लखनऊ शहर में कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं, जिनमें से मुगल साहिबा (Moghul Saheba) का इमामबाड़ा भी एक है। यह वास्तव में, शहर में महीन चूने या प्लास्टर (Stucco) अलंकरण का सबसे अच्छा उदाहरण है। आश्चर्यजनक रूप से, अंग्रेजी लेखक इसका उल्लेख करने में विफल रहे हैं और सिर्फ कुछ उर्दू लेखकों ने ही इस भवन की सराहना की है। इसकी अनदेखी का कारण शायद इस इमामबाड़ा का दूरस्थ स्थान है। मोती-पॉलिश (Polished) और नाजुक रूप से निष्पादित वनस्पतियां और पर्णपाती पैटर्न (Pattern) यहाँ चित्रित हैं, जो कि शास्त्रीय यूरोपीय प्रभाव को दर्शाते हैं। लेकिन, उपलब्ध रिकॉर्ड (Record) में किसी भी विदेशी सहायता का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए यह माना जाता है कि नियोजित कारीगर स्थानीय मूल के थे।
यह इमामबाड़ा अवध के तीसरे राजा मोहम्मद अली शाह की एक बेटी द्वारा निर्मित किया गया था, जिसका नाम उम्मत-उस-सुघ्रा फख्र-अन-निसान बेगम था, जिसे मुगल साहिबा के शीर्षक से बेहतर जाना जाता है। वह नवाब मुजाहिद-उद-दौला सैफ-उल-मुल्क ज़ैन-उल-अबिदीन खान की पत्नी थी। 1893 को उनकी मृत्यु पर उन्हें उनके द्वारा ही निर्मित इमामबाड़ा में दफनाया गया था। इमामबाड़ा के मुख्य हॉल (Hall) में पांच बड़े दरवाजे हैं, जो पंजतन (पैगंबर के परिवार के पवित्र पांच)) को दर्शाते हैं। शीर्ष पर चित्रित उत्कृष्ट ज्यामितीय डिजाइनों (Designs) के साथ इमामबाड़ा के तीन हॉल की आंतरिक दीवारें एक दूसरे से सटी हुई हैं। ये डिजाइन चमकीले और सुनहरे रंग से रंगी हुई हैं। मुगल साहिबा के इमामबाड़े के लिए विशेष रूप से बनाया गया आबनूस मिम्बर (Mimbar) यहां का प्रमुख आकर्षण है। इमामबाड़ा इमारत की मुहार को बड़े पैमाने पर प्लास्टर से सजाया गया है। मुख्य हॉल के सामने एक फव्वारा और नहरों से जुड़ा हुआ एक हौज (Hauz - पानी की टंकी) है, जो वर्तमान में उपयोग में नहीं है। प्रवेश द्वार के करीब, पश्चिम में, एक उच्च मंच पर एक बड़ी मस्जिद बनायी गई है, जिसे इमामबाड़ा के साथ बनाया गया था। इसमें अष्टकोणीय मीनारें हैं, जो मुकुटों से सुशोभित हैं तथा हर तरफ उभरी हुई हैं (संभवतः इसकी शाही स्थिति के प्रतीक के रूप में)। प्रवेश द्वार लंबा है और मछली की एक जोड़ी के नवाबी प्रतीक के साथ चिन्हित हैं। इमामबाड़ा के पास का शाही बाग अर्थात वजीर बाग, आज नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि यह एक व्यापक उद्यान था। फूलों के पौधों की यहां कम से कम अट्ठाईस किस्में उगायी जाती थीं। इमामबाड़ा के प्रवेश द्वार का एकान्त स्तंभ, जो अभी भी मौजूद है, प्लास्टर कला का सबसे अच्छा नमूना है। प्लास्टर की मूल संरचना सीमेंट, पानी और रेत है। इसका उपयोग दीवारों और छत के लिए एक सजावटी आवरण और वास्तुकला में मूर्तिकला और कलात्मक सामग्री के रूप में किया जाता है। प्लास्टर का उपयोग धातु, कंक्रीट, मिट्टी ईंट आदि को आवरित करने के लिए किया जा सकता है। एक निर्माण सामग्री के रूप में, प्लास्टर टिकाऊ, आकर्षक और मौसम प्रतिरोधी दीवार आवरण है। कई प्राचीन संस्कृतियों की वास्तु सजावट योजनाओं में भी प्लास्टर की उभरी हुई नक्काशियों का उपयोग किया गया था। मेसोपोटामिया की कला और प्राचीन फारसी कला में अलंकारिक और सजावटी आंतरिक प्लास्टर नक्काशियों की एक व्यापक परंपरा थी, जो इस्लामी कला में भी जारी रही। प्लास्टर उपयोग के कारण इमामबाड़ा की कुछ संरचनाएं आज भी अस्तित्व में हैं। उत्कृष्ट गुणवत्ता की निर्माण सामग्री उपयोग किये जाने से इतने वर्षों बाद भी यह संरचना बची हुई है। विडंबना यह है कि मुगल साहिबा का इमामबाड़ा संरक्षित स्मारकों की सूची में नहीं है। एक रिपोर्ट (Report) में इमामबाड़ा के संरक्षण और मदद के लिए ग्यारह लाख पचास हजार रुपये अपेक्षित लागत बताई गई है। इमामबाड़ा को संरक्षित स्मारक के रूप में नामित करके प्लास्टर कला के इस बहुमूल्य खजाने को संरक्षित किया जा सकता है तथा इमामबाडा के विनाश और नुकसान को रोका जा सकता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.