शाकाहार के विपरीत नहीं हैं इस्लाम धर्म की मान्यताएं

लखनऊ

 31-07-2020 06:14 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

वर्तमान समय में पूरी दुनिया में शाकाहार को अत्यधिक महत्ता दी जा रही है। यह महत्ता प्रायः स्वास्थ्य लाभ, कृषि को प्रोत्साहित करने और नैतिक कारकों के लिए दी जा रही है। इसके अलावा चूंकि मांस का सेवन नैतिक रूप से प्रतिकारक लगता है, इसलिए भी लोग शाकाहार की तरफ बढ़ रहे हैं। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि आज बहुत सारे पशु उत्पाद विकल्प हमारे लिए उपलब्ध हैं। शाकाहारी लोगों में से एक समूह ऐसे लोगों का भी है, जिनके लिए मांस खाना उनकी दिनचर्या में शामिल हो सकता है लेकिन फिर भी वे शाकाहारी होने का विकल्प चुनते हैं। यह समूह मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का है। उनका मानना है कि पैगंबर मुहम्मद के समय के मुसलमानों द्वारा आज की तरह मांस की दावत साझा नहीं की गई थी तथा वे बहुत कम मांस खाते थे तथा व्यावहारिक रूप से शाकाहारी थे। स्वयं मुहम्मद भी दैनिक मांस की खपत के समर्थक नहीं थे, क्योंकि उनके अनुसार यह नशे की लत बन सकता था।
लेकिन मुसलमानों का यह भी तर्क है कि ईश्वर ने कहा है कि जो उसने अनुमेय (हलाल) किया है उसे अभेद्य (हराम) न बनाएं। दूसरे शब्दों में, अगर ईश्वर ने कहा है कि यह गलत नहीं है, तो आपको इसे गलत नहीं बनाना चाहिए। शराब और सुअर के मांस के सेवन को कुरान में साफ शब्दों में निषेध बताया गया है, जबकि अन्य पशु मांस के लिए मनाही नहीं की गयी है। हालांकि इन सब बातों को तब मानना जटिल हो जाता है, जब ईश्वर के शब्द, जो कुरान में उल्लेखित हैं, पर गौर किया जाता है। कुरान के अनुसार जानवर मनुष्य के ही समान संवेदनशील प्राणी हैं। कुरान इस बात पर भी जोर देती है कि 'हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा और देखभाल करनी चाहिए’। यदि मानव उपभोग के लिए पशुओं को मारना ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) का एक प्रमुख कारण है, तो पर्यावरण की सुरक्षा और देखभाल कैसे सम्भव है? कुरान में भले ही यह उल्लेखित है कि हम मांस खा सकते हैं, लेकिन साथ में यह भी कहा गया है कि हमें जानवरों के प्रति अच्छा होना है। कुरान हलाल मांस खाने के लिए कहती है लेकिन वह मांस, जिसे जानवरों को नुकसान देकर निर्दयता के साथ प्राप्त किया जाता है, वह हमेशा हलाल नहीं होता। मुस्लिम शाकाहारी मानते हैं कि इस्लाम दया सिखाता है, जो जीवित प्राणियों के लिए भी है। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग मानते हैं कि कुरान में कहीं भी यह उल्लेखित नहीं है कि हमें मांस नहीं खाना चाहिए लेकिन वहीं कई यह भी मानते हैं कि कुरान में जीवों पर दया के बहुत बड़े महत्व का उल्लेख किया गया है तथा हमें जानवरों का इलाज उनकी सुरक्षा तथा धर्म के अनुसार उनके कल्याण की चिंता करनी चाहिए। जानवरों के प्रति दया का भाव कुरान के कई छंदों में वर्णित है। कुरान कहती है कि जानवरों को केवल संसाधनों के रूप में नहीं देखना चाहिए। वे मनुष्यों के ही समान समुदाय और समूह का निर्माण करते हैं। कुरान के अनुसार ‘एक जानवर के लिए किया गया अच्छा कार्य उतना ही मान्य होता है, जितना कि जब कोई अच्छा कार्य इंसानों के लिए किया जाता है। अगर कोई प्राणी एक सूक्ष्मजीव पर भी दया करता है, तो न्याय के दिन अल्लाह उस पर मेहरबान या दयालु होगा। ईश्वर केवल उन्हीं पर दया दिखायेगा, जो अन्य प्राणियों पर दया दिखाते हैं।' इस्लामी शिक्षाएं भी जानवरों को मनुष्य के समान मानती हैं और जीवन में शांति के लिए उनके अधिकारों को लगातार उजागर करती रहती हैं। इस्लाम करुणा, दया और शांति का धर्म है, जिसके अंतर्गत सभी जीवित प्राणी आते हैं। विभिन्न पैगम्बरों ने भी जानवरों की खाल के उपयोग को दया के विरूद्ध माना था। उन्होंने जानवरों की पिटाई और उनके चेहरे पर हमला करने जैसी गतिविधियों की भी घोर निंदा की थी। इस्लाम धर्म के इतिहास में भी कई मुस्लिमों, विशेष रूप से सूफी मुस्लिमों ने शाकाहार का अभ्यास किया।
आज दुनिया भर में ऐसे कई मुस्लिम लोग हैं, जो न केवल पश्चिमी देशों में बल्कि इस्लामी वातावरण में भी शाकाहारी जीवन शैली का अभ्यास कर रहे हैं। इसके अंतर्गत कई राष्ट्रीय मुस्लिम शाकाहारी संगठन भी बनाये गए हैं। जानवरों पर दया करने के कारण ही हज यात्रा के दौरान शिकार करने की अनुमति नहीं दी जाती। कुछ मतों का मानना है कि इस्लामी रिवाज़ में पशु बलि का अस्तित्व इस्लामी अरब समाज के मानदंडों और शर्तों से बनाया गया है तथा इसे खुद इस्लाम द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था। शाकाहारी मुस्लिमों का मानना है कि कुरान में कहीं नहीं लिखा गया है कि हम मांस या जानवरों का उपभोग करने के लिए बाध्य हैं। कुरान केवल जानवरों के ही नहीं अपितु पर्यावरण के संरक्षण पर भी ज़ोर देती है और हमें इसकी देखभाल कैसे करनी चाहिए यह भी समझाती है। इस प्रकार इस्लाम धर्म की मान्यताएं पूर्ण रूप से शाकाहार के विपरीत नहीं हो सकती हैं क्योंकि स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के कुछ मुद्दों के कारण कई मुसलमान शाकाहार को अपना रहे हैं।

संदर्भ:
https://metro.co.uk/2018/02/15/does-veganism-go-against-muslim-beliefs-7312122/
http://www.onearabvegan.com/2012/01/muslims-cant-be-vegan-where-veganism-and-religion-collide/
https://mvslim.com/vegan-muslims-on-the-rise-an-interview-on-eating-plant-based-and-living-cruelty-free/
https://www.animalsinislam.com/islam-animal-rights/vegetarianism-un-islamic/


चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में एक मुस्लिम वीगन (Vegan) महिला को दिखाया गया है। (Unsplash)
दूसरे चित्र में ईद मिलन समारोह के दौरान शाकाहारी भोजन ग्रहण करते मुस्लिम समुदाय के लोग दिखाए गये हैं। (Flickr)
अंतिम चित्र में दिल्ली की फातिमा को दिखाया गया है, जो पूर्णतया वीगन हो चुकी हैं। (Prarang)



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