भारतीय इतिहास में यदि स्वर्ण काल की बात की जाती है, तो यह गुप्त साम्राज्य के विषय में कहा जाता है। गुप्त साम्राज्य भारतीय इतिहास का वह काल था जब यहाँ पर कला और राजनैतिक रूप से अत्यंत ही महत्वपूर्ण विकास हुआ था। गुप्त काल की स्थापना श्रीगुप्त ने तीसरी शताब्दी में किया था तथा यह वंश चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। गुप्तों के समय ही मंदिर बनाने की परंपरा की शुरुआत भी हुई, जिसका प्राचीनतम उदाहरण, साँची मंदिर, देवघर ललितपुर, नाचना कुठार पन्ना आदि स्थानों पर देखने को मिलता है।

गुप्त काल में बड़े पैमाने पर मिट्टी के मंदिरों और मूर्तियों आदि का निर्माण किया गया, जिसका उदाहरण रामपुर के समीप ही स्थित अहिछेत्र से मिलता है। यहाँ से प्राप्त गंगा और यमुना की मिट्टी की मूर्तियाँ अत्यंत ही दुर्लभ हैं, जो कि वर्तमान समय में राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में रखी हुई हैं। गुप्त काल के समय में सिक्कों का भी विकास अत्यंत ही महत्वपूर्ण तरीके से हुआ। गुप्त काल में मुख्य रूप से चांदी और सोने के सिक्के प्रचलित किये गए थे। गुप्त सिक्कों के विषय में बात की जाए तो इन्हें दुनिया के सबसे सुन्दर कला के नमूनों में से एक माना जाता है। गुप्त काल से कई प्रकार के स्वर्ण सिक्के प्राप्त होते हैं, जिनमें सिंह हन्ता, गजलक्ष्मी आदि सिक्के अत्यंत ही प्रचलित हैं। गुप्त काल में लेखन कला का भी विकास बड़े पैमाने पर हुआ तथा इस काल की लिपि को 'गुप्त ब्राह्मी लिपि' के नाम से जाना जाता है। गुप्त ब्राह्मी अशोक ब्राह्मी का एक बेहतर स्वरुप है, इस लिपि में इलाहाबाद में स्थित समुद्रगुप्त का अभिलेख जिसे की 'प्रयाग प्रसस्ती' के नाम से जाना जाता है, ऐतिहासिक रूप से अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। गुप्त काल में ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया जाता था तथा इसमें भाषा संस्कृत थी। गुप्तों का समय काल 320 ईस्वी से लेकर लगभग 550 ईस्वी तक माना जाता है।

यह लिपि भारत में वर्तमान समय में प्रचलित देवनागरी लिपि की माता लिपि के रूप में मानी जाती है। इसके अलावा इस लिपि से ही सिद्धम और शारदा लिपि का भी जन्म हुआ, यह लिपि गुरुमुखी, बंगाली असमियाऔर तिब्बती लिपि के विकास में भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गुप्त ब्राह्मी में कुल 5 स्वर तथा पूरे 37 अक्षर हैं, जो की बाएं से दाएं ओर लिखे जाते हैं। गुप्त ब्राह्मी के 4 प्रमुख भाग थे, जिसे पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी और मध्य एशियाई (Central Asia) में बांटा जा सकता है। इसी लिपि से करीब 500 इस्वी में सिद्ध्मात्रिका लिपि और 700 इस्वी में देवनागरी वर्णमाला का विकास हुआ था। गुप्त सिक्के जिनपर हमें गुप्त अभिलेख प्राप्त होते हैं की पहली प्राप्ति सन 1783 में सोने के सिक्कों के होर्ड (hoard) से हुई थी। इसका सबसे महत्वपूर्ण होर्ड राजस्थान के भरतपुर जिले से प्राप्त हुआ था, जो की सन 1946 में पूर्ण हुआ था। गुप्त राजाओं ने 2000 से अधिक सोने के सिक्के जारी किये थे। गुप्त काल में विकसित लिपि ने आज वर्तमान समय में प्रचलित लिपियों के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में अनन्तवर्मन की गोपिका गुफा शिलालेख को दिखाया गया है जिस पर संस्कृत भाषा में और गुप्त लिपि का उपयोग हुआ है।
2. दूसरे चित्र में गुप्त ब्राह्मी लिपि में राजा के नाम के साथ विक्रमादित्य (चंद्रगुप्त द्वितीय) का सिक्का 380–415 ई.पू. और कुषाण साम्राज्य के गुप्त ब्राह्मी लिपि का सिक्का दिखाया गया है।
3. तीसरे चित्र में अलको हुण (Alchon Huns) शासक मिहिरकुला का सिक्का दिखाया गया है।
4. अंतिम चित्र में कुछ बैरियों पर मुद्रित गुप्त ब्राह्मी लिपि दिखाई गया है।
सन्दर्भ :
https://www.britannica.com/topic/Gupta-script
https://howlingpixel.com/i-en/Gupta_script
https://www.revolvy.com/page/Gupta-script?cr=1
https://en.wikipedia.org/wiki/Gupta_script