द पायनियर के विवरण के अनुसार, भारत भौगोलिक रूप से मत्स्य पालन क्षेत्र में विश्व में अग्रणी होने की ओर अग्रसर है। दुनिया में सबसे बड़ा प्रायद्वीप होने के नाते, इसकी 7,517 किलोमीटर की विशाल तटरेखा और 200 समुद्री मील, झीलों, नदियों और कई अन्य अंतर्देशीय जल निकायों के संजाल के साथ, यह मछली उत्पादन में किसी भी अन्य राष्ट्र को आसानी से पीछे छोड़ सकता है। ग्रामीण भारत में एक बड़ी आबादी, खासकर युवा पीढ़ी, मछली पकड़ने के उद्योगों में प्रसारित की जा सकती है। तिलपिया केवल भारत में ही अत्यधिक लोकप्रिय नहीं है, बल्कि धरती पर पायी जाने वाली 4 ऐसी मछलियों में भी शामिल है जिसका सबसे अधिक उपभोग किया जाता है।
यह मुख्य रूप से ताजे पानी की मछली हैं जो उथली धाराओं, तालाबों, नदियों और झीलों में निवास करती है तथा खारे पानी में सामान्यतः कम ही रहती है। ऐतिहासिक रूप से, अफ्रीका में आर्टीसनल (artisanal) मछली को पकडने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। जलीय कृषि और एक्वापोनिक्स (aquaponics) में भी इनका महत्व बढता जा रहा है। कीमत कम होने के साथ-साथ यह स्वाद में भी लाजवाब है। इसके पालन के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे अधिक उपयुक्त होती हैं। मध्य पूर्व और अफ्रीका में की जाने वाली वाली तिलपिया कृषि अब अधिकांश देशों में सबसे अधिक लाभदायक व्यवसाय बन गई है। तिलपिया केकड़े के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय समुद्री भोजन बन गया है, जिसके कारण इसकी कृषि फल-फूल रही है। केवल इतना ही नहीं इसने झींगा और सामन जैसी सबसे अधिक बिकने वाली प्रजातियों की सूची में प्रवेश किया है। तिलपिया का सबसे बड़ा उत्पादक चीन है। इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और ताइवान भी वैश्विक बाजार में अधिकतम तिलपिया की आपूर्ति करते हैं। लगभग 85 देशों में तिलपिया की कृषि की जा रही है और इन देशों में पैदा होने वाले लगभग 98 प्रतिशत तिलपिया अपने प्राकृतिक आवासों के बाहर पाले जाते हैं। इसकी कृषि के लिए पानी का आदर्श तापमान 82-86 डिग्री होना चाहिए, इसलिए भारत तिलपिया के कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी प्रजनन दर बेहद उच्च है, जो इसकी कृषि करने वाले लोगों को अत्यधिक लाभ पहुंचा सकता है। भारत में इसकी कृषि के लिए, इष्टतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला में निचले स्तर का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए भारत में इसकी फार्मिंग लाभप्रद है। यह जहां किफायती होगी वहीं पर्यावरण के अनुकूल भी होगी। इनकी विशेषता यह है कि ये तेजी से वृद्धि करते हैं तथा इनकी नर प्रजाति आकार में बडी होती है। तिलपिया की सबसे आम नस्ल नील तिलपिया (Nile Tilapia) की है जिसकी दुनिया भर में सबसे अधिक पाली जाती है। नील तिलपिया को 1970 के दशक के अंत में भारत में पेश किया गया था। भारत में तिलपिया की व्यावसायिक कृषि सीमित है, तथा इसे पहली बार 1952 में पेश किया गया था। किंतु 1959 में भारत की मत्स्य अनुसंधान समिति द्वारा तिलपिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हाल ही में कुछ राज्यों में कुछ शर्तों के साथ तिलपिया की कृषि को मंजूरी दे दी गई है। आनुवंशिक रूप से सुधरी हुई तिलपिया कृषि को कुछ दिशानिर्देशों के साथ अनुमोदित किया गया था। वहीं ट्रम्प प्रशासन द्वारा चीनी प्रजातियों पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के कारण भारत अमेरिका में तिलापिया मछली के अगले बड़े निर्यातक के रूप में उभर सकता है। अमेरिका एक साल में लगभग छह लाख टन तिलपिया का आयात करता है और चीन से जमे हुए तिलपिया मीट पर प्रशुल्क ने अमेरिका को मांग को पूरा करने के लिए भारत और लैटिन अमेरिका सहित अन्य बाजारों की ओर मुख करने के लिए मजबूर कर दिया था। वर्तमान समय में भारत में तिलपिया का उत्पादन 20,000 टन है, जोकि भविष्य में और भी अधिक वृद्धि कर सकता है। विश्व तिलपिया उत्पादन छह मिलियन टन है और इसमें चीन का योगदान 1.6 मिलियन टन है, इसके बाद इंडोनेशिया (1 मिलियन टन), मिस्र (9,50,000 टन) और बांग्लादेश (3,50,000 टन) का योगदान है। लेकिन कोरोनावायरस के प्रकोप और भारत में परिणामी कुल लॉकडाउन (Lockdown) ने भारत भर में मछली पकड़ने के समुदायों की आजीविका को बहुत प्रभावित किया है। हालांकि लॉकडाउन कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है; लेकिन, स्थानीय और क्षेत्रीय रूप से, विशेष रूप से खाद्य प्रणालियों, भंडारण और बाजार श्रृंखलाओं पर कमजोर आबादी की आजीविका पर विघटनकारी प्रभाव को कम करने के लिए मछुआरों के लिए त्वरित और प्रभावी हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। भारत में मत्स्य पालन खाद्य और पोषण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। नौ मिलियन से अधिक सक्रिय मछुआरे सीधे अपनी आजीविका के लिए मत्स्य पालन पर निर्भर करते हैं जिनमें से 80% छोटे पैमाने पर मछुआरे हैं। यह 14 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देता है और भारतीय जीडीपी का 1.1 प्रतिशत योगदान देता है। बंदरगाह और अवतरण केंद्रों में पूर्ण लॉकडाउन ने सभी तटीय जिलों में मछुआरों की दिन-प्रतिदिन की कमाई को बहुत प्रभावित किया है। छोटे पैमाने पर मत्स्य पालन विशेष रूप से उपभोक्ताओं के लिए कम लागत पर प्रोटीन के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मछली प्रदान द्वारा प्रदान किया जाता है। यह हाशिए के समुदायों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और आहार में मछली की कमी से इन लोगों के पोषण सुरक्षा पर काफी प्रभाव पड़ेगा। चेन्नई के निकट कुछ गाँवों में, किनारे के क्षेत्रों में मछली पकड़ने वाले छोटे मछुआरे अपनी पकड़ बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भौतिक दूरी के मानदंडों के कारण, केवल कुछ मछुआरे अवतरण केंद्रों में मछुआरों से मछली खरीदने में सक्षम हैं। चूंकि मछली बेचने के लिए आवंटित समय बहुत कम है, वे कम कीमत पर अपनी मछली बेचने के लिए मजबूर होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोरोनोवायरस लॉकडाउन होने से पहले मछली की कीमत 500 रुपए प्रति किलोग्राम थी, तो अब दर सिर्फ 300 से 350 रुपए है। लॉकडाउन के कारण महिला मछली विक्रेता भी काफी प्रभावित हुए हैं क्योंकि मछली पकड़ने की कोई गतिविधि नहीं की जा रही है और कुछ स्थानों पर केवल सीमित नाव ही मछली पकड़ रहे हैं। अवतरण केंद्र में लाया गया कम शिकार उच्च मांग के अधीन है। लॉकडाउन ने अन्य मछलियों संबंधित गतिविधियों को प्रभावित किया है जैसे कि जाल, नाव और इंजन का नियमित रखरखाव। यह मछली पकड़ने के शिल्प और गियर जैसी उच्च लागत वाली संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचाता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. 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