भाषा विज्ञान एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, जिसे पढ़ा जाना अत्यंत ही आवश्यक है, प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक भारत में अनेकों लिपियों का जन्म हुआ, इन लिपियों का ही योगदान रहा कि आज के समय में हमें इतिहास के विषय में इतनी जानकारियाँ प्राप्त हो सकी हैं। हमारे लखनऊ के संग्रहालय में अनेकों अभिलेख रखे गए हैं, जिन पर प्राचीन लिपियों में कई लेख वर्णित हैं। इन्ही अभिलेखों में से एक 'दान अभिलेख' भी है, जिसे की सक-संवत के नवें वर्ष में उल्लेखित किया गया था। यह अभिलेख एक महिला गहतपाल द्वारा दिए गए उपहार को प्रदर्शित करता है, गहतपाल ग्राहमित्र की बेटी और एकरा दला की पत्नी थी। यह अभिलेख ब्राह्मी भाषा में उल्लेखित है, ब्राह्मी भाषा उत्तर भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में विकसित होना शुरू हुई थी। ब्राह्मी वर्णमाला को आधुनिक भाषाओँ के 40 या उससे अधिक लिपियों के जन्मदात्री भाषा के रूप में देखा जाता है।
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ब्राह्मी से सम्बंधित खमेर (Khmer) और तिब्बती (Tibetan) लिपि के कई अक्षर हैं। ब्राह्मी लिपि भारत की प्राचीनतम लिपि है, जो कि सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के बाद प्रकाश में आई, यह लिपि भारत के सबसे ज्यादा प्रभावशाली लेखन प्रणालियों में से एक है, जिसके विकास में सम्राट अशोक का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान था। सम्राट अशोक ने इसी लिपि में अपने अधिकतर अभिलेखों और स्तम्भ के लेखों का उद्घरण कराया था। ब्राह्मी लिपि के सैकड़ों अभिलेख पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया से प्राप्त हुए हैं। ब्राह्मी लिपि के सम्बन्ध में यदि हम बात करें तो यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इसकी उत्पत्ति स्वदेशी है या यह किसी बाहरी लिपि से विकसित हुई है। 19वीं शताब्दी में जार्ज बुहलर (Georg Buhler) ने कहा कि ब्राम्ही लिपि का जन्म सिमेटिक (Simatic) लिपि से हुआ है तथा ब्राह्मण विद्वानों द्वारा इसे संस्कृत और प्राकृत भाषा के अनुकूल बनाया गया था। यह माना जाता है कि भारत छठी शताब्दी में सेमेटिक लिपि के संपर्क में आया, यह वही समय था, जब फारसी अकेमेनिड साम्राज्य(Achaemenid Empire) ने सिन्धु घाटी पर अपना अधिकार स्थापित किया था। हांलाकि ब्राह्मी और सेमेटिक (Semitic) भाषा के अन्दर अस्पष्ट समानताएं हैं। सेमेटिक भाषा का प्रभाव केवल सिन्धु क्षेत्र तक ही सीमित था, जबकि ब्राह्मी का प्रभाव सम्पूर्ण भारत और दक्षिण एशिया (Southern Asia) के भागों में था। एक अन्य कथन के अनुसार कुछ विद्वान यह मानते हैं कि इस लिपि का उद्भव तमिलनाडु के क्षेत्रों में प्राप्त भित्तिचित्रों से हुआ। यहाँ से प्राप्त चित्रों में और ब्राह्मी भाषा में कई सम्बन्ध हमें दिखाई देते हैं। हांलाकि यह विषय अभी तक अस्पष्ट है कि ब्राह्मी लिपि का उद्भव भित्ति चित्रों से हुआ था या नहीं।
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एक अन्य कथन के अनुसार ब्राह्मी लिपि का उद्भव सिन्धु लिपि से हुआ है, कुछ विद्वान इस कथन को सिद्ध करने के लिए सिन्धु के कुछ संकेतों को ब्राह्मी के कुछ वर्णों से सम्बंधित भी करते हैं। हांलाकि जब तक सिन्धु लिपि नहीं पढ़ी जा सकती है, तब तक इस विषय पर कुछ कहा जाना संभव नहीं है। कुछ विद्वानों का यह भी कथन है कि इस लिपि का जन्म तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के करीब ब्राह्मणों के एक समूह के द्वारा किया गया था। इस लिपि के उद्भव के विषय में भारत के पाणिनि ऋषि द्वारा लिखे गए व्याकरण को एक महत्वपूर्ण कथन के रूप में लिया जा सकता है। वर्तमान समय में मौजूद लिपियों की एक बड़ी लम्बी फेहरिश्त है, जो कि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई थी। ब्राह्मी लिपि को सर्वप्रथम पढ़ने का श्रेय अंग्रेज विद्वान जेम्स प्रिन्सेप (James Prinsep) को जाता है, उनके इस कार्य के बाद ही प्राचीन भारत के इतिहास पर एक बड़ा शोध कार्य किया जाना संभव हो पाया। आज वर्तमान समय में यह लिपि अत्यंत ही महत्वपूर्ण लिपियों के रूप में गिनी जाती है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में तीसरी शताब्दी ई.पू. से सोहगौरा ताम्रपत्र शिलालेख दिखाया गया है जो ब्राह्मी लिपि में हैं।
2. दूसरे चित्र के प्रथम चित्र में मध्य प्रदेश में स्थापित हेलियोडोरस (Heliodorus) का स्तंभ दिखाया गया है जो लगभग 120 ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था और इंडो-ग्रीक (Indo-Greek) कला का नमूना है। दूसरे चित्र के मध्य में दिखाया गया है कि स्तंभ पर ब्राह्मी-लिपि में लिखा है, हेलियोडोरस विष्णु का भगवतसेना (भक्त) है। इसमें महाभारत के एक दोहे का संस्कृत श्लोक को बारीकी से चित्रित है। दूसरे चित्र के अंतिम चित्र में अशोक के स्तम्भ पर अंकित ब्राह्मी लिपि दिखाई गयी है।
3. तीसरे चित्र में अशोक के रॉक कट अध्यादेशों में एक प्रसिद्ध ब्राह्मी दिखाया गया है जो उत्तर मध्य भारत में पाए गए हैं और 250 से 232 ईसा पूर्व के हैं।
4. अंतिम चित्र के प्रथम भाग में ग्रीक और ब्राह्मी में हिंदू देवताओं के साथ इंडो-ग्रीक राजा अगाथोकल्स ((Indo-Greek king Agathocles) ) का सिक्का।दूसरे भाग में नॉर्वेजियन विद्वान क्रिश्चियन लैसेन (Norwegian scholar Christian Lassen) ने 1836 में ब्राह्मी लिपि के कई अक्षरों का पहला सुरक्षित निस्तारण करने के लिए राजा अगाथोकल्स के द्विभाषी ग्रीक-ब्राह्मी सिक्के का उपयोग किया था।
सन्दर्भ :
http://www.ancientscripts.com/brahmi.html
https://www.ancient.eu/Brahmi_Script/
https://en.wikipedia.org/wiki/Brahmi_script
https://omniglot.com/writing/brahmi.htm