वर्तमान समय में किसी भी देश के लिए झुग्गी बस्तियों का प्रसार एक प्रमुख समस्या है। झुग्गी आमतौर पर एक अत्यधिक आबादी वाला शहरी आवासीय क्षेत्र है, जहां अधिकतर खराब, अधूरी संरचना की स्थिति में आवास इकाइयाँ स्थापित होती हैं। ये क्षेत्र मुख्य रूप से गरीब लोगों द्वारा बसाया गया होता है। हालांकि झुग्गी बस्तियां, आमतौर पर शहरी क्षेत्रों में (विशेष रूप से अमेरिका में) स्थित हैं, लेकिन अन्य देशों में वे उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित हो सकते हैं जहां आवास की गुणवत्ता में कमी के साथ रहने की स्थिति अत्यधिक खराब होती है। मलिन बस्तियां आकार और अन्य चीजों में भिन्न होती हैं तथा यहां उचित स्वच्छता सेवाओं, स्वच्छ पानी की आपूर्ति, बिजली, कानून प्रवर्तन और अन्य बुनियादी सेवाओं का अभाव होता है।
झुग्गियों में झोंपड़ीनुमा घरों से लेकर व्यावसायिक रूप से निर्मित आवासों तक की भिन्नता है, जो खराब गुणवत्ता वाले निर्माण या बुनियादी रखरखाव की कमी के कारण खराब हो गए हैं। सामान्य आबादी के बढ़ते शहरीकरण के कारण, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में 18 वीं से 20 वीं शताब्दी में झुग्गियां आम हो गईं। झुग्गियां जहां मुख्य रूप से विकासशील देशों के शहरी क्षेत्रों में पायी जाती हैं, वहीं यह विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी मौजूद हैं। मलिन बस्तियां दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई अलग-अलग कारणों से बनती और बढ़ती हैं। इन कारणों में तेजी से हो रहा ग्रामीण-से-शहरी प्रवास, आर्थिक स्थिरता और अवसाद, उच्च बेरोजगारी, गरीबी, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था, गरीब नियोजन, राजनीति, प्राकृतिक आपदा, सामाजिक संघर्ष आदि शामिल हैं। विभिन्न रणनीतियों ने विभिन्न देशों में झुग्गियों को कम करने और बदलने की कोशिश की, जिसमें सफलता का स्तर भिन्न भिन्न है। इन रणनीतियों में झुग्गियों का हटाव, उचित पुनर्निर्माण, शहर नियोजन विकास, पब्लिक हाउसिंग (Public housing) आदि शामिल हैं। लखनऊ जहां की जनसंख्या 2011 के अनुसार, 2,817,105 है, में शहर की आबादी 2,817,105 है तथा शहरी या महानगरीय आबादी 2,902,920 है। यहां कुल झुग्गी बस्तियों की संख्या 65,629 है जिसमें 3,64,941 आबादी निवास करती है। यह 2011 की जनगणना के आधार पर लखनऊ की कुल जनसंख्या का लगभग 12.95% है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research – ICMR) ने गणना की है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में, प्रसार का जोखिम शहरी क्षेत्रों में 1.09 गुना और शहरी झुग्गियों में 1.89 गुना अधिक था। संक्रमण मृत्यु दर 0.08 पर बहुत कम है। झुग्गियां शहरी विकास मैट्रिक्स (Matrix) को समझने का सबसे अच्छा तरीका है। इस आधार पर, लखनऊ में झुग्गी बस्तियों की वर्तमान स्थिति, रुझान के मुद्दों का आकलन करने के लिए वर्ष 2014 में एक गुणात्मक और मात्रात्मक खोजपूर्ण अध्ययन किया गया था। लखनऊ में वास्तव में 787 झुग्गियां थीं, जिनमें 10 लाख से अधिक लोग रहते थे। सार्वजनिक भूमि का अतिक्रमण करके 50 परिवारों ने एक झुग्गी का गठन किया था। नतीजतन, 10 प्रमुख झुग्गी क्षेत्रों की पहचान की गई। शहरी विकास विशेषज्ञों के अनुसार झुग्गियां आधुनिक नियोजित शहरों की संगठित वृद्धि को समझने के लिए एक संकेतक की भांति कार्य करती हैं। एक झुग्गी कम से कम 20 घरों का एक संघनित व्यवस्थापन है, जिनमें से अधिकांश खराब और अस्थायी प्रकृति के हैं। इन स्थानों में न तो पीने योग्य स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही अन्य सुविधाएं मौजूद हैं। इनकी पहली समस्या सड़क का अभाव, दूसरी पानी का अभाव, तीसरी बिजली का अभाव है। इसके अलावा शौचालय और स्वच्छता के लिए भी कोई सुविधा नहीं है। यहां रहने वाले लोगों में से लगभग 90 प्रतिशत से अधिक लोग ऐसे हैं जो बेहतर रोजगार और बेहतर जीवन के अवसरों के लिए ग्रामीण इलाकों से आकर यहां स्थापित हुए हैं। मलिन बस्तियों की अधिक सरल और सार्वभौमिक परिभाषा के साथ शहरी नियोजन में स्पष्टता और पारदर्शिता की आवश्यकता है। चूंकि सभी साझेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए विकास एक सहभागी दृष्टिकोण का आह्वान करता है, इसलिए जमीनी स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। पांच साल के चक्रण के आधार पर गरीबों और हाशिए पर रहने वालों को शहर के मास्टर प्लान (Master plan) में शामिल किया जाना चाहिए। बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के कार्य को पहचानने और निष्पादित करने के लिए एक विशेष नोडल एजेंसी (Nodal agency) स्थापित करना आवश्यक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली भारत की शहरी गरीब आबादी 650 लाख से अधिक है, जो कुल शहरी आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है। जबकि व्यापक शहरी जनसंख्या वृद्धि प्रति वर्ष दो से तीन प्रतिशत है, झुग्गियों और अनौपचारिक शहरी बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि बहुत बड़ी है और यह भी ज्ञात है कि उनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी सेवाओं से बाहर रखा गया है। वर्तमान समय में जहां पूरा विश्व कोविड (Covid-19) विषाणु का सामना कर रहा है वहीं महामारी के दौरान झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों की स्थिति और भी कमजोर हो गयी है। हालांकि ऐसी शहरी आबादी जिनके पास सुविधाएं मौजूद हैं, शारीरिक दूरी, स्वच्छता, आवश्यक और गैर-आवश्यक चीजों तक पहुंच सुनिश्चित करने, घर से काम करने और सामाजिक सुरक्षा उपायों के तहत खुद की सुरक्षा करने में समर्थ है, लेकिन शहरी गरीब जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि वे पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें अक्सर बीमारी फैलाने के लिए दोषी ठहराया जाता है, और कलंक, अलगाव और भेदभाव का लक्ष्य बनाया जाता है। देश को महामारी की चुनौतियों का सामना करने हेतु मदद करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने शहरी केंद्रों के लिए विभिन्न परामर्श जारी किए हैं। इनमें से अधिकांश मलिन बस्तियों और अनौपचारिक बस्तियों की जमीनी हकीकत पर विचार किए बिना संकट के प्रबंधन के आदर्श परिदृश्यों पर आधारित हैं और इन्हें लागू करने के लिए आवश्यक संस्थागत व्यवस्था की कमी है। तालाबंदी से महामारी फैलने की गति को धीमा किये जाने का प्रयास किया गया है लेकिन इसने गरीबों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इन दिनों लगाये जाने वाले प्रतिबंध शहरी गरीबों को किसी और की तुलना में बहुत अधिक प्रभावित कर रहे हैं। इसके लिए सरकार को एक त्वरित लेकिन सुनियोजित प्रतिक्रिया तंत्र के साथ आने की आवश्यकता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.