिए के बड़ा परिवार भी है। हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए वहाँ कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया है, और यदि कोई है, तो जिन मछुआरों को आप जानते हैं, वे स्वयं द्वारा पकड़ी जाने वाली मछलियों की मात्रा पर अंकुश लगा रहे हैं। अब आपके पास दो रास्ते हैं, पहला क्या एक व्यक्ति के रूप में आपको अपने परिवार के खर्च को कम करके संरक्षण में मदद करनी चाहिए? दूसरा, क्या आपको अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मछलियों की मात्रा पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए? दरसल यह विचार परीक्षण सीधे जलवायु नैतिकता और संबंधित प्रश्नों पर लागू होते हैं।
97% जलवायु वैज्ञानिक कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक और मानवजनित है और वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या के साथ जलवायु परिवर्तन एक भयावह, अस्तित्वगत जोखिम बन गया है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) के वैज्ञानिकों ने आने वाली सदी में 2.5-10℉ से उच्च तापमान बढ़ने की भविष्यवाणी की है। यह तापमान परिवर्तन पहले से शुरू हुए पर्यावरणीय प्रभावों की मेजबानी करेगा। जैसे वर्षा का प्रतिमान बाधित होगा, सूखे और गर्मी की दरों में वृद्धि होगी और तूफान मजबूत और अधिक लगातार होने लग जाएंगे। इस तापमान परिवर्तन का विशेष रूप से समुद्र पर प्रभाव विनाशकारी होगा। महासागरों में पहले से ही प्रति वर्ष 0.092℉ की दर से ऊष्मोत्पादक हो रहा है। यह ऊष्मोत्पादक समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्यों को समान रूप से प्रभावित करेगा। यह पोषक तत्वों, ऑक्सीजन (Oxygen) जैसे आवश्यक संसाधनों के संचलन और जैवउत्पादकता को कम करने के लिए धीमी थर्मोहेलिन (Thermohaline) प्रवाहों का निर्माण करेगा।
ग्लेशियर(Glacier) की बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ेगा, जिससे तटीय शहरों में बाढ़ का खतरा अधिक हो जाएगा और दूसरी ओर भूमि आधारित मीठे पानी के भंडार और यहां तक कि जलमग्न द्वीप प्रदूषित होंगे। वहीं समुद्र में प्रवेश करने वाले अधिक मीठे पानी की वजह से समुद्र के लवणता के स्तर में बदलाव होगा, जिस वजह से कई जीवों को भारी नुकसान पहुंचेगा। समुद्र के तापमान और पारिस्थितिक तंत्र के बदलने से निवास स्थान को भी काफी नुकसान होगा। समुद्र का विघटन और अस्थिरता हम सभी के लिए एक चिंता का मुद्दा है। पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणी, भोजन, ऑक्सीजन और विभिन्न स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की संपन्नता के लिए समुद्र पर निर्भर हैं। वहीं तट या उसके आस-पास रहने वाले लोग समुद्र के स्तर में वृद्धि से असुरक्षित हैं।
जलवायु परिवर्तन से न केवल हमारे पारिस्थितिक तंत्र को खतरा है, यह हमारे मौलिक अधिकारों की नींव को कमजोर करता है, असमानताओं को गहरा करता है और अन्याय के नए रूप बनाता है। जलवायु परिवर्तन को अपनाने और इसके प्रभावों को कम करने की कोशिश करना केवल वैज्ञानिक ज्ञान और राजनीतिक इच्छाशक्ति का मामला नहीं है; यह एक जटिल स्थिति के व्यापक दृष्टिकोण की भी मांग करता है। इस मुद्दे को हल करने में एक बाधा जलवायु परिवर्तन समस्या की परिचित संरचना है। जलवायु परिवर्तन मछुआरे की दुविधा की तरह है। जिस तरह मछुआरे को स्वस्थ मछली की आबादी में रुचि है, हम सभी की जलवायु परिवर्तन को रोकने और महासागरों को बचाने में रुचि है, लेकिन निवेश पर प्रतिफल कम है।
जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए, हम में से प्रत्येक पर्यावरण अनुकूलित परिवहन, खाद और पुनरावृत्ति, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं, कम मांस की खपत, अधिक ऊर्जा-कुशल उत्पादों की खरीद और पर्यावरण की दृष्टि से जागरूक कंपनियों का समर्थन कर सकते हैं। अगर हम सभी ये कार्य करते हैं, तो जलवायु परिवर्तन की समस्या कम गंभीर होगी। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत योगदान नगण्य होगा, जिसके लिए उन्हें एक बड़ी कुर्बानी से गुजरना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन की दुविधा केवल व्यक्तियों पर लागू नहीं होती है। इसके लिए कंपनियों को भी आगे आना होगा और पर्यावरण नीतियों को लागू कर संचालन करने पर जोर देना होगा। लेकिन प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए, कंपनियां इस प्रकार के पर्यावरणीय विचारों को त्याग देती हैं। इसी तरह राष्ट्रों को भी दुविधा का सामना करना पड़ता है। एक सरकार पर्यावरणीय नियमों के बिना अपनी कंपनियों को अनुमति देकर अपने राष्ट्र को सबसे बेहतर बना सकती है। परंतु यदि प्रत्येक देश ऐसा करेंगे, तो जलवायु परिवर्तन की समस्या ओर अधिक गंभीर हो जाएगी। लेकिन एकल राष्ट्र के दृष्टिकोण से, यह एक तर्कसंगत विकल्प हो सकता है। वहीं आप में से कई लोग यह भी सोच रहे होंगे कि मछुआरे, व्यक्ति, कंपनियां और राष्ट्र हमेशा वैसा व्यवहार नहीं करते हैं, जैसा यहाँ वर्णित किया है।
वहीं सदस्य राज्यों और अन्य हितधारकों को उचित निर्णय लेने और टिकाऊ विकास के लिए प्रभावी नीतियों को लागू करने, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और इसके नकारात्मक प्रभावों के शमन में मदद करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने नवंबर 2017 में जलवायु परिवर्तन के संबंध में नैतिक सिद्धांतों की घोषणा की। नैतिकता किसी भी प्रतिबद्धता का पर्याप्त मूल है। एकजुट होकर बल के रूप में, नैतिकता कार्रवाई कर सकती है, मध्यस्थता की सुविधा दे सकती है, परस्पर विरोधी हितों को हल कर सकती है और प्राथमिकताएं स्थापित कर सकती है। नैतिकता में सिद्धांत को अभ्यास से जोड़ने की क्षमता है, राजनीतिक सिद्धांतों के साथ सामान्य सिद्धांत और स्थानीय कार्यों के साथ वैश्विक जागरूकता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन द्वारा अपनाई गई घोषणा छह नैतिक सिद्धांतों पर आधारित है:
• नुकसान की रोकथाम: जलवायु परिवर्तन के परिणामों की बेहतर प्रत्याशा करना और जलवायु परिवर्तन को कम करके अनुकूल बनाने के लिए जिम्मेदार और प्रभावी नीतियों को लागू करना, जिसमें जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कम ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) उत्सर्जन वाले उपकरणों के विकास की पहल शामिल है।
• एहतियाती दृष्टिकोण: निश्चित वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के आधार पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को रोकने या कम करने के उपायों को अपनाने को स्थगित न करें।
• समानता और न्याय: न्याय और निष्पक्षता की भावना को देखते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रति उठाए गए कदमों से सभी को लाभ पहुंचाया जाएं। न्यायिक और प्रशासनिक कार्यवाही के निवारण और उपाय सहित, जलवायु परिवर्तन (अपर्याप्त उपायों या अपर्याप्त नीतियों के कारण) से अन्यायपूर्ण ढंग से प्रभावित लोगों को सहायता दी जाए।
• सतत विकास: विकास के लिए उन नए रास्तों को अपनाए, जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र को भी बनाए रखें, साथ ही एक अधिक न्यायसंगत और जिम्मेदार समाज का निर्माण करना चाहिए, जो जलवायु परिवर्तन के लिए अधिक लचीला हो। उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जहाँ जलवायु परिवर्तन के मानवीय परिणाम आकस्मिक हो सकते हैं, जैसे कि भोजन, ऊर्जा, जल असुरक्षा, महासागरों, मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और प्राकृतिक आपदाएँ।
• एकजुटता: व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के लिए सबसे अधिक संवेदनशील लोग और विशेष रूप से कम से कम विकसित देशों और विकासशील छोटे द्वीप का समर्थन किया जाना चाहिए। प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण, ज्ञान-साझाकरण और क्षमता-निर्माण सहित विभिन्न क्षेत्रों में सामयिक सहकारी कार्रवाई को मजबूत किया जाना चाहिए।
• निर्णय लेने में वैज्ञानिक ज्ञान और अखंडता: निर्णय लेने और प्रासंगिक दीर्घकालिक रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए विज्ञान और नीति के बीच अंतराफलक को मजबूत करें, जिसमें जोखिम पूर्वानुमान भी शामिल हो। विज्ञान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और सभी लोगों के लाभ के लिए इसके निष्कर्षों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना।
जलवायु परिवर्तन एक ऐसी विश्वव्यापी चुनौती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को कई-कई प्रकार से और कई स्तरों पर लड़ना होगा। अतः इस संबंध में सार्थक प्रयासों एवं जनचेतना की बहुत आवश्यकता है।

संदर्भ :-
https://bowseat.org/gallery/what-can-be-done-if-climate-change-is-a-prisoners-dilemma/
https://en.unesco.org/news/ethical-principles-climate-change


चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में भारतीय मछुआरों का एक झुंड दिखाया गया है।(youtube)
दूसरे चित्र में जलवायु नैतिकता के संतुलन का चित्रण है। (youtube)



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